ज़िन्दगी
अब झर रही है
चित्र
धुँधले दिख रहे हैं
और कुछ साथी हमारे
देख
हमको हँस रहे हैं
जो
भी साथी हँस रहे हैं
वो
भी उतना झर गये हैं
कितने
चश्में उनके बदले
याद
कुछ ना रह गये हैं
ऐसी
ही है सोच जग की
कहने
को अपने पराएँ
दूसरों
पर हँस रहे जो
ढल रहे उनके भी साए
खुद
पे हँसने का न साहस
दूसरों
पर हँस रहे रहें हैं
छूटता जा रहा जीवन
रोज़ थोड़ा धँस रहे
हैं
दुःख
में भी यदि हर्ष चाहो
हंसना
खुद पे सीख लो तुम
दोष औरों में न देखो
दोष
को ही जीत लो तुम
पवन
तिवारी
१८/०९/२०२५
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