यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

भाजपा की एक मात्र सकारात्मक उम्मीद वरुण गांधी ...पर क्या भाजपा वरुण को मौका देगी

2016 - 17 में होने वाले विधानसभा चुनाव बीजेपी की बयार है या नहीं  और कांग्रेस में वापसी की ताकत है या नहीं  ये  पंजाब , असम, तमिलनाडु , प. बंगाल और उत्तर प्रदेश  चुनाव  से पता चलेगा . ऐसे  में सभी राजनीतिक दलों की नजर उत्तर प्रदेश चुनाव पर रहेगी .बीजेपी के लिए विशेष रूप से उत्तर प्रदेश का चुनाव असली अग्नि परीक्षा होगा . उत्तर प्रदेश का चुनाव बीजेपी  की आगामी राजनीतिक दिशा - दशा तय करेगा साथ  ही  मोदी जी और  अमित शाह के  राजनीतिक प्रभाव  व कद को भी . बिहार की हार के बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी की हार जहाँ बीजेपी को अन्दर तक हिला देगी  वहीं विरोधियों में बीजेपी से संघर्ष करने की  क्षमता व विश्वास कई गुना बढ़ा देगी .जिससे बीजेपी अपने लक्ष्य से डगमगा जायेगी और पार्टी में अंतर्कलह को भरपूर उफ़ान मिलेगा .
उत्तर प्रदेश ही वह राज्य है जहाँ 404 विधानसभा सीटें हैं और  100 विधान परिषद की . इसलिए यहीं से सबसे अधिक  31 राज्य सभा सांसद  भी हैं और बीजेपी  राज्य सभा में बहुमत न होने के कारण ही महत्वपूर्ण बिलों को पास नहीं करा पा रही है . लोकसभा में उत्तर प्रदेश की 73 सीटों के कारण ही भाजपा को केंद्र की सत्ता, वो भी पूर्ण बहुमत के साथ मिली है . ये बीजेपी भी भलीभांति जानती है  फिर भी उसके नेता लोकसभा चुनाव जीतने के बाद अपने क्षेत्र में कम ही दिखे हैं .मेरी उत्तर प्रदेश की ताज़ा यात्रा के अनुभव  बीजेपी के बारे में सकारात्मक  नहीं हैं .  लोकसभा चुनाव के बाद नेता जी एक बार भी  आम जनता को नहीं दिखे .  खैर आइये उत्तर प्रदेश की राजनीति की पड़ताल शुरू करते हैं .
उत्तर प्रदेश में गत कुछ चुनाओं से 2 पार्टियों का बर्चस्व रहा है . सपा और बसपा ,  इससे पहले महत्व पूर्ण  पार्टियों में पहले कांग्रेस और फिर भाजपा  महत्वहीन हुई .पर 2014 के  लोसभा चुनाव ने भाजपा को फिर से मुक़ाबले में लाकर खड़ा कर दिया .सो अब 2017 में लड़ाई त्रिकोणीय होगी . सपा और बसपा के पास स्थाई नेता या यूँ कहें नेतृत्व हैं  फंसती है भाजपा,  एक तरफ मायावती दूसरे तरफ मुलायम [ अखिलेश ]  ऐसे  में  भाजपा से कौन....    क्या वरुण गांधी ....हो सकते हैं

