यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 31 मार्च 2020

महामारी और माटी




इस महामारी ने स्पष्ट दिखा दिया,
गरीब अपनी माटी से प्रेम करता है.
अमीर सुविधाओं से,
कैसी विडम्बना है ?
विपत्ति में गरीब अपने गाँव
हर हाल में लौटना चाहता है.
और अमीर भागना चाहता है, परदेश !
आज जब महामारी फ़ैली है
चारो ओर, प्राणों पर संकट है.
लोग घरों में स्वयं को कर लिए हैं बंद.
मोटर,बस,रेल सब बंद !
ऐसे में प्राणों को
हथेली पर धर कर,
साधनहीन,गरीब,श्रमिक,मजदूर
भूख प्यास की चिंता किये बिना,
अपनी माटी, अपने गाँव की ओर
सैकड़ों हज़ारों कोस दूर
पैदल ही चल पड़ा है.
सरकारों की गुहार और
पुलिस की मार भी
नहीं रोक पा रही.
उन्हें भूख और प्यास की चिंता नहीं है,
पता है उनकी असली चिंता ???
उनकी चिंता है- अपनों के बीच
अपनी माटी में मरना.
उन्हें मौत से भी नहीं,
अपनी माटी से बिछड़ कर
मरने का डर है.
वे नगर की कमाई
गाँव में लगाते हैं.
एक अच्छा घर बनाते हैं.
जो अमीर हैं,
वे भारत से लेते हैं
विविध प्रकार के ज्ञान और दक्षता
जैसे चिकित्सा,अभियांत्रिकी,भौंतिकी,रसायन
जीव,अन्तरिक्ष, कृषि एवं भू विज्ञान आदि का,
और विदेशों में करते हैं उनका उपयोग
स्व की सुविधाओं हेतु
नहीं लौटते अपनी माटी में
 पूछने पर कहते हैं- जीवन की गुणवत्ता
यहाँ है, भारत में नहीं !
स्वार्थ, स्मृतियों को कितना दुर्बल बना देता है.
जिस देश में जीवन और गुण दोनों पाया
उसी पर दोष.
उनके लिए प्रथम हैं सुविधायें !
गरीब के लिए अपनी माटी प्रथम है.
अक्सर उच्च शिक्षा बनाती है स्वार्थी,
और करा देती है
संवेदनाओं की असमय हत्या !
यहाँ तक सोचने पर
मेरा मन लड़खड़ाने लगा है.
मस्तिष्क को भी चक्कर आ रहा है,
अब आप सोचिये !  



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८   
  







चलो दुःख है तो


चलो दुःख है तो खुशियों वाली भी बरात आयेगी
कि प्रेमी हो  तुम्हारे  व्याह में हर जात आयेगी

कि तुमने प्यार की खातिर प्यार कुर्बान कर डाली
चलेगा प्यार का  किस्सा  तुम्हारी  बात आयेगी

उजाड़ा है बहुत खुद को  बहुत से घर बसाये हैं
तुम्हारे हिस्से में भी प्यार की सौगात  आयेगी

भरोसे का मोजज़ा प्यार में तुम  खुद ही देखोगे
मिलाने तुमसे  लेकर खुद  ही कायनात आयेगी

कि  होती ख़ूबसूरत  रात भी है  दूल्हे से पूछो
प्रतीक्षा में है रहता दिन ढले कब  रात आयेगी


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८  

सोमवार, 30 मार्च 2020

भोले गाँव के सभी शिकारी


भोले गाँव के सभी शिकारी
सब ही जगह है दुनियादारी
किस देसी की सब से यारी
माटी  बोली  पवन तिवारी

कविता में घुस आये जुआरी
व्यंग्य के नाम पे है मकारी
पावन शब्द हैं किसके दुआरी
अक्षर  बोले  पवन  तिवारी

कविता में  जिनके चिंगारी
फैले पढ़ते   ही  उजियारी
कितने पूछे  बारी – बारी
जिह्वा बोले  पवन तिवारी

कविता से किसकी  है यारी
पैंट पे किसकी  धोती भारी
हिंदी का है   कौन  पुजारी
अधर कहें सब पवन तिवारी

जिसकी है बस एक  सवारी
हिन्दी है बस  एक  दुलारी
गाँव की कथा कहे को प्यारी
भाषा बोले पवन तिवारी

कथ्य से जिसकी  नातेदारी
खेलें  उपन्यास  सी  पारी
संवादों  की  मीठी   आरी
बोली कहानी पवन  तिवारी

शब्दों  की भी  मारी  मारी
सब  बैठें  हैं  लिये  कटारी
गीतों  में  पावनता   न्यारी
छंद कहें  हैं  पवन  तिवारी

अपनी  बड़ाई  सबको  प्यारी
एक से एक हैं हस्तियाँ न्यारी
पवन पुष्प  भर बाग़  बड़ी है
कहें  बीर  बहु  पवन तिवारी

पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८     


शनिवार, 28 मार्च 2020

आप आते हो, दिल लगाते हो


आप आते  हो, दिल   लगाते   हो
थोड़ा-थोड़ा सा  उसको  जलाते  हो
प्यार का काम किसको जलाना नहीं
सच बताओ न सच दिल लगाते हो

पास आ  धड़कने  क्यों  बढ़ाते हो
प्यार करते हो या  बस  जताते हो
सब बदन चाहते प्यार के नाम पर
सच बताओ न सच दिल लगाते हो

सपनों में आके भी तुम  जगाते हो
प्यार से  माथे को  चूम  जाते हो
मेरा सपना  हक़ीकत  बनेगा कभी
सच बताओ न सच दिल लगाते हो

तुमपे मरती हूँ  सबको  बताते हो
पर मेरे पास  तुम  रोज  आते हो
तुम भी मरते हो सबको बताओगे कब
सच बताओ ना सच दिल लगाते हो

प्यार का  बेर  चुपके  से  खाते  हो
ब्याह  जल्दी  नहीं  क्यों  रचाते  हो
दिल का दरवाज़ा मैं बंद कर दूँगी कल
सच बताओ ना सच दिल  लगाते  हो



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

   
   

शुक्रवार, 27 मार्च 2020

कैसे कहूँ कि दिल को


कैसे कहूँ कि  दिल  को आराम   आता
इस दर्द में  तेरे सिवा  कोई काम न आता

तुझको पता उदासियाँ क्यों छाती हैं मुझ पर
हम  चाहतें  जिसे  हैं  वो  श्याम न आता

ये दिल  की  बेक़रारी  बेचैनियाँ  रह – रह
सारा  क़ुसूर  तेरा  जो पै गाम   आता  

इस  जुबाँ  को   तेरी  ऐसी  लगी है लत
तेरे  सिवा होंठों  पे  कोई नाम  न आता

तुझको मैं भूल  जाऊँ  कोई और  देख लूँ
तेरे वज़न का प्यार में कोई दाम न आता

तुझ तक पहुँच के रूह से मिलना तेरी पवन
इस रास्ते  में  तुझसा  कोई धाम न आता



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८   

गुरुवार, 26 मार्च 2020

घास छीलना



 जीवन भर घास छीलने का मुहावरा
सहज भाव में न्यूनता का,
विकास में स्थायी अवरोध
और व्यंग्यात्मक उपहास
और अपमान का
थोपता है बोध !
किन्तु ,अगर वो देखे
जिसके पास हो समझ,
कला और दृष्टि !
वह घास छीलने को
सिद्ध कर सकता है महान कर्म !
क्योंकि प्रत्येक कार्य में
कला का अदृश्य किन्तु,
शसक्त पक्ष उपस्थित होता है.
अब्राहम लिंकन ने भी छीली थी घास !
जिसे घास छीलने में, उसके
कला पक्ष का है ज्ञान ;
वह घास सतत छीलता है
किन्तु, उसमें मिट्टी आती नहीं
ज़रा भी उठकर!
किन्तु कलाहीन जब
छीलने जाता है वही घास !
घास से अधिक खोद देता है मिट्टी,
और काट लेता है कभी उंगलियाँ भी.
फिर खुरपी पर, कभी खुद पर,
होता है खिन्न
क्योंकि घास छीलना
कला है, न्यूनता नहीं,
बात तो मात्र दृष्टि की.

पवन तिवारी
सम्पर्क – ७७१८०८०९७८



सोमवार, 23 मार्च 2020

संघर्षों का तुमुलनाद


संघर्षों   का   तुमुलनाद  कर
अरि के अन्तस् में खल जाओ
अनल अनिल को मिलने मत दो
खींच के उनको जल पर लाओ

एक  नहीं   असंख्य  चाहिए
आओ  सारे  मिलकर  आओ
अपने हिय ही प्राण शक्ति से
अनहद  जैसी  नाद  लगाओ

न्यौछावर का प्राण  ले लो तुम
संघर्षों   को   बल   देना  है
मिथ्या  को  रौंदते  चलो तुम
सत्य को जीत का फल देना है

नव शोणित तुम ही भविष्य हो
सर्वश्रेष्ठ  तुम्हें   हल  देना है
रचो कि  ऐसा गर्व  हो सबको
राष्ट्र  को सुन्दर कल  देना है

शिशु किशोर से युवा आयु तक
नव  प्रवाह  चेतन  भरना  है
बाहु  ज्ञान  का संगम कर दो
असम्भव   संभव   करना  है

सोचो मत निर्णय का काल है
धमनी  में  संचार  बढ़ा  दो
काल यही उपयुक्त समझ कर
अभी  नवल इतिहास गढ़ा हो


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८