यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 23 नवंबर 2015

हमारी सहिष्णुता का बेजा फायदा उठाया जा रहा है इतनी सहिष्णुता भी ठीक नही

आज आमिर खान के बयान ने मुझे  आवेश और ग्लानि से भर दिया , मुझे अपनी सहनशीलता या सहिष्णुता जो भी कहें ,पर शर्म आने लगी ,  कि हम इतने सहनशील क्यों हैं कि कोई  हमें ,इस देश को ,कितनी भी गाली दे ले  और हम अभिव्यक्ति की आजादी और सहिष्णुता के नाम पर चुप रहें  सिर्फ इसलिए कि कहीं वो हमें  फिर  से असहिष्णु न कह दे . आखिर वो तो  पूरी व्यवस्था हो ही असहिष्णु कह रहा है या पूरे सवा सौ करोड़ के देश को .वास्तव में हम उसकी असहिष्णुता के शिकार हो गये हैं . हम उसके अधिकारों की रक्षा की खातिर  अपने पूरे देश का अपमान क्यों करवा रहे हैं . ये बेहद गंभीर विषय है इस पर सरकार को नीतिगत तरीके से आगे कदम बढ़ाना होगा . अन्यथा जब देश की सहिष्णुता बर्दाश्त से बाहर हो जायेगी और सहिष्णु लोग सचमुच असहिष्णु होने को मजबूर हो जायेंगे तब आमिर खान और इन जैसे तमाम ढोंगी लोगों व इनके गुरुओं का क्या होगा .... शायद ही किसी को कल्पना हो .   असहिष्णुता वास्तव  में  क्या है  और कहाँ है यदि आमिर या इस सोंच के लोगों को पता करना है  '' डर का माहौल'' महसूस करना है  तो उन्हें ईराक , सीरिया ,अफगानिस्तान , सूडान, में जाकर देखना चाहिए . पड़ोस में भी जा सकते हैं पकिस्तान ,  हाँ मिश्र भी फिलहाल ट्राई कर सकते हैं . फिर सच पता चलेगा और डर क्या होता है मालूम होगा .
हमें सहिष्णुता को जानना है तो आमिर जैसे लोगों को भारत के इतिहास को देखना होगा . हम  सहिष्णु हैं तभी भारत में दुनिया की सबसे अधिक मस्जिदें भारत में हैं , हम सहिष्णु हैं तभी भारत में पीके जैसी फिल्म रिलीज हुई . हम सहिष्णु हैं तभी आज भारत में  मुस्लिमों की आबादी दुनिया में तीसरे नंबर पर है .हम सहिष्णु हैं इसीलिये भारत दुनिया का पहला देश है जो हज पर 50000/ प्रति यात्री सब्सिडी देता है और वहीं हमारे ही देश में हमारे ही ईष्ट का मंदिर तक नहीं बनने दिया जाता . हम सहिष्णु थे इसीलिये  भारत में 3 करोड़ से बढकर 19 करोड़ मुस्लिम हो गये .  पकिस्तान में कितनी हिन्दू आबादी बढ़ी जरा कथित सेकुलर पता करें . पाकिस्तान में 1947 में कुल आबादी का 25 प्रतिशत हिंदू थे। अभी इनकी जनसंख्या कुल आबादी का मात्र 1.6 प्रतिशत रह गई है.इसी तरह बांग्लादेश में भी हिंदुओं पर अत्याचार के मामले तेजी से बढ़े हैं। बांग्लादेश ने "वेस्टेड प्रापर्टीज रिटर्न (एमेंडमेंट) बिल 2011"को लागू किया है, जिसमें जब्त की गई या मुसलमानों द्वारा कब्जा की गई हिंदुओं की जमीन को वापस लेने के लिए क्लेम करने का अधिकार नहीं है। इस बिल के पारित होने के बाद हिंदुओं की जमीन कब्जा करने की प्रवृति बढ़ी है और इसे सरकारी संरक्षण भी मिल रहा है। इसका विरोध करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर भी जुल्म ढाए जाते हैं.