 उत्तर प्रदेश में हमेशा स्पष्ट नेतृत्व का फायदा  हुआ है. चुनाव में ये सवाल भी उठेगा कि बीजेपी का मुख्यमंत्री उम्मीदवार कौन ... बसपा चुनाव में प्रबल दावेदार है ,सपा को सत्ता विरोधी लहर , मुजफ्फरपुर दंगे , कानून व्यवस्था , और नेपथ्य से 4 मुख्यमंत्री  वाली बात [ मुलायम सिंह , राम गोपाल , शिवपाल और बडबोले आज़मखान ] मुस्लिम यादव बेस पार्टी  का नुकसान हो सकता है फिर भी मुलायम सिंह जन नेता हैं  और मायावती भी दलित पिछड़े वर्ग की जनाधार वाली नेता हैं  वहीं बीजेपी  में कोई इनकी तुलना में जनाधार वाला नेता नहीं है  . एक सर्व विदित नाम राजनाथ सिंह  हैं   वे सभ्य   व सुशिक्षित हैं पर वे जनाधार वाले नेता नहीं हैं.  ऐसे में जो  बीजेपी  राज्य सत्ता से एक दशक से बाहर है को ऐसा चेहरा लाना  होगा, जो प्रभावशाली हो युवा भी हो ऐसे में बीजेपी में एक मात्र उम्मीद की किरण  वरुण गांधी  नज़र आते हैं जो अखिलेश  के मुक़ाबले में
और सपा और  बसपा नेतृत्व के सामने  तुलनात्मक रूप से ठहर भी सके .
 आइये  हल्का सा तुलनात्मक  अध्ययन कर लेते हैं.....
मुलायम सिंह - उत्तर प्रदेश की राजनीति के सबसे पुराने खिलाड़ी हैं 22 नवम्बर 1939 को जन्म.  1967 में पहली बार विधायक बनें . आगरा विश्वविद्यालय से परास्नातक  और मैंनपुरी  से बीटी करने के बाद कुछ दिनों तक अध्यापन ,कुछ दिनों  तक पहलवानी की  , 5 दिसम्बर 1989 को पहली बार  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनें .  3 बार मुख्यमंत्री  बने एक बार पुत्र को मौका दिए .कुल मिलाकर  अनुभवी , शिक्षित  पर अब उम्र हावी हो रही है और आय से अधिक सम्पत्ति के मामले , वर्ग विशेष के नेता  .
मायावती  -  नेतृत्व क्षमता और अनुभव , मायावती भी जमीनी नेता हैं .15 जनवरी 1956 को जन्म.. दिल्ली के कालिन्दी महाविद्यालय से स्नातक  साथ ही एल.एल बी . औए बी एड. भी हैं मुलायम की तरह कुछ दिनों तक अध्यापन . 1995 में पहली बार मुख्यमंत्री बनी . कुल 4 बार मुख्यमंत्री रहीं . वर्ष 2007- 8  नेताओं में सर्वाधिक आयकर [26 करोंड़] अदा करने वाली. धन के दुरूपयोग  मूर्तियों और पार्क के मामले और फिर अर्थात 60 वर्ष की आयुसीमा के पास .फिर भी दलितों पिछड़ों की कद्दावर नेता .
राजनाथ सिंह -  अनुभवी व मृदुभाषी . 10 जुलाई 1951 को चंदौली में जन्म .गोरखपुर विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण . मिर्जापुर में कुछ दिनों तक भौतिक शास्त्र  में अध्यापन कार्य किया  और वर्ष 2000 में पहली बार भाजपा से मुख्यमंत्री बनें .  2 बार बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे पर बीजेपी इनके नेतृत्व में लोकसभा चुनाव हार गयी .  साफ़ - सुथरे छवि के नेता,  पर जननेता नहीं उम्र  65  के आस -पास. इन उपरोक्त तीनों नेताओं में जो एक रोचक समानता दिखी वो यह कि तीनों ही अपने प्रारम्भिक काल में अध्यापक रहे और तीनों उस दौर में भी उच्च शिक्षित  जब उच्च शिक्षा आसान नहीं थी.
