यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 13 फ़रवरी 2023

पीड़ा पर सब मेरे मौन हैं



पीड़ा पर  सब  मेरे मौन हैं

और  चाहते  जग  पर बोलूँ

अंग–अंग बेधित है व्याधि से

और  चाहते  हैं  सब  डोलूँ

 

किसको नहीं पड़ी है किसकी

सबको अपनी लगन लगी है

होंगे  असहमत  बहुतेरे  पर

यह भी नैतिकता की ठगी है

 

सोच रहा  हूँ  क्या सोचूँ मैं

जिससे मन अच्छा  हो जाए

कभी - कभी  सोचूँ कि कोई

बिना  बुलाये  ही   जाए

 

कभी - कभी  एकाकीपन भी

खलने  से  ज्यादा खलता है

कभी-कभी रुग्णता से ज्यादा

सोच - सोच के भी गलता है

 

संबल या साथी कह लूँ मैं

एकाकीपन  में  ये कविता

चारो  और अन्धेरा है जब

मेरे लिए बनी  है सविता

 

पवन तिवारी

१२/०२/२०२३