यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 28 जनवरी 2018

याद आती हैं वो, गाँव जाता हूँ मैं


























जब भी गाता हूँ मैं गुनगुनाता हूँ मैं
याद आती हैं वो, गाँव जाता हूँ मैं


एक लम्बी सी चोटी थी वो गांछ्ती
जल्दी-जल्दी में चिट्ठी थी वो बांचती
कोई उनके दुप्पटे को छू देता जो
बुदबुदा करके उसको थी वो डांटती

मौसम कोई भी गर्मी या जाड़े का हो
आंगन में घिस के बासन को वो माँजती
सब के सुख दुःख में शामिल वो रहती सदा
अपने दुःख को दबा करके भी नाचती 

कुछ भी कहता मैं उनसे वो कहती नहीं
आँखों-आँखों में बस मुझको थी जाँचती
जिस घड़ी गाँव से मैं शहर को चला
आँखें उनकी तो बस अश्रु थी बाँचती

 जाते-जाते कहा लौट आओगे क्या
नाम लेती तुम्हारा तो माँ डांटती
फिर गया गाँव तो थी विदा हो गयी
प्यार झूठा पड़ा भूख ही साँच थी


उनकी यादों से ही बतियाता हूँ मैं
शहर में जब कभी ऊब जाता हूँ मैं


पवन तिवारी
सम्पर्क – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com



   

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