यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

तेरी आँखों में


तेरी आँखों  में  मैं तो डूब गया
खुद से ऊबा था बहुत खूब गया


तेरी  आवाज़  बाँसुरी  सी  लगे
छू दे गर तू तो झुरझुरी सी लगे
आँख तुझ पर टिके तो खो जाऊं
तेरी तिरछी  नज़र छुरी सी लगे


तुझपे जितना कहूँ वो कम होगा
तेरी आंखों  में  मैं तो डूब गया


तेरा यौवन  है एक  सुंदर वन
देख तुझको  खिले मेरा यौवन
तेरे  गालों  के द्वीप  देखूँ तो
झूले  सा  झूलने  लगे ये मन

तेरे  अधरों  की  धारियाँ आरी
तेरी आखों में मैं  तो डूब गया


तेरी  अलकें  हैं   डोरियाँ  रेशम
आँखें गहरी हैं  नर्मदा से न कम
तुझसे मिलते ही भूलें हैं सब गम
तेरा  व्यक्तित्व  ऐसा है  आला


मुझे है याद क्या–क्या भूल गया
तेरी आँखों में  मैं तो  डूब गया


जितना बोलूँ कि लगे कम बोला
देखते  ही  तुझे  अधर   डोला
कितना कुछ बोल गया याद नहीं
लगे ऐसा कि खुद को कम खोला


तू ही भाये कि जग से ऊब गया
तेरी आखों  में मैं  तो  डूब गया



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

तुमको जब से देखा


तुमको जब  से  देखा  आते कैसे  कैसे भाव
उन भावों का मूल है लगता शायद प्रेम प्रभाव
सुनता हूँ कि  प्रेम  के  झटके  दोहरे होते हैं
इसीलिए थोड़ा विचलित हूँ लग ना जाये घाव

सौन्दर्य  दिखते  ही जाने क्यों आता है खिंचाव
उम्र का दोष कहूँ या समझूँ मेरा निजी स्वभाव
पहले ऐसा भाव नहीं था ऐसा कोई चाव नहीं था
गुण अवगुण इसे क्या मानू या मानू प्रेम प्रभाव

पिछले साल से ही जीवन में बढ़ गये नये रिसाव
तेजी से महसूस  हो  रहा  अनजाना सा  अभाव
मेरे  मित्र  भी  इसी  भाव  का  रोना  रोते  हैं
तेजी  से  बढ़  रहा  दिनों दिन ही इसका दुहराव

सब  विषयों  पर सोच सोच के अब आया ठहराव
सब बोलें अब एक ही सुर में उम्र का ही दुष्प्रभाव
दुष्प्रभाव  कैसे  कह  दूँ  जब  अच्छा  लगता है
प्रेम  का  लक्षण  लगता है अब होगा नहीं बराव

इस खाली हिय का विकल्प मैं प्रेम से करूँ भराव
चाह के  भी  मुझसे  सच  बोलूँ होता नहीं दुराव
बात समझ में आ ही गयी है मुझको हुआ है प्यार
पार  उतरना  है  तो  लेनी  होगी  तुम्हरी  नाव



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८   

बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

दर्द से दर्द से मिला


दर्द से दर्द से मिला क्या हुआ कि प्यार हुआ
कहा कि और पिला क्या हुआ कि प्यार हुआ

बाग़  के  फूल  पर क़िस्सा  न कहानी  कोई
फूल जंगल में खिला क्या हुआ कि प्यार हुआ

मौत चाहा मौत  आयी  तो बोला मोहलत दे
और कुछ देर जिला क्या हुआ कि प्यार हुआ

था मुसीबत  में  अकेला  तो जरा साथ दिया
उसपे लोगों का सिला क्या हुआ कि प्यार हुआ

जेब खाली थी  मगर दोस्त से  हँसकर बोला
जरा इक फूल दिला क्या हुआ कि प्यार हुआ

उसने  वो  बाग़ खेत  और भी सब बेच दिया
लिया बीएस एक विला क्या हुआ कि प्यार हुआ

हम तो समझे  थे कि बुद्धू है मगर पागल भी
कहता है जीता किला क्या हुआ कि प्यार हुआ

कल तलक जिसको मारना था आज मरता है
मेरा दिमाग हिला क्या  हुआ कि  प्यार हुआ


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८    

याद आयेंगे बहुत आयेंगे


याद  आयेंगे   बहुत   आयेंगे
जब भी आयेंगे दिल  जलायेंगे
वैसे मैं हार  करके  जीती  थी
अब तो बस वो ही जीत जायेंगे

दिन  पुराने   बड़े  हसीन  रहे
उन दिनों को भुला क्या पायेंगे
उनमें शामिल थे मेरे भी हिस्से
मेरे  हिस्से  को  छोड़  पायेंगे

कि हर चर्चा में दोनों का हिस्सा
एक किस्से में दोनों का किस्सा
दोनों मिल एक रहे थे जब तक
एक  बीघे के  दोनों  थे बिस्सा