भारत में मस्जिद होना आम बात है पर पाक में मंदिर दिख जाना ख़ास बात है . जब तक भारत हिन्दू बहुल देश बना रहेगा तभी तक सहिष्णुता नामक शब्द भी जीवित रहेगा  ये आमिर व उन जैसों को याद रखना होगा .वरना जिस दिन आमिर बिरादरी हावी हुई  फिर ईराक बनने से कोई नहीं रोक पायेगा और देश छोड़ने की बात तो दूर  ऐसा सोंचने से पहले इनका काम तमाम  हो जायेगा . हमारी सहिष्णुता का ही फल है कि भारत के हिन्दू मुस्लिम आधार पर बंटवारे के बाद भी आमिर जैसे लोग हिन्दुओं के सुपरस्टार हैं , 19 करोड़ मुसलमान आज हिन्दुओं के हिस्से पर कब्जा जमाए बैठे हैं  क्योंकि उन्होंने अपना हिस्सा पाक के रूप में ले लिया .  पाक में कोई हिन्दू  सेना में कर्नल या उससे ऊपर का अधिकारी नहीं बन सकता , राष्ट्रपति नहीं बन सकता  बाकायदा कानून है  हिन्दू विवाह को मान्यता भी नहीं है . आमिर सहिष्णु हिन्दुओं को किसी के इशारे पर भड़काने का काम कर रहे हैं . आमिर पूरी तरह से झूठ बोल रहे हैं  कि किरण राव ने देश छोड़ने की बात कहीं क्योंकि देश में डर का माहौल है. दूसरी बात यदि कही तो मीडिया में कहने की क्या जरुरत है  घर की बात थी ... पर इसे हवा देनी थी  ..... तीसरी बात उन्होंने खुद कही कि उनकी पत्नी अखबार व समाचार चैनल इसीलिये देखने से डरती हैं .इसका अर्थ ये हुआ कि उनके अन्दर असहिष्णुता का डर और माहौल इन चैनलों और अख़बारों ने बनाया वरना  उन्हें इससे पहले बिलकुल भय नहीं था .  ये सारा माहौल सरकार विरोधी  कथित लेखकों ,कलाकारों ,विपक्षी पार्टियों ने देशद्रोही मीडिया के साथ बनाया . वरना १९४७ में 25 लाख लोगों की हत्या  से अब तक कितनी ही लाशें गिरी किसी ने उफ़ तक नहीं किया .
उपरोक्त बातें लिखने का मेरा बस इतना मतलब था कि  इस कृतिम लोगों की  कृतिम असहिष्णुता के खिलाफ आम भारतीय को और अब सरकार को भी उठानी चाहिए अन्यथा जब बर्दाश्त से बाहर हो जायेगा फिर असहिष्णुता बढ़ रही है कहने का मौका भी आम भारतीय ऐसे लोगों को नहीं देगा  फिर सनी देओल का ओ डायलोग गूंजेगा .... जज आर्डर -आर्डर कहता रह जायेगा और तू पिटता रहेगा .
मेरा मन मुस्लिम भाइयों के ह्रदय को चोट पहुचाने की नहीं है  पर आमिर जैसे लोग मजबूर कर देते हैं . आम मुसलमान भी सच्चाई जानता है कि भारत से सुन्दर और सुरक्षित देश मुसलमानों के लिए दुनियां में कोई और हो नहीं सकता .पर  कुछ लोगों को आम मुसलमान की शांति और खुसहाली बर्दाश्त नहीं हो रही है क्योंकि उनकी लाशों पर सन 1947 से ही अपनी रोटी जो सेंकते आये हैं . 
