यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 7 नवंबर 2025

स्वार्थ ने धृतराष्ट्र को अंधा किया



स्वार्थ ने धृतराष्ट्र को अंधा किया

नाम को इतिहास   में गंदा किया

स्वार्थ का वो क्रम है बढ़ता जा रहा

लोगों  ने  संबंध  को  धंधा किया

 

सब लगे हैं अपनी बंदर बाँट में

आ गये  संबंध  सो  सब हाट में

चाह डल्ल्फ़ बेड की है आराम की

कौन  सोयेगा   पुरानी  खाट में

 

मेज  कुर्सी  पर  पढ़े जो ठाट में

बाप  तो  उनके  पढ़े  थे टाट में

जीभें लपकें चाउमीनों की तरफ

है कहाँ वैसा  मजा  अब चाट में

 

पापा की अब डांट बंधती गाँठ में

क्या मज़े  थे  बाबू जी की डांट में

पुत्र कुछ ज्यादा ही पिसते जा रहे

भार्या और माँ  के  दुर्गम  पाट में  

 

काल  ने  भी  चाल  ऐसी  है चली

बंद  संबंधों  की  होती  हर  गली

पुष्प खिलने की प्रतीक्षा अब कहाँ

मसल देते लोग अब कच्ची कली

 

पवन तिवारी

७/११/२०२५   

 

     


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