यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 21 मई 2019

हमको आपत्ति नहीं




हमको आपत्ति नहीं सत्ता जो तुम्हारी हो
चाह बस इतनी है कि बात  भी हमारी हो

शिक्षा तो बस निजी विद्यालय में 
नौकरी  कुछ  भी  हो सरकारी हो

रियायत माफी व घोषणा की बारिश हो 
जनता  पर  टैक्स  जितना  भारी हो

फ़क़त  उत्पाद  बढ़ाने की धुन
जहर जनता में  या बिमारी हो

समता बस भाषणों तक ही न रहे 
सब  की  शिक्षा भी एक तारी हो

बजट  रक्षा  तलक  ना सीमित हो 
स्वास्थ्य और शोध पर भी जारी हो

बहस अभिव्यक्त सब जरूरी "पवन" 
मगर  नैतिकता  संग  खुद्दारी  हो 

पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८


आगे – पीछे ही सबकी बारी है


आगे – पीछे  ही सबकी बारी है
आज उसकी तो कल तुम्हारी है

प्यार  में सब्र नहीं होता उसे
रात भी अपनी बहुत भारी है

कितने ज़ख़्मी फ़कत इशारों से
आँख  कहते  जिसे  कटारी है

उसकी कटती हैं चैन से रातें
रकीबों  ने तो बस गुज़ारी है

प्यार में हम ही जले लगता है
मगर  वहां   भी  बेकरारी  है

किसी के रहम से मरना अच्छा
ज़िन्दगी  वो  फ़क़त  उधारी है

भला करना कोई एहशान नहीं
आदमी  की  ये जिम्मेदारी है

सब पे भारी जो पवन रिश्ता है
दोस्ती  प्यार  से  भी प्यारी है  

पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

रविवार, 19 मई 2019

आओ प्यारे पुराने सुरूर गाते हैं


आओ प्यारे पुराने सुरूर गाते हैं
बस यूं ही नहीं कुछ जरूर गाते हैं

प्यार ख़ुशबू है इस पर सभी का है हक़
आम क्या ख़ास क्या जी हुजूर गाते हैं

ये  हँसते हुए चेहरे नकली भी हैं
ध्यान से देखो होके मजबूर गाते हैं

मधुर स्वर में भी होता अहंकार है
ध्यान से देखो होके मगरूर गाते हैं  

पास से सुनना उनके पवन दर्द तुम
लगता है कि कहीं बहुत दूर गाते हैं


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८


मांगो जो पानी तो वो शराब देती है


मांगो जो पानी तो वो शराब देती है
आखों से ही वो प्यार बेहिसाब देती है

अजी हाथों से मारने वाले और होते हैं
अरे वो, वो तो आखों से भी मार देती है

ख़बर है क्या उसे ही बताने चले हो
जो जग भर को खुद ही समाचार देती है

उसकी किस- किस अदा की प्रशंसा करें
वो तो फ़कत आखों से भी तार देती है

इन्कार की अदा है यूँ देखना उनका
तुम क्या समझते हो इकरार देती है


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक- poetpawan50@gmail.com

शुक्रवार, 17 मई 2019

अच्छा हुआ


अच्छा हुआ उदासियों वाले उधर गये
कुछ लोग दुश्मनों में जाकर निखर गये

रिश्ता नहीं रखना वो कई बार थे कहे
जो मान मैं गया तो उस पर बिफर गये

रिश्ते बनाये थे जिन्होने सोच समझकर
जब दिल की बात आयी तो छन से बिखर गये

जो दोस्त बने थे फ़कत सावन को देखकर
पतझड़ की भनक लगते ही जाने किधर गये

भारत के लिए कल वो जो गुमनाम दो मरे
लगता है कि जैसे मेरे लखते जिगर गये

कुचला गया सड़क पर तिरंगा लिये जो कल
अपने ही लगा माँ की इज्जत निगल गये



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

अणु डाक – poetpawan50@gmail.com



गुरुवार, 16 मई 2019

इस बार पेड़ हँसा नहीं




चौराहे के कोने पर एक पेड़ है
मैं रोज सुबह टहलने जाता हूं
कुछ देर टहल कर बैठ जाता हूं
उसकी छांव में, उसकी हंसी सुनता हूं
फिर टहलता हूं और
थोड़ी धूप चढ़ आने पर
थक कर बैठ जाता हूं
उसकी छांव में
वह फिर हंसता है और
कहता है बस !
इतने ही जवान हो !
मुझे देखो, मैं 80 वर्ष का हूं
फिर भी खड़ा हूं तन कर
और तुम...!
 मैं एक फीकी हंसी के साथ कहता
20 चक्कर लगाया हूं पूरे
और फिर यह धूप