एक जिद ने ही तोड़ा रिश्ता था
उससे पहले ये इक गुलिस्ता था
कौन झुकता है  यही बात अड़ी
उससे पहले तो सब फ़रिश्ता था

बीते दिन   लौट नहीं   आयेंगे
उन दिनों के ख़याल    आयेंगे
दिल अभी भी है यही मान रहा
देर से ही   सही   वो  आयेंगे



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८    


सोमवार, 17 फ़रवरी 2020

तुम मुझे छोड़कर


तुम मुझे छोड़कर जो चले जाओगे
तो बताओ ज़रा  कि कहाँ जाओगे
जाते-जाते बस इतना बता जाओ तुम
नहीं आओगे या कब तलक आओगे

याद रखना मेरे  गीत ही गाओगे
शायद ऐसा हो जाए कि पछताओंगे
प्यार बाज़ार की चीज है ही नहीं
सोच लो लौट करके यहीं आओगे

अपने ज़ुल्मों सितम तुम कहाँ ढाओगे
नज़र आऊँगा मैं तुम जिधर  जाओगे
मेरे  जैसा  अकेला  फ़क़त मैं ही हूँ
मेरे  जैसा   बताओ  कहाँ  पाओगे

ठीक है  सच  बताओ नहीं  आओगे
पास  मेरे   दुबारा   नहीं  आओगे
फिर चले जाओ तुमसे शिकायत नहीं
पर हो बदमाश यादों में  तो आओगे



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८  



रेत के शहर में ज्यादा सोचा नहीं


रेत के शहर में ज्यादा  सोचा नहीं
चाहा इतना कि दो बूँद पानी मिले
मैं भटकता रहा उम्र भर हर जगह
प्रेम की एक ज़िन्दा  कहानी मिले

गैर  ही  आज गैरों  की  बातें करें
बात  अपनी ही अपनी ज़ुबानी मिले
चलने को चल रहे अनगिनत पाँव हैं
चाल ऐसी कि  जिसमें  रवानी मिले

शाम अक्सर सुहानी तो मिल जाती है
चाहता  दोपहर   भी   सुहानी  मिले
मिलने को प्रेम में तो बहुत मिल रहा
चाहता  कोई   मीरा   दीवानी  मिले  

नयी मिलने को चीजें बहुत मिल रही
चाहूँ  कोई   निशानी  पुरानी  मिले
लोग  देने  को  भेंटें  बहुत  दे रहे
राम  मुदरी सी  कोई निशानी मिले

प्यार तो प्यार है देश से पर अलग
राष्ट्र सेवा की बस  जिंदगानी मिले
होने को  तो  जवाँ हैं  करोड़ों मगर
भगत शेखर सी हमको जवानी मिले



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८  



शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

स्वच्छता का हमें ध्यान रहे- सवैया


स्वच्छता का हमें ध्यान रहे अरु संस्कृति का अभिमान रहे
चारो तरफ हम ही हम हैं  नहीं अन्य का भी  सम्मान रहे
निज सम अन्य की  भाषा परम्परा  धर्म का पूरा मान रहे
राष्ट्र की यह भी सेवा  ही सम राष्ट्र पे अपने गुमान  रहे

हम क्या हैं इतिहास  हमारा  इसका भी आभास रहे जी
बलिदानी वीरों की  स्मृति  उर में सुरक्षित ख़ास रहे जी
सब भावों में  सेवा ऊपर  मन  भारत  का दास रहे जी
सर्वोपरि हो राष्ट्र सदा ही  हिय  के तिरंगा पास रहे जी


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८



शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2020

सही पथ




कभी-कभी संतोष के साथ
थोड़ा - थोड़ा, रुक – रुक,
वो कभी-कभी उस दिन आता;
जब अकेले में होता हूँ.

या भीड़ में भी अकेले
हो रहा होता हूँ.
और अपने अंदर
देखने लगता हूँ.
अपनी ही दृष्टि को और फिर
वो दिखाती है कुछ विरल

जब दूसरों की आँखों की
पुतलियों के भीतर
गड़ने लगता हूँ;
और वे डबडबा कर
हो जाती हैं लाल,

जब कुछ आँखों में
खटक रहा होता हूँ और
किन्हीं में तो
अटक ही जाता हूँ.
तब डरता नहीं हूँ.
परेशान भी नहीं होता;
भर जाता हूँ आत्मविश्वास से,
ज्वार की तरह.

बढ़ने लगती है ऊर्जा
साधारण सा, गेहुँए रंग का;
थोड़ा मटमैले सा,
जरा खुरदुरा भी
मेरा गोल मटोल चेहरा
चमक उठता है.

हृदय में विश्वास का
स्वर उभरने लगता है,
शरीर की भाषा भी
बदल जाती है, देखते-देखते.
आभार प्रकट करने की
दृष्टि से देखता हूँ;
अपनी विरल दृष्टि को;

मुस्काते हुए
अपनी पीठ को
अपने ही हाथों ठोंक कर,
शाबासी देने की
असफल कोशिश करते हुए
कदम तेज हो जाते हैं.
क्योंकि उन्हें आभास हो जाता है कि
वे सही पथ पर हैं.

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८