 अब आते हैं नई पीढी के  नये नेता जो 2012 के चुनाव में भारी बहुमत से जीत कर आये  उसका एक कारण उनका युवा व  उच्च शिक्षित  होना भी था .
 अखिलेश यादव -  सबसे बड़ी पहचान मुलायम सिंह के बेटे और निजी योग्यता मृदुभाषी और शिक्षित .
1 जुलाई 1973 को  जन्म .   मुलायम सिंह की पहली पत्नी माँ मालती देवी के पुत्र .  बचपन में ही माँ का निधन. 3 बच्चे , पत्नी डिम्पल  सांसद,
अखिलेश ने राजस्थान मिलिट्री स्कूल धौलपुर से शिक्षा प्राप्त की. उन्होंने अभियान्त्रिकी में स्नातक की उपाधि मैसूर के एस०जे० कालेज ऑफ इंजीनियरिंग से ली, बाद में विदेश चले गये और सिडनी विश्वविद्यालय से पर्यावरण अभियान्त्रिकी में स्नातकोत्तर किया .मार्च 2012 के विधान सभा चुनाव में 224 सीटें जीतकर मात्र 38 वर्ष की आयु में ही वे उत्तर प्रदेश के 33वें मुख्यमन्त्री बन गये। जुलाई 2012 में जब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने उनके कार्य की आलोचना करते हुए व्यापक सुधार का सुझाव दिया तो जनता में यह सन्देश गया कि सरकार तो उनके पिता और दोनों चाचा चला रहे हैं, अखिलेश नहीं. दुर्गानागपाल और मुजफ्फरपुर के दंगे उनकी अनुभवहीनता और  सरकार पर उनका नियंत्रण न होना  उनके खिलाफ जाता है .  ऐसे में अखिलेश के प्रति उत्तर  क्या वरुण हो सकते हैं
वरुण गांधी - पहली पहचान मेनका गांधी के बेटे.  निजी योग्यता  1999 से प्रचार  और  बीजेपी के इतिहास में सबसे कम उम्र के बीजेपी महासचिव, स्पष्टवादी ,प्रखर वक्ता , 20 की उम्र में ''द आथ्नेस ऑफ़ सेल्फ '' नामक किताब लिखी , कविता व लेख भी लिखते रहते हैं . 13 मार्च 1980 को जन्म ,उनके पिता की मौत एक विमान दुर्घटना में जून 1980 में हुई। उनके पिता के निधन के समय वरुण गांधी की आयु मात्र ३ माह थी। वरुण गांधी ने  स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स लंदन विश्वविद्यालय से बीयसई की पढाई की है साथ ही  लन्दन के ओरियन्टल और अफ्रीकन स्टडीज से भी पढाई की है . 2009 में पीलीभीत से पहली बार सांसद बनें ,वर्तमान में सुल्तानपुर से सांसद हैं . वरुण गांधी परिवार की वजह से नहीं बल्की खुद की प्रतिभा के कारण अपनी पहचान बनाना चाहते हैं . ऐसे में यदि उन्हें भाजपा मौका देती है तो भाजपा के लिए  उत्तर प्रदेश में उम्मीद  जग  सकती है . अखिलेश और वरुण में भी कुछ समानता है  जैसे दोनों  उच्च शिक्षित हैं  विदेश में पढ़े हैं  पर जो दुखद है वो ये कि बचपन में अखिलेश की माँ गुजर गयी और वरुण के पिता . यदि वरुण को मौका मिलता है तो वे शायद अखिलेश के  सबसे कम उम्र  के मुख्यमंत्री का रिकार्ड भी तोड़ दें.... पर शायद .  अब पाठक निर्णय करें कौन उपयुक्त और योग्य  है .