poetpawan50@gmail.com

रविवार, 15 नवंबर 2015

ये अहिंसा का देश कभी नहीं रहा हाँ उदार अवश्य रहा

मित्रों बिहार चुनाव जब से सम्पन्न हुए हैं भारतीय मीडिया और लेखकों, बुद्धिजीवियों में एक आत्मसंतोष दिखाई दे रहा है वे निढाल से हो गये हैं जैसे उनकी व्यूहर चना सफल रही उसी तरह जैसे अभिमन्यु को घेर मारने के बाद कौरव. सारी असहिष्णुता अचानक जैसे गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गयी. पर वे शायद भूल गये उसके बाद भी कौरवों का विनाश हुआ था . उनके पास अद्वितीय योद्धा थे कौरवों की ओर से दुर्योधन व उसके 99 भाइयों सहित भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, मद्रनरेश शल्य, भूरिश्र्वा, अलम्बुष, कृतवर्मा कलिंगराज श्रुतायुध, शकुनि, भगदत्त, जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज सुदक्षिण और बृहद्वल युद्ध में शामिल थे फिर भी हारे .सारा प्रपंच बस बीजेपी को पराजित करने के लिए था.पर बीजेपी मात्र एक व्यूह हारी है युद्ध नहीं, ये विरोधियोंयों को समझना होगा क्यूंकि उस व्यूह के बाद की लड़ाई की अगली कथा कौरवों के लिए बड़ी दुखदाई थी. पुरस्कार लौटाऊ कार्यक्रम अचानक बंद हो गया. सिद्धारमैया ने मुख्यमंत्री होते हुए जानबूझकर उसकाने के लिए गोमांस खाने की बात कही. क्या ये उचित था .फिर टीपू जयंती का विवादित आयोजन और उसमे '' तीन लोगों की हत्या '' इस पर किसी ने पुरस्कार नहीं लौटाया किसी मीडिया को असहिष्णुता नहीं दिखी उन्हें एक मामूली घटना लगी क्योंकि ऐसे ही जयचंदों के कारण भारत को१- ७११ मुहम्मद बिन कासिम .
२ -१०००, महमूद गजनवी
३- ११८२ मोहम्मद गोरी 17 आक्रमण
4- १२ वी शताब्दी में चंगेज खां
5- १३९९ तैमुर लंग
६ - 15 वीं बाबर
7- नादिर शाह
8- १७५७ अहमद शाह अब्दाली लुटा और बर्बाद किया और फिर अंग्रेजों ने.... हम अति सहिष्णु थे या कहें डरपोक थे कि मुट्ठीभर बाहरी आये और हमे लूटकर चले गये पर अब वैसा नहीं होगा .
हमें सच पढाया नहीं जाता....... ये अहिंसा का देश कभी नहीं रहा हाँ उदार अवश्य रहा पहला विश्व युद्ध हमारे ही देश में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में हुआ था जिसे दुनिया महाभारत के नाम से जानती है भारत वीरों की भूमि रही ...... पर आगे चलकर हमें पीढी दर पीढी जो पढ़ाया गया वहीं हमारा मानसिक चेतना बनकर हमारे खून में मिल गया और परिणाम हुआ हिन्दू सहनशील [डरपोक] हो गये .क्योंकि हमे डरपोक बनाया गया .हम डरपोक थे नहीं .अधूरे और अर्ध्य सत्य, उदाहरणों के जरिये , अपनी सुविधा और विचार धारा के अनुसार हमें पुरानी पीढी ने बरगलाये रखा इसी कारण हिन्दू सदैव आक्रमण का शिकार हुआ कभी आक्रमण किया नहीं . हम हमलावर नहीं रहे सदैव बचाव की मुद्रा में रहे इसका कारण हम और हमारी संस्कृति सदैव रौंदी गयी . अहिंसा के सबसे बड़े झूठे पैरोकार रहे गांधी जी .... वे उनका आचरण और उनकी कार्य शैली में जमी आसमा का अंतर था कुछ उदाहरण देखिये .... वे राम जी को अपना ईष्ट मानते थे आदर्श मानते थे और भगत सिंह आज़ाद को उग्रवादी कहते थे . राम अन्याय के विरुद्ध शस्त्र उठाया था.... अहिंसा एक सीमा तक ही ठीक है ..... भगवान राम ने स्वयं सुन्दर काण्ड के 57 वें दोहे में कहा है....
बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति\
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति \\
भावार्थ:-
इधर तीन दिन बीत गए, किंतु जड़ समुद्र विनय नहीं मानता। तब श्री रामजी क्रोध सहित बोले- बिना भय के प्रीति नहीं होती| उसके बाद जो चोपाई है वो इस प्रकार है ...

लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू॥
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती। सहज कृपन सन सुंदर नीती॥
ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी॥
क्रोधिहि सम कामिहि हरि कथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा॥
अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा। यह मत लछिमन के मन भावा॥
संघानेउ प्रभु बिसिख कराला। उठी उदधि उर अंतर ज्वाला॥
मकर उरग झष गन अकुलाने। जरत जंतु जलनिधि जब जाने॥
कनक थार भरि मनि गन नाना। बिप्र रूप आयउ तजि माना॥

दोहा- काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच।
बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच॥५८॥
   सुन्दर काण्ड  में ही एक जगह हनुमान जी रावण से कहते हैं जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे।  अर्थात जिसने मुझे मारा  मैंने उसे मारा .... गांधी जी ने कभी राम जी के हनुमान जी के कथनों से कुछ क्यों नहीं सीखा ..... कायर सिर्फ .....दैव -दैव आलसी पुकारा .... कीरट लगाते हैं....  जो कायर हैं   छोटे ह्रदय के हैं वे अहिंसा की आड़ लेकर महान बनने का ढोंग करते हैं और एक पुरी पीढी को कायर बना देते हैं ऐसे लोग ही अहिंसा परमों धर्मः ... का अधूरा श्लोक  रटते हैं अधूरा श्लोक गुमराह करता है  जैसे अधूरा ज्ञान  महाभारत के शांति पर्व में लिखा है  ....अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च: l"
 अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है, और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है.. पर आज तक अधूरा श्लोक ही पढ़ाया जरा रहा है  क्यों ..क्या ये शोष का विषय नहीं है . हाँ हम शरण में आये की रक्षा जरुर करते थे  इसी लिए ----------------
, सदियों पुरानी भारतीय सभ्यता आज भी इसलिए जीवित है कि सहिष्णुता इसका स्वभाव ही नहीं, सांस भी है. हिंदू संस्कृति की छांव में बौद्ध, जैन, सिख के साथ-साथ अरब से आए इस्लाम जैसे धर्म ने भी अपने को खूब पोषित किया. यह अलग बात है कि इस सहिष्णुता की सांस की कीमत भी 1947 में भारत ने चुकाई है.
इस बात को याद रखने की जरूरत है कि भारत अगर सेक्युलर है, तो वह इसलिए नहीं है कि इंदिरा गांधी ने 1976 में सेक्युलर शब्द को संविधान का हिस्सा बनाया था. भारत इसलिए है कि हिंदू मूलत: और अंतत: सेक्युलर हैं. संसार के प्रमुख धर्मो में सिर्फ  हिंदू धर्म का कोई पैगंबर नहीं है यानी मोहम्मद, ईसा मसीह, बौद्ध, महावीर या गुरुनानक की तरह हिंदू धर्म का कोई संस्थापक नहीं है. हिंदू या सनातन धर्म संसार का सबसे प्राचीन धार्मिंक विचार है. उसके बाद यहुदी, जैन, बौद्ध वगैरह का स्थान आता है. इस्लाम और सिख तो नए धर्म माने जा सकते हैं. भारत के मालाबार समुद्र तट पर 542 ईसा पूर्व यहूदी पहुंचे. वे तब से यहां अमन-चैन से गुजर-बसर कर रहे हैं. ईसाइयों का भारत में आगमन चालू हुआ 52 ईस्वी में. वे भी सबसे पहले केरल में आए. अब बात पारसियों की. वे कट्टरपंथी मुसलमानों से जान बचाकर ईरान से साल 720 में गुजरात के नवासरी समुद्र तट पर पहुंचे. अब वे देश के अहम समुदायों में शुमार होते हैं.
