पत्र तुम्हारे आज मिले हमें जब हमें दोपहर
आह्लादित और मुदित रहे हम कई प्रहर
कम्पित कर से पढ़े खोल के पाती ज्यों
स्वर सजने से पहले हो गये मौन अधर
तुम जो आयी थी चला मधुमास आया था
बे-सुरे
ने सुर में पहला गीत गाया था
तुम न थी नारी सहज तुम विमला थी
शब्द में है ब्रम्ह ये परिचय कराया था
मैं था दूषित प्रेम ने पावन बनाया
जीते हैं कैसे सहज जीवन सिखाया
जो भी मेरा नाम या सम्मान है
ये तुम्हारे प्रेम ने मुझको बनाया
तुम हो पावन सरयू जैसी और रहोगी
अग्नि से भी शुद्ध तुम सीता रहोगी
सौंप दूँगा सरयू को सारे रहस्य
होगी ना अपवित्र अविरल ही बहोगी
कर सका ना ये तो तब अनुरक्ति कैसी
राग व् पावनता की सच्चाई कैसी
पाती स्मृति चित्र सरयू में डुबोया
कर दिया वैसा तुम्हारी चाह जैसी
तुम रहो जग में कहीं भी प्रसन्न रहना
तुम हो पावन और सदा पवित्र रहना
जो प्रसंग हमारे थे सब इति हुए हैं
प्रेम पर विश्वास कर निश्चिंत रहना
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
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