प्रेम
की छाँव में राम की चाह में
जानकी
आ गयी गौरी की राह में
गौरी
ने पाया जब जानकी को शरण
याद
आया उन्हें अपना भी आचरण
प्रेम
में शिव के कितनी वो व्याकुल रही
सिद्ध
तप से किया प्रेम का व्याकरण
प्रेम
उदात्त कितना है, की थाह में
सिय
का उर जल रहा प्रेम के दाह में
सिय
का अंतःकरण देख के गौरी का
निज
का उर भी सिसकने लगा आह में
अपने
दिन याद आये भरे नैन तब
वैसी
स्थिति में ही सिय को देखा है अब
प्रेम
की पीर जब प्रेम से मिल गयी
गौरी
ने कह दिया इच्छा पूरी हो सब
क्षण
उसी सिय को सारे शगुन हो गये
शंख
घंटे के स्वर मन्त्र से हो गये
नेत्र
बायाँ निरंतर फड़कने लगा
क्षण
उसी राम सीता के पिय हो गये
पवन
तिवारी
२५/१०/२०२५
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