रविवार, 27 दिसंबर 2015

भाजपा के लिए ये आपसी नादानियाँ मंहगी न पड़ जाये

मोदी की साख पर सवाल शुरू... आने वाले दिनों में भाजपा के लिए अच्छे नहीं .

बीजेपी  को कांग्रेस  वाली गलतियों से बचना होगा और  जो गलतियाँ हुईं हैं उन्हें सुधारना होगा या नहीं सुधार सकती तो आगे से पुनः गलती न हो वरना बंगाल ,पंजाब , उत्तर प्रदेश  में उसे ''का पछताए होत जब चिड़िया चुग गई खेत '' वाली स्थिति होगी . यदि ऐसा हुआ तो बीजेपी के लिए दुखद होगा पर देश के लिए घातक. पर होनी को सिर्फ अच्छे कर्म टाल सकते हैं और कोई नहीं .
शत्रुघ्न सिन्हा , आर. के. सिंह  और अब कीर्ति आज़ाद . ये बीजेपी के लिए अशुभ संकेत है . कीर्ति आज़ाद को हाशिए पर धकेलना  घातक होगा . ''न खाऊंगा  न खाने दूंगा'' मोदी के इस नारे को कीर्ति का निलंबन  ठेंगा दिखाता हैं साथ ही मोदी की चुप्पी और कीर्ति को मिलने का समय न देना मोदी की उज्ज्वल छवि को ठेस पहुंचा  रहा है . जिसका असर आगामी चुनाओं  में अवश्य दिखेगा . बीजेपी मोदी नामक व्यक्ति के कारण जीती है .बीजेपी के कारण नहीं. मोदी की छवि ध्वस्त अर्थात बीजेपी पराजित .
अब बात करते हैं कुछ करियर और कद की , कुछ आत्म सम्मान की , कुछ  उपेक्षा की , कुछ त्याग की ,  कुछ अपमान की ,
बात शुरू करते हैं शत्रुघ्न सिन्हा से ...... शत्रुघ्न बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं  बीजेपी जब दो सांसदों की पार्टी थी . जब चारो तरफ कांग्रेस का बोलबाला था .  ऐसे समय में कांग्रेस के तमाम प्रलोभनों के बावजूद  शत्रुघ्न ने  बीजेपी को चुना . उस समय शत्रुघ्न अमिताभ को कड़ी टक्कर दे रहे थे .डर कर अमिताभ ने  निर्माताओं  से शत्रु के साथ काम करने से मना कर दिया था . ये  सर्व विदित है . बीजेपी  ने ऐसे में शत्रुध्न सिन्हा के स्टारडम का खूब दोहन किया . ऐसे में 30 -32 वर्षों बाद पार्टी[ मोदी एंड कम्पनी]  के अच्छे दिन आये तो शत्रुघ्न सिन्हा के साथ ऐसा व्यवहार किया गया कि उनके बुरे दिन आने लगे . उन्हें अचानक मात्र अभिनेता कहकर किनारे कर दिया गया . टीवी स्टार स्मृति ईरानी जो एक टीवी स्टार रही केन्द्रीय मंत्री  बन गयी .कोई बात नहीं वे प्रतिभशाली भी है  पर गायक बाबुल सुप्रियों जो बहुत सफल भी नहीं रहे मंत्री बन गये .पर इसके राजनीतिक  मायने थे बंगाल के सन्दर्भ में . पर तमाम जूनियरों को सिंहासन और शत्रु को किसी ने बैठने के लिए कुर्सी तक नहीं पूछी. ऐसे में शत्रु का दुखी , अपमानित महसूस करना  व क्रोधित होना  लाजमी है फिर बिहार में क्या हुआ कहने की जरुरत नहीं .ऐसा नहीं शत्रु ने गलती नहीं की  ,पर उसकाया किसने ...
अब बात कीर्ति आज़ाद की .... कीर्ति आज़ाद 1993 में बीजेपी से जुड़े  . वे 1983 की विश्वविजेता टीम के सदस्य थे .उन्होंने  प्रथम श्रेणी मैच में साढ़े 6 हजार से अधिक रन बनाये हैं और 240 से अधिक विकेट लिए हैं .
