यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 28 जनवरी 2016

कुछ साहित्यिक दुनिया वाले आज़ादी के दीवाने


आज की  राजनीतिक  ऊष्मा  में अचानक नेता जी सुभाष पर जारी गोपनीय पत्रों ने  क्रान्तकारियों के जीवन, उनकी पीड़ा , उपेक्षा और षडयंत्र आदि चीजों  ने  उनके स्वतंत्रता आन्दोलन  के साथ साहित्यिक अवदानों की तरफ मेरा ध्यान आकर्षित किया . राजनीति पर तो अक्सर लिखता रहा हूँ ,सो आज अपने पाठकों, मित्रों से कुछ ऐसे  साहित्यकारों  के बारे में बात करूँगा  जो साहित्य के साथ- साथ  देश सेवा में भी पीछे नहीं रहे .
आज़ादी की लड़ाई में साहित्यकारों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है या यूँ कहें कि गुलामी के दिनों में अधिसंख्य साहित्यकार क्रांतिकारी पहले थे ,बाद में लेखक ,पत्रकार  आदि थे ,कवियों की रचनाओं में देश प्रेम की भावनाएं उफान पर थी .कई कवियों और पत्रकारों को राष्ट्रवादी रचनाएँ  व लेख लिखने के कारण जेल जाना पड़ा.ऐसे अनेकोंनेक क्रांतिकारी साहित्यकार हैं .
जिनमें गणेश शंकर विद्यार्थी ,राम प्रसाद बिस्मिल ,माखनलाल चतुर्वेदी , दिनकर ,गया प्रसाद शुक्ल ' स्नेही ', श्रद्धा राम फिल्लौरी , भवानी प्रसाद मिश्र , ,यशपाल और शिवमंगल सिंह सुमन जी के कुछ प्रसंगों का मैं नीचे संक्षेप में जिक्र करने  जा रहा हूँ . वैसे उपरोक्त विभूतियों के आलावा भी अनेकानेक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी साहित्यकार हैं पर सबका वर्णन करना सम्भव नहीं है इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ .
गणेश शंकर विद्यर्थी   :  विद्यार्थी  जी आज़ादी की लड़ाई व साहित्य को जोड़कर एक दुसरे का पूरक बनाने वाले महापुरुष थे . विद्यार्थी जी का जन्म 26 अक्तूबर १८९० में अतरसुइया स्थित इलाहबाद में हुआ था एवं  १९३१ में बेहद कम उम्र में स्वर्गवास हो गया . इस अल्पायु में विद्य्ढ़ती जी ने जो किया वह अप्रतिम है .उन्होंने कानपुर से  “ प्रताप नामक प्रथम राष्ट्रीय अखबार निकाला  .यहाँ से राष्ट्रवादी पत्रकारों और साहित्यकारों की एक नयी पौध तैयार हुई ..यहीं पर चंद्रशेखर आजाद , भगत सिंह , राज गुरु , सुख देव  को एक नई दोष मिली .इसी प्रताप से प्रेम चन्द, माखनलाल चतुर्वेदी ,बालकृष्ण शर्मा नवीन , गया प्रसाद शुक्ल सनेही जैसे तमाम लोगो को साहित्य एवं पत्रकारिता का एक उम्दा समझ विकसित करने का मंच दिया . भगत सिंह के प्रेरणा श्रोत विद्यार्थी जी ही थे .विद्यार्थी जी एक उम्दा सम्पादक ,पत्रकार होने के आलावा वे उच्च कोटि के लेखक भी थे . वे 5 बार अंग्रेजों के खिलाफ लिखने के कारण  जेल भी गये . उन्होंने संस्मरण , जेल डायरी ,निबंध , पत्र  और कहानी  भी लिखी . गणेश शंकर विद्यार्थी रचनावलीमें उनकी रचनाएँ संकलित है .इनके नाम से भारत सरकार पत्रकारिता पुरस्कार भी प्रदान करती है .
राम प्रसाद  बिस्मिल  :  राम प्रासाद बिस्मिल एक सच्चे राष्ट्र भक्त के अलावा वे एक उम्दा शायर एवं लेखक भी थे .उनकी एक रचना स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा थी .उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में जन्में  बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा भी  जेल में रहते हुए लिखी , जो एक उम्दा आत्मकथा है , जिसका नाम निज जीवन की एक छटा है   सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है , देखना है जोर कितना बाजु कातिल  में है , बिस्मिल जी की ही रचना है .
माखनलाल   चतुर्वेदी  :    चतुर्वेदी का जन्म बावई गाँव  जनपद होशंगाबाद मध्यप्रदेश में हुआ था ,वे प्रखर राष्ट्रवादी थे , अपनी रचनाओं के माध्यम से जनता में स्वदेश प्रेम की भावना जागृत करते रहते थे . वे कर्मवीर नाम से एक राष्ट्रीय अख़बार भी  चलते थे . माखन जी का एक उपनाम एक भारतीय आत्मा है  उनकी एक रचना देखिये .... सूली का पथ ही सीखा हूँ ,सुविधा सदा बचाता आया .मैं बलि पथ का अंगारा हूँ , जीवन ज्वाला जलाता आया [शीर्षक अमर राष्ट्र ] दूसरी रचना देखिये  - चाह नहीं सुर बाला के गहनों में गुथा जाऊं , चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ    ---------------------- मुझे तोड़ लेना वनमाली , उस पथ पर तुम देना फेंक . मातृभूमि पर शीश चढानें , जिस पथ जावें वीर अनेक .
