रेत के शहर में
ज्यादा सोचा नहीं
चाहा इतना कि दो
बूँद पानी मिले
मैं भटकता रहा उम्र
भर हर जगह
प्रेम की एक ज़िन्दा कहानी मिले
गैर ही आज
गैरों की बातें करें
बात अपनी ही अपनी ज़ुबानी मिले
चलने को चल रहे अनगिनत
पाँव हैं
चाल ऐसी कि जिसमें रवानी
मिले
शाम अक्सर सुहानी तो
मिल जाती है
चाहता दोपहर भी सुहानी मिले
मिलने को प्रेम में
तो बहुत मिल रहा
चाहता कोई मीरा दीवानी मिले
नयी मिलने को चीजें
बहुत मिल रही
चाहूँ कोई निशानी पुरानी
मिले
लोग देने को
भेंटें बहुत दे
रहे
राम मुदरी सी कोई निशानी मिले
प्यार तो प्यार है
देश से पर अलग
राष्ट्र सेवा की बस जिंदगानी मिले
होने को तो जवाँ
हैं करोड़ों मगर
भगत शेखर सी हमको
जवानी मिले
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
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