इस्लाम भी केरल के रास्ते भारत आया. लेकिन, भारत में इस्लाम के मानने वाले बाद के दौर में यहूदियों या पारसियों की तरह से शरण लेने के इरादे से नहीं आए थे. उनका लक्ष्य भारत पर राज करना था. वे आक्रमणकारी थे. भारत में सबसे अंत में विदेशी हमलावर अंग्रेज थे. उन्होंने 1757 में पलासी के युद्ध में विजय पाई. लेकिन गोरे पहले के आक्रमणकारियों की तुलना में ज्यादा समझदार थे. समझ गए थे कि भारत में धर्मातरण करवाने से ब्रिटिश हुकूमत का विस्तार संभव नहीं. भारत से कच्चा माल ले जाकर वे अपने देश में औद्योगिक क्रांति की नींव रख सकेंगे. इसलिए ब्रिटेन, जो एक प्रोटेस्टेंट देश है, ने भारत में अपने 190 सालों के शासनकाल में धर्मातरण शायद ही कभी किया हो. इसलिए ही भारत में प्रोटेस्टेंट ईसाई बहुत कम हैं.
ज्यादातर ईसाई कैथोलिक हैं. इनका धर्मातरण करवाया आयरिश, पुर्तगाली और स्पेनिश ईसाई मिशनरियों ने. इन्होंने गोवा, पुडुचेरी और देश के अन्य भागों में अपना लक्ष्य साधा. दलित हिंदुओं का भी धर्मातरण करवाया. इसके बावजूद देश में कैथोलिक ईसाई कुल आबादी का डेढ़ फीसद हैं. प्रोटेस्टेंट तो और भी कम. भारत में अगर बात मुगलों की करें तो उन्होंने तीन तरह से धर्मातरण करवाया. पहला, वंचितों को धन इत्यादि का लालच देकर. दूसरा, मुगल कोर्ट में अहम पद देने का वादा करके; और तीसरा, इस्लाम स्वीकार करने के बाद जजिया टैक्स से मुक्ति. इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की रोशनी में देखने की जरूरत है कि यहां मुसलमानों और ईसाइयों के साथ कितना भेदभाव हो रहा है.
 कई हिन्दुओं   हिन्दुओं की दाल रोटी  पहचान और राजनीति हिन्दू  विरोध पर ही टिकी है  उन्हें और मीडिया को आजम खान के आज के बयान में दोमुंहापन  नजर नही आता  पेरिस हमले पर आजम खान ने कहा  ये क्रिया की प्रतिक्रिया है तो फिर इस तरह तो गोधरा के प्रतिक्रिया गुजरात दंगे थे   ये मान लेना चाहिए ....पर न मीडिया मानेगी न ये ...... असली भारत के गद्दार और बांटने वाले यही हैं ...इसीलिये ये मोदी को बर्दाश्त नहीं कर  पा रहे हैं  और मीडिया और छद्म लेखकों, बुद्धिजीवियों  को शिखंडी की तरह आगे करके लड़ रहे हैं ....पर इस बार ये हथकंडा  कामयाब होने नहीं देना हैं ..... हम अपने देश के मुसलमानों का भी उतना ही सम्मान करते हैं जितना हिन्दू का पर मामला समानता का हो भेदभाव वाली आखों को बर्दाश्त नहीं करना है उन्हें सदैव के लिए फोड़ना देश हित में जरुरी है  जय हिन्द 
पवन  तिवारी 


ये अहिंसा का देश कभी नहीं रहा हाँ उदार अवश्य रहा.........