भवानी प्रसाद मिश्र  :  मिश्र जी का जन्म भी होशंगाबाद जनपद में हुआ था ,.माखनलाल चतुर्वेदी जी और मिश्र जी का अच्छा साथ रहा . १९४२ से १९४५ तक स्वतंत्रता आन्दोलन में भागलेने के कारण जेल में बंद रहे . मिश्र जी ने कुछ दिनों तक  विदद्यालय खोलकर  पठन पठान किया ,जिसमें विद्द्यार्थियों को राष्ट्रवादी विचारों से अवगत कराया  जाता था .मिश्र जी की एक रचना देखिये  ---  बुरी बात है , उठो पांव रक्खो , रकाब पर , जंगल जंगल , नददी नाले , कूद्फांद्कर  धरती रौदों , जैसे भांडों की रातों में बिजली कौधे , ऐसे कौंधो [ शीर्षक उठो ]
गया प्रसाद शुक्ल सनेही ’ :  सनेही जी जन कवि थे . उनकी कविता पढ़ने की अनूठी शैली थी . जनता उनकी कविता सुनकर भाव विभोर हो उठाती. उन्हें हिन्दी काव्य सम्मेलनों का प्रतिष्ठापक  कहा जाता है .सनेही जी सच्चे राष्ट्रवादी थे . उनका जन्म हड्दागाँव जिला उन्नाव , उत्तरप्रदेश में हुआ  था .वे स्कूल अध्यापक थे परन्तु १९२१  में त्यागपत्र देकर आज़ादी के आन्दोलन में कूद पड़े उनकी एक राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत रचना देखिये ----
 जो भरा नहीं है भावों से
बहती जिसमें रसधार नहीं
वह हृदय नहीं है पत्थर है
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं
श्रद्धाराम फिल्लौरी :  पंडित श्रद्धाराम शर्मा फिल्लौरीएक वैदिक धर्म को मनाने वाले धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे ,पर उतने ही बड़े राष्ट्र भक्त  व लेखक भी थे , वे धार्मिक आयोजनों के बहाने लोगों को एकत्रित करते और राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाते,  श्रद्धाराम  फिल्लौर के रहने वाले थे .अंग्रेज सरकार ने उनपर फिल्लौर आने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था .उन्होंने ही हिन्दी का प्रथम उपन्यास भाग्यवती लिखा . ॐ जय जगदीश हरे .... आरती श्रद्धाराम जी की ही रचना है .
यशपाल :  यशपाल जी का स्वतंत्रता आन्दोलन और साहित्य दोनों में अतुलनीय योगदान है .प्रेमचन्द के बाद हिन्दी साहित्य में यशपाल जैसा कहानीकार शायद ही कोई हो . ३दिसम्बर १९०३ को पंजाब  के फिरोजपुर छावनी में पैदा हुए . यशपाल जी के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया , जब वे लाहौर के नेशनल कालेज में पढने गये . वहीं इनका परिचय भगत सिंह , राजगुरु व सुखदेव से हुआ .इसके बाद इन्होने सशस्त्र क्रांति में भाग लिया . दिली और लाहौर षड्यंत्र मामले में अंग्रेज सरकार ने १९३२ में 14 साल की सजा सुनाई थी.१९७१ में इन्हें पद्मभूषण मिला.
शिवमंगल सिंह सुमन ‘ :  उन्नाव की ही वीरभूमि पर सुमन जी का जन्म 5 अगस्त १९१५  को हुआ .एक बार किसी कवि सम्मेलन से सुमन जी घर आ रहे थे ,कि कुछ लोगों ने इन्हें अगवा कर आखों पर पट्टी बांधकर एक जगह ले गये . वहां आखों से पट्टी हटाई गयी तो सामने क्रांतिवीर चंद्रशेखर आज़ाद थे , आज़ाद ने सुमन जी से कहा  - क्या तुम मेरी रिवाल्वर दिल्ली पहुंचा सकते हो ? सुमन जी ने तुरंत हाँ कह दी,तो ऐसे थे सुमन जी . उनकी एक रचना देखिये माँ कब से खड़ी पुकार रही , पुत्रों निजकर में अस्त्र गहो , सेनापति की आवाज़ हुई , तैयार रहो , तैयार रहो .आओ तुम भी दो आज विदा , अब क्या अड़चन , क्या देरी , लो आज बज उठी रणभेरी , पैतीस कोटि लड़के बच्चे , जिसके बल पर ललकार रहे , वह पराधीन बिन निज गृह में , परदेशी की दुत्कार सहे . कह दो अब हमको सहन नहीं , मेरी माँ कहलाये चेरी , लो आज बज उठी रणभेरी .[शीर्षक रणभेरी ]
रामधारी सिंह  दिनकर ‘ :  दिनकर जी का जन्म बिहार के बेगूसराय में १९०८ में हुआ .दिनकर जी को राष्ट्रकवि  कहा जाता है . उनकी रचनाएँ राष्ट्रप्रेम की भावनाओं की उद्दात लहरें हैं .उन्होंने देश व भाषा दोनों को खूब प्रेम किया , उन्होंने राष्ट्रसेवा  के अलावा साहित्य की भी ख़ूब सेवा की . इन्होने हिन्दी पर राष्ट्रभाषा व राष्ट्रीय एकता तथा राष्ट्रभाषा आन्दोलन और गांधी जी  जैसी महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी .संस्कृत के चार अध्याय’ , गंभीर विशद  व खोजपूर्ण ग्रन्थ है . उर्वशी के लिए दिनकर जी को १९७२ में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला . इनकी एक रचना देखिये --- दाता, पुकार मेरी, संदीप्ति को ज़िला दे, 
बुझती हुई शिखा को संजीवनी पिला दे। 
प्यारे स्वदेश के हित अंगार माँगता हूँ, 
चढ़ती जवानियों का शृंगार मांगता हूँ।[शीर्षक आग की भीख ] एक अन्य रचना देखिये  --- 
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।




