मेरा चेहरा देख के कितने ही
चेहरे मुड़ जाते हैं
मुझे देखते ही उनके चेहरे के रंग उड़ जाते हैं
फोन मेरे पहली घंटी के बजते
ही कट जाते हैं
मुझे सामने देख परिचितों के
चेहरे घट जाते हैं
कभी समय था पता पूछते मिलने
घर पे आते थे
बिना काम के यूँ ही
घंटों साथ बैठ बतियात थे
दूर दिखे तो हाथ हिलाते पास
में आकर मिलते थे
हाथ पकड़ कर हाल पूछते मुखड़े हँसते खिलते थे
कभी किसी दिन बच्चों के संग
घर पर आओ भइया
कभी हमें भी
सेवा करने का अवसर दो भइया
मेरे लायक काम कोई
हो बिना हिचक के कहना
आप हमारी टोली के
हो सबसे सुंदर
गहना
अक्सर फोन व्यस्त ही रहता
दिन भर भागा दौड़ी
रविवार को पर मित्रों संग कटती चाय पकौड़ी
सबके फोन उठाता था मैं सबसे मिलता – जुलता
विपति नहीं पड़ती तो
बोलो राज ये कैसे खुलता
समय ने खेल खेल के मुझको
जीवन समझाया है
दुःख के इस मौसम में सुंदर सा अनुभव पाया है
ये अनुभव
ही पार करेगा
मेरी उलझी नइया
धन्यवाद पहचान
कराया साथी, बाबू,
भइया
पवन तिवारी
०८/०५/२०२४
पवन तिवारी
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