यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 28 अगस्त 2017

प्यार वो है जो सुख को बढ़ा देता है






















प्यार वो है जो दुःख को भुला देता है 
प्यार वो है जो सुख को बढ़ा देता है
मौसम के वो मज़े को चढ़ा देता है
मरते मन में भी जीवन जगा देता है

प्यार तो चाहने से है मिलता नहीं
कोशिशों से भी ये काम बनता नहीं
ये तो उपहार ईश्वर का अनमोल है
पुण्य संचित न हो तो ये मिलता नहीं

मणि व माणिक ये मोती से भी कीमती
भाग्य उत्तम न हो तो नहीं मिलती
सबसे है भाग्यशाली प्रणय पाया जो
देवों के उपवन में भी नहीं मिलती

पवन तिवारी
सम्पर्क-  7718080978

poetpawan50@gmail.com

रविवार, 27 अगस्त 2017

ऐसा वर दो हे हनूँमान






















हो देश सफल,सक्षम सुन्दर
तन-मन निर्मल अन्दर बाहर
नैतिकता, संस्कृति प्रणय गान
हो कीर्ति चतुर्दिक यश महान
भारत से पाए जगत ज्ञान
जहाँ गुरु ग्रन्थ,गीता महान
भारत ही बसे मेरे तन-मन में
हो गर्व जो भारत में जन्में

ऐसा वर दो हे हनूँमान

हर इक उर में हो राष्ट्र प्रेम
हर दृग में हो करुणा का प्रेम
हम सत्य के प्रति आग्रही रहें
कर्तव्य मार्ग पर अडिग रहें
अग्रजों का हो सत्कार सदा
अनुजों पर स्नेह फुहार सदा
गुरुवृन्द का पूजन प्रथम रहे
हम रहें ना रहें राष्ट्र रहे

ऐसा वर दो हे हनुमान

जीवन में निस्पृह कभी नहीं
छल-राग द्वेष भी कभी नहीं
हम पढ़ें नित्य सत पथ मंतर
उल्लसित सदा हो उर अंतर
राष्ट्र चरण में हो अभ्यर्पण
सकल मनोरथ करें समर्पण
दुर्बल जन का सदा त्राण हो
परहित में उत्सर्ग प्राण हो

ऐसा वर दो हे हनुमान

पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978

poetpawan50@gmail.com

शनिवार, 26 अगस्त 2017

गद्य था मैं तुम मिली तो पद्य आया

























दुःख था इतना मृत्यु के मंजर दिखे
तुमको सोंचा जीने के फिर घर दिखे
जब उदासी घेर लेती है मुझे
मुझे बुलाते तब तुम्हारे कर दिखे

प्यार की बातें कभी जब होती हैं
तब तुम्हारी यादें दिल में होती हैं
जब कभी थोड़ा हताश हो जाता हूँ
तुम्हें करके याद फिर ताज़ा हो जाता हूँ

गद्य था मैं तुम मिली तो पद्य आया
साथ जो तुम चल पड़ी तो गीत गाया
तुमने जो अंकन किया तो रोम पुलकित हो गये
प्रणय का संगीत सुनकर,अधर फिर से गुनगुनाया

तुम जो आ जाती हो तो फिर क्या कहूँ
दीप भी बुझता नहीं,मेरी भला मैं क्या कहूँ
मैं क्या सोऊँ,नीद भी सोती नहीं
रात भी तुमको निहारे,सोये ना मैं क्या कहूँ

जिन्दगी से हारने के जब मुझे लक्षण दिखे
जीतने के आख़िरी तब शस्त्र केवल तुम दिखे
तुम जो आये साथ मेरे हृदय पुष्पित हो गया
सारे लक्षण जिन्दगी से जीतने के तब दिखे

पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978


    