 अब तक 3 बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हैं .1993 में दिल्ली विधान सभा के भी सदस्य रहे . इनके पिता भागवत झा बिहार के कद्दावर नेता थे वे बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे . कीर्ति दोनों क्षेत्र के माहिर हैं.ऐसे में क्रिकेट में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जेटली जी और भाजपा को  कीर्ति की बात सुननी चाहिए थी . कई बार बतौर दिल्ली जिला क्रिकेट संघ के अध्यक्ष  के रूप में जेटली जी ने  कीर्ति की शिकायतों को अनसुना किया और कीर्ति की उपेक्षा की. जिससे कीर्ति शायद आहत थे .कीर्ति को कहीं न कहीं ये भी लगा कि मैं क्रिकेटर के साथ पार्टी का एक्टिव मेंबर   भी हूँ और एक व्यक्ति  जो क्रिकेटर भी नहीं है संस्था का अध्यक्ष बना बैठा है और मनमानी कर रहा है  और अपने ही पार्टी के सदस्य की उपेक्षा कर रहा है वो भी भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर . ऐसे में लोकसभा चुनाव मोदी लहर के बावजूद जो व्यक्ति चुनाव हार गया .उसे राज्यसभा में भेजकर  भारी भरकम मंत्रालय भी  दे  दिया गया.  जबकि उन्हें उनकी दक्षता के हिसाब से कानून मंत्रालय मिलना चाहिए था .  कीर्ति मोदी के शुरू से ही प्रशंसक और पैरोकार रहे ऐसे में उन्हें उम्मीद थी कि सरकार में उन्हें भी कुछ .... मिलेगा . उल्टा उन्हें  उनके गृह राज्य बिहार चुनाव में  ही किनारे कर दिया गया . ऐसे में आज़ाद का उबलना  स्वाभाविक था सो हुआ . आज़ाद हर तरह से सक्षम हैं इसलिए वे राजनीति से लेकर न्यायालय तक कड़ी टक्कर देंगे . जो भाजपा के लिए बड़े फलक पर नुकसानदायक होगा .
अब जेटली जी की बात करते हैं  जेटली प्रसिद्ध अधिवक्ता  महाराज  किसन जेटली के पुत्र हैं . 1991 में जेटली जी भाजपा के सदस्य बने .1999 में भाजपा के प्रवक्ता बने . और फिर राज्यसभा सांसद .जेटली भी नामचीन अधिवक्ता और चतुर प्रवक्ता हैं ,जेटली ने कई बार अपनी रणनीतिक चतुराई से पार्टी को संकट से बचाया है. पर वे जन नेता नहीं हैं एक भी लोकसभा चुनाव वे नहीं जीत सके . मोदी  जेटली  की तार्किक योग्यता के मुरीद हैं और आज यही चीज कीर्ति के खिलाफ और जेटली के फेवर में है .पर ये मोदी ,पार्टी,और जेटली के लिए भी नुक्सानदेह है. जेटली को ताल ठोक कर स्वेच्छा से पद छोड़ देना चाहिए .यही  पार्टी  व सबके हित में होगा .जाँच में बेदाग आने पर मोदी पुनः पद बहाल  कर सकतें हैं .
 जब मैं  मुम्बई से प्रकाशित  विश्व हिन्दू परिषद के पत्र विश्व हिन्दू सम्पर्क के सम्पादकीय मंडल में था . तब मैंने ही सबसे पहले मोदी के पक्ष  में लिखा था कि क्यों देश को मोदी के नेतृत्व की आवश्यकता है . तब मोदी

 कहीं भी प्रधानमंत्री हो दौड़ में नहीं थे .
आज देश को और देश से बाहर रहने वाले भारत वासियों  को यहाँ तक कि दुनियां को भी मोदी से बहुत उम्मीदें हैं . वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य भाजपा और देश के लिए घातक होगा .  जो कांग्रेस के लिए ''बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा ''   वाला होगा . ऐसा होना बेहद .......

गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

chavanni ka mela : अटल का बदहाल बटेश्वर

chavanni ka mela : अटल का बदहाल बटेश्वर: अटल जी की वर्ष गांठ पर विशेष लेख अटल जी का बदहाल बटेश्वर मुम्बई, अटल जी वैश्विक शख्शियत हैं .उनके बारे में बहुत कुछ कहा व लिखा जा चुका...