यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

प्रेम पाते हैं तो हम संवरते प्रिये


प्रेम  पाते  हैं तो  हम  संवरते प्रिये
रूठता प्रेम  तो  हम  बिखरते  प्रिये
होता पुलकित ये मन प्रेम आभास से
प्रेम करते  हो तो हम निखरते  प्रिये

सोचता  हूँ  कभी   वंदना  है  प्रिये
कभी  लगता  है कि प्रार्थना है प्रिये
नभ से विस्तृत पयोधि से गहरा लगे
प्रेम  लगता  है  प्रभु अर्चना है प्रिये

प्रेम से तुलसी  भी  राम  पाए प्रिये
ध्रुव थे बालक मगर धाम  पाए प्रिये
कलयुग में असम्भव भी संभव हुआ
मीरा के प्रेम  में श्याम  आये  प्रिये

प्रेम पावन  परम सीदा – सादा प्रिये
जीवन  आधार  ये है न बाधा प्रिये
प्रभु से पहले  तभी  प्रेमी पूजे गये
कृष्ण प्रभु हैं मगर पहले राधा प्रिये


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८  



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें