बादल छाये श्याम घनेरे
छत पर स्वर मयूर के
गूँजे
उठी लहर पुनि हिय
में मेरे
प्रात बन गयी सांध्य
सुनहरी
देखा चहक रही थी
गिलहरी
छायी मौसम में सीतलता
नदी की धारा हँस के
लहरी
रोम - रोम गरमी में
सिहरा
हलका हो गया सूरज
गहरा
मौसम ने ली अंगड़ाई
जो
टूट गया फिर हिय का
पहरा
ऐसे में तू छत पर आयी
चली जोर से फिर
पुरवाई
तेरा आंचल लहर के
बोला
तू भी आजा देख ये
आयी
बरसों बाद सपन ये आया
मेरा मन भी गाँव हो
आया
अल्हड़ प्रेम गाँव का
मौसम
सपन में भी आकर
हरसाया
बाहर – बाहर नगर है
फैला
अन्दर बैठा गाँव का
छैला
नगर दिया है सुबिधा
पैसा
गाँव बिना पर सब
मटमैला
एक दिन नगर गाँव
जाएगा
जली कटी सुना के
आयेगा
बैभव मेरा नाम क्यों
तेरा
नगर गाँव में बस
जाएगा
गाँव नगर यदि हो जाएगा
जीवित होकर मर जाएगा
चीख उठा मन सोच के ही
हाय ये क्या सच हो
जायेगा
फिर तो सपना धूसर हो
गया
सब कुछ जैसे ऊसर हो गया
मिटी संस्कृति गाँव
की जो तो
जीवन धूसर - ऊसर हो गया
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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