यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 28 अगस्त 2019

जो बहुत कहते हैं


जो  बहुत  कहते हैं अपने  नहीं  होते अपने
वक्त  आने पर यही  लोग  हैं लगते  कंपने

जो भी  देखा  है  जरूरी नहीं वो सच ही हो
झूठ  निकले  हैं  कई  बार  जो देखे सपने

इश्क क्या चीज है बस इससे समझ जाओगे
वो जो बुजदिल था हुआ इश्क तो लगा तपने

सत्ता क्या चीज कि दुश्मन मेरे कुत्ते हो गये
कुर्सी  क्या  दे दी सुबह - शाम लगे हैं जपने

खूब  लूटे   शरीफ   खूब   बने   सत्ता  में
सत्ता  जाते  ही  एक – एक  लगे  हैं  नपने

कैसे  मंगवाएं  कि  अखबार  घर  में बच्चे हैं
गुंडे  बदमाश  सबसे  ज्यादा  लगे  हैं  छपने



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत   

तुम आयी तो वर्षा आयी


तुम  आयी तो  वर्षा  आयी
अपने संग सावन भी  लायी
हरा - भरा  परिवेश हो गया
जीवन में  हरियाली   छायी

प्रेम मिला तो जीवन खिल गया
तुम जो मिली तो सब कुछ मिल गया
अभिलाषा  का   भरा  सरोवर
जब से दिल से दिल ये मिल गया

तुम आयी तो  गगन छू लिया
सपनों का  हर  रंग जी लिया
जो दुःख थे छू मन्तर हो गये
जब से प्रेम का अमृत पी लिया



पवन तिवारी
सम्वाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत

शनिवार, 24 अगस्त 2019

तेरे दिल में


तेरे दिल में मैं आना चाहता हूँ

कि आकर घर बनाना चाहता हूँ


बहक जायेगी सुन के बात मेरी
तेरे  नखरे  उठाना  चाहता हूँ

तेरा गर साथ मिल जाए अदा से
इश्क खुद को सिखाना चाहता हूँ

तेरे जैसी नहीं बस तू  मिले गर
मोहब्बत से  निभाना  चाहता हूँ

मेरी राहों में हैं कमसिन बहुत पर
तेरा   होना  दिवाना   चाहता हूँ

हवस होती तो तुझपे क्या था मरना
कि मन का  प्यार  पाना चाहता हूँ

कि मैं भी प्यार के काबिल पवन हूँ
फ़क़त ख़ुद को  दिखाना  चाहता हूँ



पवन तिवारी
सम्वाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक -  पवनतिवारी@डाटामेल.भारत

गुरुवार, 22 अगस्त 2019

भारत


तुझे दिया क्या दे सकता हूँ
यही भाव हिय में  रखता हूँ
पाने  सा कुछ भाव नहीं था
तेरे  चिन्तन  में  जगता हूँ

राम  कृष्ण  का  देश है तू
जन-मन  परिचय भेष है तू
आदि संस्कृति का  तू वाहक
जन का गौरव आवेश  है तू

तू  सदा  रहा तू  सदा रहे
तुझ पर मिटने की अदा रहे
तू  ज़िंदाबाद  सदा  ही था
हर  काल  तू  यूँ  डटा रहे

हमें गर्व सदा तुझ पर भारत
आराध्य है तू तुझमें सब रत
तू  ही प्र थम तू  ही अंतिम
तू  ही  है सबसे  प्यारा ख़त

तुझको प्रिय बहुत तिरंगा है
हमरा  अभिमान  तिरंगा है
सबके मस्तक का शिखर पुरुष
जन-जन की शान तिरंगा है

पवन तिवारी
सम्वाद- ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत

मंगलवार, 20 अगस्त 2019

मैं तुम पर कविता क्यों नहीं लिखता ?


ओ आदिवासियों, खानाबदोशों,
गरीबों, श्रमिकों, मजदूरों
आदमी की परिभाषा से
निष्कासित लोगों सुनो – सुनो !
मैं तुम पर कविता क्यों नहीं लिखता ?

कविता की मूल पहचान,
उसका स्वर, पता है ?
तुम्हें कैसे पता होगा !
हाँ, तुम्हें पता होगी !
भूख की पीड़ा, अपमान की,
नीच की, अछूत की
हेयता की, अधिकारों के वंचन की,
उपहास और दुत्कार की पीड़ा,
ये तो पता होगी !
हाँ, हाँ, ये तो पता होगी !
तभी तो नहीं लिखता,
तुम पर कविता !
कविता की मूल पहचान
संवेदना, पीड़ा, उपेक्षा,
अपमान और संघर्ष है.
ये सब, तुम्हारी आखों में है.
जब भी तुम्हारी टिमटिमाती या
डबडबाई पनीली आँखे देखता हूँ,
मुझे तुम्हारी आँखों में, दुनिया भर की
श्रेष्ठ कवितायेँ तैरती हुई,
नजर आती हैं.
तुम्हारे मस्तक की लकीरें
कविता के एक पूरे इतिहास की
गवाही देती हैं.
तुम खुद हजारों – हजार
जीती-जागती कविताओं के
शिखर पुरुष हो !
मैं, ऐसे में तुम पर,
क्या कविता लिखूँ ?
मुझे क्षमा करना,
मेरी क्षमता नहीं है कि
मैं तुम पर कविता लिखकर
तुम्हारे विराट व्यक्तित्व
और तुम्हारे अस्तित्व का
तुच्छ आकलन कर सकूँ.
इसीलिये मैं तुम पर कविता नहीं लिखता.





