रिश्ता है बाप बेटे
का नाज़ुक बहुत
कैसे निभे इक हाट,
दूजा बाज़ार है
हम सोंचते हैं दिल
से वो दिमाग से
कैसे निभेगा प्यार
जहां कारोबार है
हो शरीर रुग्ण तो
उसका इलाज़ है
उसका करें क्या जो
मन से बीमार है
हो भरा गुबार, खाए
खार बैठा हो
बना दे यार, प्यार
ऐसा औज़ार है
घूमा खूब टटोला जग
को एक बात बस हाथ लगी
जेब हो हल्की, बिना
बात भी,सारा जग नाराज़ है
सुनता नहीं था, एक
बात मतलब की कर दी हमने
रुसवा हो पूछा हमने फिर
बोला सब बकवास है
सरकारी बाबू से पूछा
जी अब कब - कब अवकाश है
जेब तुम्हारी जिस
दिन हल्की बस उस दिन अवकाश है
पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com
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