मंगलवार, 22 अगस्त 2017

मैं जानता हूँ झूठ की चादर वो ताने है

मैं जानता हूँ झूठ की चादर वो ताने है
सच झूठ को छेड़े ये इरादा मगर नहीं

यूँ जान बूझकर जिसने पिया जहर है
उसको बचाने की फिर कोई डगर नहीं

तुम लाख करो कोशिश वो डूब जाएगा
खुद डूब से बचने इरादा अगर नहीं

ताक़त बहुत भी होके हार जाते हैं लोग
चूहे से भी डर जायेंगे जिनमें जिगर नहीं

पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978

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करो कुछ भी मज़ा आ जाएगा

करो कुछ भी मज़ा आ जाएगा
शर्त है कि उसमें शिद्दत होनी चाहिए

दोस्ती करो, दुश्मनी करो या प्यार
लुत्फ़ आ जाएगा, शिद्दत होनी चाहिए

इस जमाने भी दुआ क़ुबूल होती है
बशर्ते दुआ में शिद्दत होनी चाहिए

पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978

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सोमवार, 21 अगस्त 2017

वक्त का खेल


















गरज गुज़र गयी तो फिर जानते नहीं
कौन हो तुम ? तुमको पहचानते नहीं

मैनें कहा दोस्त,बुरे दौर का हूँ दोस्त
उसने कहा - ऐसे किसी जानते नहीं

मैंने दिलाया याद तो उसको बुरा लगा
बोला झिड़क के दूर हटो,जानते नहीं

बदला मेरा क्या वक्त,ख़ास भी बदल गये
अपने मेरे ही मुझको, अब पहचानते नहीं

वक्त बुरा हो तो, कोई नहीं अपना
अपने ही घर के लोग भी पहचानते नहीं

आयेगा अच्छा वक्त इशारा है राम का
दुःख के ही बाद सुख है वे जानते नहीं

दुःख में ही स्वार्थ का असली है रंग दिखता
सच जानकर भी सच को वे मानते नहीं

पवन तिवारी

सम्पर्क – 7718080978

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रविवार, 20 अगस्त 2017

उमड़-घुमड़ आये ये बदरा




















उमड़-घुमड़ आये ये बदरा
आँखों में लगा के जैसे कजरा
बारिश करें ये ऐसे
बूंदों का जैसे गजरा

सुबह में ही शाम घटा ये लगे
छाँव की सुहानी छटा ये लगे
ऐसे में कैसे आवारा ना मन हो
जरा जरा बादल कटा सा लगे

सिरहन सी पूरे बदन में लगे
इक अनजानी सी चाहत जगे
ऐसे में चादर में आये कोई
बारिश जवानी को यूँ ना ठगे

पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978

poetpawan50@gmail.com  

शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

रुबाईयाँ

   
 1

मेरी चाहत न थी
वो, वो न थी
जैसी चाहत थी मुझे
उनमें वो चाहत न थी .

              2

मेरी कोई अफलातून ख्वाहिश न थी
जैसा सबने सोंचा था मेरी सोंच वैसी न थी
हाँ, इतना चाहता था कोई फुलमुनियाँ सी मिले
ये जो आई हैं अनारकली, ये मेरी ख्वाहिश न थीं

 पवन तिवारी

सम्पर्क – 7718080978

poetpawan50@gmail.com

बुधवार, 16 अगस्त 2017

कैसे मान लूँ



















कैसे मान लूँ

मेरे एक दोस्त हैं,कहते हैं,बिना देखे
कैसे मान लूँ ?
वे कहते हैं हर बात पर
कैसे मान लूं ?
तर्क करो,साबित करो, बिना देखे
कैसे मान लूं ?
ये मेरे सिद्धांतों के विरुद्ध है
किन्तु वे आवाज़, ईश्वर और पवन को
अपने सिद्धांतों के विरुद्ध जाकर मान लेते हैं
बिना किसी तर्क के मान लेते हैं
संतोष होता है कि इस तर्क के युग में भी
कुछ लोगों की विश्वसनीयता तर्क से परे
भी बनी हुई है .
पर अगले ही क्षण नितांत तर्क वाले
जब कभी मान जाते हैं किसी बात को
बिना तर्क के ,सच बताऊँ-
मजा ख़त्म कर देते हैं या
कभी-कभी मजे का कत्ल
पर अच्छा करते हैं
हमारी उस सच्ची अवधारणा की
संस्कृति को देते हैं सम्मान
कि वो भी चीजें होती हैं ,
सच होती हैं, जो हमें दिखाई नहीं देती
जिनका कोई स्थूल रूप नहीं होता
फिर भी दुनिया को बनाने और
मिटाने का रखती हैं माद्दा.
जो शक्तियां हमें दिखाई देती हैं
उनसे भी शक्तिशाली,सक्षम,प्रभुता सम्पन्न
वो हैं जो हमें दिखाई नहीं देते किन्तु
जीवन के प्रत्येक क्षण में शामिल होते हैं
जैसे ईश्वर पवन और ध्वनि


पवन तिवारी

सम्पर्क – 7718080978

poetpawan50@gmail.com