मित्रों बिहार चुनाव जब से सम्पन्न हुए हैं भारतीय मीडिया और लेखकों, बुद्धिजीवियों में एक आत्मसंतोष दिखाई दे रहा है वे निढाल से हो गये हैं जैसे उनकी व्यूहर चना सफल रही उसी तरह जैसे अभिमन्यु को घेर मारने के बाद कौरव. सारी असहिष्णुता अचानक जैसे गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गयी. पर वे शायद भूल गये उसके बाद भी कौरवों का विनाश हुआ था . उनके पास अद्वितीय योद्धा थे कौरवों की ओर से दुर्योधन व उसके 99 भाइयों सहित भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, मद्रनरेश शल्य, भूरिश्र्वा, अलम्बुष, कृतवर्मा कलिंगराज श्रुतायुध, शकुनि, भगदत्त, जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज सुदक्षिण और बृहद्वल युद्ध में शामिल थे फिर भी हारे .सारा प्रपंच बस बीजेपी को पराजित करने के लिए था.पर बीजेपी मात्र एक व्यूह हारी है युद्ध नहीं, ये विरोधियोंयों को समझना होगा क्यूंकि उस व्यूह के बाद की लड़ाई की अगली कथा कौरवों के लिए बड़ी दुखदाई थी. पुरस्कार लौटाऊ कार्यक्रम अचानक बंद हो गया. सिद्धारमैया ने मुख्यमंत्री होते हुए जानबूझकर उसकाने के लिए गोमांस खाने की बात कही. क्या ये उचित था .फिर टीपू जयंती का विवादित आयोजन और उसमे '' तीन लोगों की हत्या '' इस पर किसी ने पुरस्कार नहीं लौटाया किसी मीडिया को असहिष्णुता नहीं दिखी उन्हें एक मामूली घटना लगी क्योंकि ऐसे ही जयचंदों के कारण भारत को१- ७११ मुहम्मद बिन कासिम .
२ -१०००, महमूद गजनवी
३- ११८२ मोहम्मद गोरी 17 आक्रमण
4- १२ वी शताब्दी में चंगेज खां
5- १३९९ तैमुर लंग
६ - 15 वीं बाबर
7- नादिर शाह
8- १७५७ अहमद शाह अब्दाली लुटा और बर्बाद किया और फिरअंग्रेजों ने हम अति सहिष्णु थे या कहें डरपोक थे कि मुट्ठीभर बाहरी आये और हमे लूटकर चले गये पर अब वैसा नहीं होगा .
हमें सच पढाया नहीं जाता....... येअहिंसा का देश कभी नहीं रहा हाँ उदार अवश्य रहा...... ये लेख अधूरा है मित्रों ..... .... पूरा करूँगा रात तक .... इंतजार कीजिये

रविवार, 8 नवंबर 2015

भाजपा की हार के कारण और उसके मायने

 भाजपा की हार के कारण  और उसके मायने
 आज 8 नवम्बर 2015 भाजपा के लिए  चिर स्मरणीय है.क्योंकि  भाजपा इस हार से  सदियों तक  सीख सकती  है.उसे भविष्य में यदि अजेय होना है या अधिकाधिक अपने [ जीत ] विचारों का प्रसार करना है तो . बीजेपी के हारने के अनेक कारण हैं जैसे महागठबंधन जीतने के अनेक  कारण हैं.सबसे पहले महागठबंधन को जीत की बधाई.
बड़े कारणों में गलत समय पर बयान, गलत समय पर बयानों पर प्रतिक्रिया और  कुछ  प्रभावशाली  नेताओं  की अनदेखी,या यूँ कहें की बीजेपी के थिंक टैंक में अहंकार का भाव इतना प्रबल हो गया था कि उन्हें मोदी के जी के सामने कोई अन्य कारक प्रभावी लग ही नहीं रहा था .सो काफी हद तक अपने अनुकूल लोगो को टिकट दिया गया जिसकी जितनी बड़ी पकड़ थी उसे टिकट उतनी जल्दी मिला.जिनकी जनता में पकड़ थी उन्हें टिकट  नहीं मिला .
बिहार चुनाव आधा बाहरी मुद्दे पर लड़ा गया आधा स्थानीय मुद्दे प ,स्थानीय मुद्दे पर महागठबंधन जीता और बाहरी मुद्दे ने भाजपा को हराया,बीजेपी के हार के मूल कारणों में एक कारण ये भी है कि जिन मुद्दों पर उसे त्वरित प्रतिक्रिया देनी चाहिए थी उस पर उसने देर कर दी और जिन मुद्दों पर नहीं देनी चाहिए थी उस पर जल्दी और  विपरीत परिस्थियों में बिना समझे- बूझे प्रतिक्रिया दे दी.आरक्षण ने बड़ी भूमिका अदा की.भागवत जी के प्राथमिक बयान ने एक वर्ग को मोदी के विरोध में लाम बंद कर दिया.दूसरा आरक्षण के पक्ष में मोदी जी का देरी से आया बयान आरक्षण वालो कोअपने पक्ष में ला नहीं पाया उल्टा आरक्षण विरोधी  वर्ग काभी एक हिस्सा मोदी से रूठ गया.मैंने सोशल मीडिया पर इस पर तीखी प्रतिक्रिया उन लोगों की देखी जो रोज मोदी- मोदी के नारे लगाते थे.
 बीजेपी पर सुनियोजित तरीके से वैश्विक रूप से हमला बिहार चुनाव को देखते हुए किया गया.  जिसे बीजेपी  को समझने  में देर लगी और वो बिहार चुनाव के कारण दबाव में आ गयी और बीजेपी  के देशी- विदेशी विरोधी  इसी मौके की ताक में थे .बीजेपी चुनाव सम्पन्न होने तक  वेट एंड वाच की मुद्रा  में आ गयी . बस यहीं बीजेपी की हार निश्चित हो गयी.विरोधी अपने अभियान में सफल रहे .पुरस्कार वापसी उसी योजना का एक हिस्सा भर थी .यदि बीजेपी बिहार चुनाव जीत जाती आधे विरोधी अपने आप पस्त हो जाते और मोदी जी का वैश्विक कद काफी बढ़ जाता एक नये भारत का पुनर्निर्माण होता  जिसे आज ब्रेक लग गया . ये दुखद है इस देश के लिए . इसका प्रभाव बीजेपी को अब संसद में भी दिखेगा .उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव पर भी दिखेगा . बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति में मात्र 20 प्रतिशत का अंतर है  इसलिए कुछ ऐसा ही खेल यूपी में भी होगा . विकास  का मुद्दा गौण रहा ,जातीय और अन्य मुद्दे हावी रहे . इस चुनाव ने ये भी एक मिसाल पेश की है दूसरे प्रदेशों के लोगो के लिए कि बिहार की मानसिकता में ज्यादा बदलाव नहीं आया है उन्हें विकास से ज्यादा मतलब नहीं है  उन्हें जाति प्यारी है बिहार के नौजवानों को शायद अभी कुछ और सालों तक दूसरे राज्यों की चौखट  पर मत्था टेकना  होगा. वे जीते जिन्हें  कोर्ट से दोष  साबित होकर सजा हो गयी . जिन्होंने जिस जनता का पैसा लूटा उसी जनता ने उसे सर पर बिठाया इसे क्या कहेंगे.इससे साबित होता है  कि आज भी बिहार  सोंच के स्तर पर कहाँ है . खैर बीजेपी को सावधान रहना होगा .