यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 9 मई 2019

लुप्त हो गयी हैं मेरे गाँव की निशानियाँ


लुप्त हो गयी हैं मेरे गाँव की निशानियाँ
मुर्गे की, घोड़े की, बैल की कहानियाँ
पीपल की जड़ में शिव की निशानियाँ
राजा और रानी की क़िस्सा कहानियाँ 

लुप्त हो गयी हैं मेरे गाँव की निशानियाँ
मुर्गे की, घोड़े की, बैल की कहानियाँ

सरयू में डुबकी ले पैसे का ढूंढना
दूध जरा कम मिले तो झट से रूठना
चोखा भात चटनी खा करके ख़ूब ऐंठना
जिन्दगी की थी कभी ऐसी कहानियाँ

लुप्त हो गयी हैं मेरे गाँव की निशानियाँ
मुर्गे की, घोड़े की, बैल की कहानियाँ

 लकड़ी के तराजू और ईट बटखरे
चोरी के तरबूजे खाके गर्मी तरे
कितने तो सत्तू गुड खाकर झरे
ऐसी भी थी हमारी कहानियाँ

लुप्त हो गयी हैं मेरे गाँव की निशानियाँ
मुर्गे की, घोड़े की, बैल की कहानियाँ

नीम के पेड़ में बसें दुर्गा माता
बंदर में हनुमान जी दिख जाता
बरगद के पेड़ में विष्णु विधाता
चली गयी श्रद्धा की सब निशानियाँ

लुप्त हो गयी हैं मेरे गाँव की निशानियाँ
मुर्गे की, घोड़े की, बैल की कहानियाँ

पोखर में टीले से कूद के नहाना
अपने ही घर में गुड का चुराना
धान के बदले में लेमन चूस लाना
एक एक सच, हो गये कहानियाँ

 लुप्त हो गयी हैं मेरे गाँव की निशानियाँ
मुर्गे की, घोड़े की, बैल की कहानियाँ

डमरू बजाते मदारी का आना
बंदरिया की पूँछ छूके भाग जाना
खेल के बदले अनाज लेके लाना
बचपन हमारा इतिहास की निशानियाँ

लुप्त हो गयी हैं मेरे गाँव की निशानियाँ
मुर्गे की, घोड़े की, बैल की कहानियाँ

कटोरी में गरम-गरम गुड़ का चाटना
हार गये गुस्से में कच से काटना
खाएं खुद इमली छोटे को डाँटना
ये भी थी गाँव की चटपट कहानियाँ

लुप्त हो गयी हैं मेरे गाँव की निशानियाँ
मुर्गे की, घोड़े की, बैल की कहानियाँ

 भैंस पर ही बैठ कर भैंस चराना
एक ही लोकगीत दिन भर गाना
चरती हुई बकरी का दूध लगाना
ये भी थी गाँव की कुछ निशानियाँ

लुप्त हो गयी हैं मेरे गाँव की निशानियाँ
मुर्गे की, घोड़े की, बैल की कहानियाँ

बाबूजी,चाचाजी, भइया भी मर गये
गाँव,घर की बोली के रिश्ते भी तर गये
कजन,अंकल,डैड आये सबके ही घर गये
रिश्तों के मौत की भी सुनना कहानियाँ

 लुप्त हो गयी हैं मेरे गाँव की निशानियाँ
मुर्गे की, घोड़े की, बैल की कहानियाँ

 चोर सिपाही का हुआ खेल पुराना
गया गुल्ली - डंडा, कंचे का जमाना
गाँव भी नगर का हो गया दीवाना
ऐसे में कैसे बचेंगी निशानियाँ

लुप्त हो गयी हैं मेरे गाँव की निशानियाँ
मुर्गे की, घोड़े की, बैल की कहानियाँ

गेहूँ की बाल महुए की बिनाई
इमली के बदले में स्याही मँगाई
चोरी के आम बाद होती गिनाई
इनकी क्या होंगी इतिहास में कहानियाँ

लुप्त हो गयी हैं मेरे गाँव की निशानियाँ
मुर्गे की, घोड़े की, बैल की कहानियाँ

फूस की छत रहती माटी की दीवाल
बाग़ में आम खातिर जब तब बवाल
घूम कर आने पर हजारों सवाल
हो गयी निशाना ये गाँव की निशानियाँ

लुप्त हो गयी हैं मेरे गाँव की निशानियाँ
मुर्गे की, घोड़े की, बैल की कहानियाँ

छवि थी गाँव वाले होते सीदे-सादे
खुश रहते भले ही खाते पेट आधे
छोटी – छोटी खुशियों फूले उतराते
अब दिखती नशे,गुण्डई की निशानियाँ

लुप्त हो गयी हैं मेरे गाँव की निशानियाँ
मुर्गे की, घोड़े की, बैल की कहानियाँ

गाँव में कुम्हार की चाक नहीं चलती
गाँव में सुहानी अब शाम नहीं ढलती
कहूँ कैसे गाँव में अब हवस पलती  
अखबारों में छपें बलात्कार की कहानियाँ




पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com


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