पवन तिवारी
सम्वाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत


सोमवार, 19 अगस्त 2019

तुम्हें चाहने की


तुम्हें  चाहने  की सजा  पा रहा हूँ
कि रोते  हुए भी सनम गा  रहा हूँ

मंजिल  पता  थी सही  रास्ता भी
मगर अब लगे कि कहाँ जा रहा हूँ

जब से सनम  दूरियाँ बढ़ गयी हैं
जाने लगे क्यों  क़रीब  आ रहा हूँ

मेरे  हौसले को वो  मापेगा  क्या
गैरों तलक के मैं गम  खा रहा हूँ

ताकत से उसका बदन पा लिया वो
मगर  रूह  से  दूर  ही पा रहा हूँ

मेरे  हुनर  का  तो जलवा है ऐसा
दुश्मन के दिल में भी मैं छा रहा हूँ

मेरा प्यार भी अफलातूँ  ऐसा कुछ है
सनम को  लगे है कहर  ढा  रहा हूँ

मेरे  गीत कविता का आलम तो देखो
कि कमसिन कलम को भी मैं भा रहा हूँ


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत

मंगलवार, 13 अगस्त 2019

राखी का रिश्ता




बहना  दुलारी  एक  पाखी है
उसकी उम्मीद  एक  राखी है
वैसे  तो  रिश्ते  अनेक  यहाँ
सच्चे रिश्ते की राखी साखी है

राखी खातिर हुमायूं था आया
राखी  सूत्र  देवेन्द्र को भाया
राखी  का  कितना गान करूँ
राखी की शक्ति ने बलि को हराया

भाई बहन का रिश्ता  अनोखा
जग भर में ये है सबसे चोखा
धन दौलत से ऊपर ये रिश्ता
भावों का यह अनुपम झरोखा

भाई बहन को रहती प्रतीक्षा
पावन  संबंधों   की  दीक्षा
एक दूजे का मंगल ही चाहें
भाई बहन की बस यही इच्छा


पवन तिवारी
सम्वाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत    

सोमवार, 12 अगस्त 2019

अबकी मिलो तो


अबकी मिलो तो ऐसे कि मुझे तर कर दो
मुझमें  इस कदर घुलो कि शरबत कर दो

तुम्हारे प्यार के  मैंने बहुत से किस्से सुने
अब जो मेरी कहती हो तो दस्तखत कर दो

ठीक है कोई नहीं तुम मुझे पढ़ना चाहती हो
ऐसा  करो  कि तुम मुझे पहले ख़त कर दो

मुझे बदनाम ही करना है ना बस इतना भर
तो सुनो ऐसा करो  कि प्यार में हद कर दो

दूरियों से प्यार बढ़ता है ठीक है मान लिया
तो ऐसा  करो  इस बार मिलना रद्द कर दो

हक़ अदा किया अच्छा किया अब जिम्मेदारी 
क्या खूब हो गयी तो थोड़ी मजम्मत कर दो

बातें बड़ - बड़ शोर-गुल इधर - उधर बहुत हुआ 
अच्छा तो बुलाऊं खामोशियों को इनायत कर दो



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत

मिलाऊं हाथ मगर


मिलाऊं हाथ मगर दिल थोड़ा शरीक  मिले
मजा तो तब जब उसकी भी तसदीक मिले

तुम्हारी कामयाबी के कसीदे ख़ूब सुन लिये
अब जो नाकामियाँ कहो तो थोड़ी सीख मिले

जमाने भर की मिल्कियत ठुकरा दूँ दोस्त
सच कहता हूँ अगर इश्क थोड़ा ठीक मिले

इश्क में हो और खुश हो  सुभानअल्लाह
मुझे तो इश्क में ज्यादातर गमगीन मिले

ये जो साकी है ना इसे बख्श दूँ सचमुच
चाहता इश्क बस जरा सा नमकीन मिले

ये शोहरत दुनियादारी असबाब सब छोड़ दूँ
तेरी  बातों में जरा प्यार की तकरीर मिले

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणुडाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत

गुरुवार, 8 अगस्त 2019

बिना काम के


बिना काम  के काम भी करते देखा है
दूसरे  की  खुशियों  में जलते देखा है

भूखों  मरते हैं  हमने  था सुन रक्खा
गिद्धों  को  तो  खाकर मरते  देखा है

जिनको  जिद  होती है बुलंदी पाने की
सौ-सौ  मौत से  उनको भिड़ते देखा है

आदमी  से  खुदगर्ज़ नहीं  देखा  मैंने
निज  खातिर अपनों से लड़ते  देखा है

आदमी की लालच भी कितनी  उम्दा है
अपने  कद से भी नीचे  गिरते देखा है

संकल्पों की शक्ति की तुम्हें है पता पवन
मिटे  हुए  को   हमने  बनते  देखा  है


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत   

सोमवार, 5 अगस्त 2019

कहीं - कहीं घर बार है डूबा


कहीं - कहीं घर बार  है डूबा
कहीं – कहीं  मीलों  है सूखा
वर्षा  से  कुछ हरा - भरा है
कहीं  का  थल वर्षों से भूखा

बरसा  से  किसान  खुश  है
किन्तु  बाढ़ से भी  दुःख  है
रंग  कई  हैं  बरखा  के भी  
अलग - अलग उसका रुख है

लट  भीगे   जब  सावन  में
अँगड़ाई   उठे  तन  मन  में
जैसे    मृग   कस्तूरी  खोजे
प्रेमी   मन   भटके  तन  में

बरखा  में जब  बिजली  कड़के
चोर हिया  तब  जोर से  धड़के
लहर के जब - जब बरखा आये
प्रेमी  मन  फड़फड़  फड़ फड़के

टिप – टुप  बरसे  बारिश  जब
भीग - भीग  मन  मचले  तब
सजनी  देखे   पिय   की  राह
चाहत  हो   आ   जाएँ   अब    

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत