यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 30 अप्रैल 2018

राग अनुराग तुझ बिन अधूरे लगे

























राग अनुराग तुझ बिन अधूरे लगे
दृष्टि में अपने ही हम न पूरे लगे
प्रेम जीवन की ऐसी हो अमृत प्रिये
बिन तुम्हारे  धरा व्योम सूने लगे

तुम जो आयी अयन सुरभिमय हो गया
उर का उपवन बड़ा  उल्लसित हो गया
बोल  फूटे  नहीं  अमित   आह्लाद से
सारी  वान्छाओं का मन मुदित हो गया

प्रेम  सारे  अभावों  पे  छा जाता है
दुःख  में भी हर्ष के पुष्प ले आता है
सूने आँगन में बरखा जो की प्रेम की
एक मैं ही नहीं, सारा  घर  गाता हैं

बिन  प्रिये प्रेम की कल्पना कोरी है
सारे  अवसादों की तूँ दवा  गोरी है
आदमी  आदमी हो  है सकता तभी
उसके जीवन में जब प्रेम की छोरी है


पवन तिवारी

अणुडाक -   poetpawan50@gmail.com
संपर्क -     7718080978 

गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

शिल्प के मोंह में ही फंसा रह गया























































शिल्प   के  मोंह में ही फंसा  रह गया
प्रेम   का  कथ्य तो  अनकहा रह गया
वो   कहानी   में बन नायिका छा गयी
मैं तो पुस्तक में बस प्राक्थन रह गया

प्रेम   के   आवरण   का   अनावरण हो
हिय के द्वारे तुम्हारा प्रथम चरण हो
सब खुले मन से स्वागत तुम्हारा करें
हे, प्रिये  प्रेम   से  प्रेम    का  वरण  हो 

बिन समर्पण सफल  प्रेम होता है क्या
बिन  विश्वास   सम्बन्ध  होता है क्या
हो   समर्पण  तो   झुकते भी हैं  देवता 
प्रेम  में  मेरा  तेरा भी   होता है क्या

तुम जो आई तो उर  में सवेरे हुए
हर्ष    के    सारे    पुष्प   मेरे   हुए
क्या तुझे मैं समर्पित करूँ प्रेम में
कुछ रहा ना मेरा सब तो तेरे हुए


पवन तिवारी
poetpawan50@gmail.com
सम्पर्क - 7718080978


मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

तूँ पूरी की पूरी सावन






सूरत  तेरी  मन   भावन
देख के तुझको  नाचे मन

तेरा तन  अषाढ़  का घन
जल  की  बूंदें बड़ी सघन
भीगी - भीगी  तेरी लटें ये
झूमें   जैसे  काली  नागन

चमक  रही  ये तारे जैसी
नभ मंडल हुआ तेरा बदन
तेरा मुखमंडल ज्यौं यौवन
तूँ  पूरी  की  पूरी सावन

तेरे  रूप  का  क्या गुण गाऊं
तुझ पर मोहित साधु, वृद्ध जन
तेरा   अंग - अंग  सौरभ  है
तेरा  तन  तो  पूरा   चन्दन

 तेरे  अधर  गुलाब  पंखुरी
नीली झील से तेरे ये नयन
तेरी चाल में वीणा का स्वर
सुनकर लगे करूँ मैं वन्दन

देख ‘पवन’ तुझे मोहित हो गया
स्वयं  को कर  दूँ तुझपे  हवन

पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com

मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

तूँ मेरी होके क्यों तेरे जैसी है










मैं  मेरी  परछाई  मेरे  जैसी  है
तूँ  मेरी  होके  क्यों तेरे जैसी है

जब भी तुझको देखूं तुझको मिलता हूँ
तूँ   मेरे  जीवन   में  डेरे  जैसी  है 

दोनों इक दूजे से मिलकर खुश होते
दोनों  की  तासीर  सवेरे  जैसी  है

तूँ आती है खुशियों से घिर जाता हूँ
तेरी बात तो प्यार के घेरे  जैसी है

बात - बात में ठग लेते हैं लोग तुझे
तूँ  भी  भोली – सीदी  मेरे  जैसी है

दो मीठी बातों पे फ़िदा ना होना ‘पवन’
ये  दुनिया  ना  तेरे – मेरे जैसी  है

पवन तिवारी
सम्पर्क – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com

शब्दों ने काटा खामोशियों ने मारा


शब्दों ने काटा  खामोशियों  ने  मारा
उम्मीद न थी जिनसे उन्होंने ही तारा

जहां  भर में घूमा जहां भर में जीता
लौटा  जो घर तो मैं घर में ही हारा

चींटी ने जिस दिन था हाथी को मारा
समझा  तभी  भाग्य  का वो सितारा

उसी दोस्त ने हमसे धोखा किया था
जिसने  कहा  सब हमारा – तुम्हारा

करूँ किसपे विश्वास यारों – पियारों
कि यारों ने ही लूटा सारा  किनारा

कि अब दोस्ती  दोस्ती से भी डरती
इस  रिश्ते ने सारा  विश्वास  मारा   

बताएँगे दिल - दर्द अब दुश्मनों से
मगर  दोस्तों  से नहीं  है  गँवारा

पवन तिवारी
सम्पर्क – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com


जीवन के सपनों में भटकूँ ऐसा बंजारा हूँ


































जीवन के सपनों में भटकूँ  ऐसा बंजारा हूँ
एक अकेला भोला ख़ुद ही ख़ुद का सहारा हूँ
ना माँगू ना कुछ चाहूँ इस समाज जग से
फिर भी ये मुझको कहते हैं मैं  आवारा हूँ

अपने मन का, अपने दिल का राज दुलारा हूँ
थोड़ा  खुद, थोड़ा  हालातों,  का मैं  मारा हूँ
अपने दिल की कर पाता हूँ मिली बड़ी खुशियाँ
अपनी  शर्तों  पर  जीता  मैं  नहीं बेचारा हूँ    

आवारा , बंजारा हूँ  मैं  परिवेश  का  मारा हूँ 
गिला न शिकवा मनमर्जी का खुद का प्यारा हूँ 
अपनी राह चलूँ फिर भी कमबख्त ये जग जलता  
तभी  तो कहता हूँ जग में  मैं सबसे न्यारा हूँ



पवन तिवारी
सम्पर्क – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com

सोमवार, 16 अप्रैल 2018

यूँ जो तुझपे वो शक किया होगा


यूँ जो तुझपे  वो शक किया होगा
दूध  क्या  छाछ  से  जला होगा

प्यार   विश्वास  होते - होता  है
शुरू  में  तो  ज़रा – ज़रा   होगा

उसके  चेहरे  को जो  पढ़ पाते हो
दिल  से  पूरा  खरा - खरा  होगा

मांग  मत दिल से बस समर्पण कर
देख  फिर  बिन  कहे  तेरा  होगा  

हूँ  तेरा  बैरी  शक  तो  होगा  ही
छुप  के यूँ  वार  ना  मेरा   होगा

होती  हर  रात  की सुबह  है पवन
रख  तूँ  बस   सब्र   सवेरा  होगा

पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com  

शनिवार, 14 अप्रैल 2018

ये जवानी वाली नयी हवा क्या चलने लगी .



ये जवानी  वाली  नयी  हवा  क्या  चलने  लगी .
प्यार क्या जागा कि दिल में आग सी लगने लगी .

 जब से तेरे आने की ख़बर घर में फैली है .
तब से ये सीलन भरी दीवार महकने लगी .

इक दिन तुम्हारी याद में गाया जो मैनें गीत तो.
देखकर ये काँच  की भी खिड़कियाँ  हँसने  लगी.

चाँदनी  जो चाँद की ख़ातिर  सदा  लुटती रही .
तुमको क्या देखा कि कल बेसाख्ता  झरने लगी .

यार  पत्नी  प्यार  या देवी कहूँ कि क्या कहूँ .
जब से आयी हो मेरी तो अहमियत बढ़ने लगी .

 ख्व़ाब में भी जो बिछड़ने का नज़ारा  देखा तो .
ये लगा कि धड़कनों संग साँस भी थमने लगी .

सोंचता हूँ पलकों में तुमको छुपाकर रख लूँ मैं .
आज – कल सुनता फूलों को नज़र लगने लगी .

पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com

  


मंगलवार, 10 अप्रैल 2018

प्रेम के हम दिया और बाती हैं











साथ पल–पल जियें हम साथी हैं
प्रेम  के हम दिया और बाती हैं

उम्र ढल जाए देह जर्जर भी हो
प्रेम  होते कभी भी ना बासी हैं

सुख में तो गैर भी साथ हो जाते हैं
दुःख में जो साथ दें, वो ही साथी हैं

जब ढलें साथ दें दोस्त सच्चे वे हैं
यूँ  जवानी  तो  आती – जाती हैं

खून अपना ही जब दिल दुखाता है
अपनी चिंताएं तब खुद को खाती हैं

दुश्मनों के तो ताने सुने मौज में
दिलरुबा की मगर दिल दुखाती हैं

पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
ईमेल -poetpawan50@gmail.com