यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 18 नवंबर 2025

ज्यादातर की ज़िन्दगी


 


पुस्तकों को करीने से सजा के जो रखता था

वही अब ज़िन्दगी में तिनकों जैसा बिखरा है

आपसी संबंधों को ज़मा करके जो रखता था

आज वही हर जगह से पूरा - पूरा उखड़ा है

 

जो अक्सर लोगों को, दिलों को जोड़ता था

उसी  का  दिल  आज  टुकड़ा – टुकड़ा है

जो बातों से उदास चेहरों पर लाता था मुस्कान

उसी  का  चेहरा  आज उतरा - उतरा है

 

जो सबको जोडकर महफ़िलें सजाता था

आज उसी  पर  सबसे  ज्यादा पहरा है

जिसे वह खुद से अधिक प्रेम करता था

उसने ही उसे दिया घाव सबसे गहरा है

 

जो दूसरों के लिए दौड़ता रहता था दिन रात

आज उसके दुःख में कोई नहीं ठहरा है

जो लोगों में भरता रहता था सतत उत्साह

आज उसका ही दिल दुःख से भरा कमरा है

 

ज्यादातर की ज़िन्दगी में ज़िन्दगी ऐसी ही है

आँखों में काजल  नहीं  बहता हुआ कजरा है  

 

पवन तिवारी

१८/११/२०२५

        


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