याद आती हैं वो, गाँव
जाता हूँ मैं
एक लम्बी सी चोटी थी
वो गांछ्ती
जल्दी-जल्दी में
चिट्ठी थी वो बांचती
कोई उनके दुप्पटे को
छू देता जो
बुदबुदा करके उसको
थी वो डांटती
मौसम कोई भी गर्मी
या जाड़े का हो
आंगन में घिस के
बासन को वो माँजती
सब के सुख दुःख में
शामिल वो रहती सदा
अपने दुःख को दबा करके भी नाचती
कुछ भी कहता मैं
उनसे वो कहती नहीं
आँखों-आँखों में बस
मुझको थी जाँचती
जिस घड़ी गाँव से मैं
शहर को चला
आँखें उनकी तो बस
अश्रु थी बाँचती
जाते-जाते कहा लौट
आओगे क्या
नाम लेती तुम्हारा
तो माँ डांटती
फिर गया गाँव तो थी विदा हो गयी
प्यार झूठा पड़ा भूख ही साँच थी
उनकी यादों से ही
बतियाता हूँ मैं
शहर में जब कभी ऊब
जाता हूँ मैं
पवन तिवारी
सम्पर्क –
७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com
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