इधर मैं शहर से 2 हफ्ते बाहर था
कल आया, टहलने गया
तो पेड़ उदास था
वह हंसा नहीं
मैं भी कुछ पूछ नहीं पाया
चला आया मौन
पर आज उसकी उदासी खली
आखिरकार मैंने पूछ ही लिया !
उदास क्यों हो ?
आज मेरी जवानी की
उड़ाओगे नहीं हंसी ?
आज तो मैंने दस ही
चक्कर लगाए हैं
वह फिर भी नहीं बोला
मैंने सर उठा कर
उसके चेहरे की ओर देखा
उसके रोम-रोम मुरझाए थे
वह से शोक में डूबा था
मैं खड़ा हो गया और
उसे पकड़ कर जोर से हिलाने
या कहिए झिंझोड़ने की
व्यर्थ कोशिश किया
मुझे अजीब लग रहा था
कि तभी पेड़ बोला- तुम्हें दिखाई नहीं देती ?
सामने खड़ी मेरी मौत !
माना कि मैं आदमी नहीं पेड़ हूं
पर मौत से किसी नहीं लगता डर
मैंने तुम्हें अपनी उम्र बता कर
गलती की थी शायद
नजर लग गई
मेरी उम्र को किसी की
मैं अपराध बोध से भर गया
मतलब मेरी ही नजर लग गयी
मेरा ह्रदय बैठ गया
मैंने फिर साहस कर पूछा
कहां खड़ी है तुम्हारी मौत ?
कैसे बहकी - बहकी बातें करते हो !
मैंने सामने दीवार पर
लिखे नारे की ओर इशारा किया
वह देखो, क्या लिखा है ?
“पेड़ लगाओ जीवन बचाओ”
अब पेड़ हंसा !
मैंने ध्यान दिया तो
उसकी हँसी में तंज था
उसने कहा इधर देखो
मेरे तरफ के मेरे चार भाई
2 हफ्ते में मार दिए गए
कल तुम आओगे तो
शायद मुझे नहीं पाओगे
मैंने ध्यान दिया तो
सचमुच 4 पेड़
इस तरफ के गायब थे
दिमाग पर जोर दिया
एक हल्का चक्कर आ गया
रास्ते का चौड़ीकरण हो रहा है
और विकास में बाधा है यह पेड़

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक –poetpawan50@gmail.com

सुपथ पथ कुपथ




सुपथ पर चला था
आवश्यकताओं के ढकेल दिया
पथ पर
कुछ ही दिन तक
चल सका था
धकेले हुए पथ पर
कि एक दिन नीची खाईं में
सुंदर चमकती हुई लालच दिखी
एक क्षण के लिए नयन
उस पर ठहरे ही थे
कि झांवर आ गयी और
सीधा उस खाईं में जा गिरे
लालच के बगल में एक टीला था
उस पर लिखा था
कुपथ में आप का हार्दिक स्वागत है  



पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८

अणुडाक- poetpawan50@gmail.com

मंगलवार, 14 मई 2019

अजब फितरत मोहब्बत


अजब फितरत मोहब्बत की कि मैं क्या आन बैठा हूँ
जो  नफरत करता  है  मुझसे उसी को चाह बैठा हूँ 

वक़्त  अपना  रहे  कैसा अदा तो खानदानी है
फटी चादर अकेली है कि फिर भी तान बैठा हूँ

वफाई  बेवफ़ाई  शायरी  करनी  जिसे कर ले
हो गयी जब मोहब्बत तो करूंगा ठान बैठा हूँ

मोहब्बत वो मोहब्बत क्या न क़ुर्बानी की कूवत हो
कहाँ  डर  जीने  मरने का कि लेके जान बैठा हूँ

मोहब्बत  की  अमर  गाथा लिखी कुर्बानियों ने है
कि सदियों की विरासत है जो हो अब मान बैठा हूँ

जरा  सी बात पर मेरी अना जो जाग जाती थी 
भरी महफ़िल में महबूबा से खा अपमान बैठा हूँ 



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

शुक्रवार, 10 मई 2019

मेरी खुशियों के छल्ले में


मेरी खुशियों के छल्ले में सदा से तू जरूरी था
मगर ये सच नहीं की तू कभी मेरी मजबूरी था
साक्षी की जरुरत कब रही है हिय के रिश्तों को
न होगा जल के भी काला प्रेम अपना कर्पूरी थी

तुझे था या न था मुझको मगर विश्वास था तुझ पर
नहीं परवाह थी क्योंकि मुझे विश्वास था मुझ पर
मात्र औरों के बल पर कोई भी ना युद्ध जीता है
किसी भी जीत की संभावना तो अपने ही भुज पर

ये ऐसा रोग है विश्वास इसकी एक औषधि है
कि इस सम्बन्ध की गहराई नापोगे तो जलधि है
रहा अविश्वास इस जग में ही सबसे क्रूर बैरी है
समन्वय का मिले जोरन तो एकदम ताजी सी दधि है

तुझे खोना तुझे पाना नहीं अभिलाषा थी मेरी
रहे तू हर्ष में प्रतिक्षण कि इतनी आशा थी मेरी
अपेक्षा से कभी भी प्रेम सच्चा निभ नहीं पाता
मैं बिखरा व्याकरण था हिन्दी का तू भाषा थी मेरी


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com