सोमवार, 25 जनवरी 2016

देख लीजिये 16 कारसेवकों की लाशों पर खड़े इस नेता को

आज कर्पूरी ठाकुर की 91 वीं  जयंती के अवसर पर जो मुलायम सिंह जी ने कहा  वह  एक भारतीय के रूप में असहज कर गया . क्या कोई वरिष्ठ नेता  इतनी ऊंचाई से एक झटके में जानबूझकर सिर्फ वोटों के लिए इतना नीचे गिर सकता है .वैसे मुलायम जी का यूँ गिरने का इतिहास रहा है पर  उम्र के इस पड़ाव पर आकर  लाशों की वैसाखी पर खड़ा होने की चाहत खतरनाक है.
 2 नवम्बर 1990 को  तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के आदेश पर  पुलिस  ने बेगुनाह हिन्दुओं पर गोलियां बरसाई थी. सरकार के अनुसार 16 मामूली जाने गयी और जाती तो भी कोई बात नहीं . हालांकि यह विवादित है. भाजपा का अनुमान है कि 168 मारे गए थे.  विहिप  के अनुसार अकेले विहिप ने  76 शरीर का अंतिम संस्कार किया. खैर अचानक 25 वर्ष बाद मुलायम को वे 16 लाशें क्यों याद आयी. क्योंकि उन्हें २०१७ के चुनाओं में अपनी राजनीतिक इमारत जर्जर सी लग रही है उसके ढहने का डर सताने लगा है  सो उन्हें सहारे के रूप में वे 16 लाशें याद आयी .जिनके सहारे वे २०१७ में अपनी जर्जर राजनीति को बचा सकें .  ये घृणित सच है कि सपा का आज तक जो अस्तित्व है वो उन 16 लाशों के कारण ही है . उन्होंने मुस्लिम वोटों के बिखरने के डर [ कहीं मायावती के पास कुछ  छिटककर न चले जाय] से दाव फिर खेला . उन्होंने खुद ही कहा कि  इसीलिए मुस्लिमों में उनके प्रति भरोसा जगा और पार्टी आज यहाँ तक पहुँची . उन्होंने ये भी कहा कि धर्मस्थल को बचाने के लिए और भी जाने जाती तो वे पीछे नहीं हटते. ये बयान मुस्लिमों को आश्वस्त  करने के लिए  था .  हाँ उन्होंने उन मौतों पर औपचारिक रूप से दुःख जताया जो सिर्फ राजनीतिक दिखावा था .वे चाहते तो उसके लिए हाथ जोड़कर माफी मांग सकते थे और अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती भी बता सकते थे .पर ऐसे में मुस्लिम भाइयों के इतने बड़े वोट बैंक को हथियाते कैसे . मुझे जलियांवालावाला बाग़ याद आ रहा है .जहाँ 13 अप्रैल1919 को ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने गोलियां चला के निहत्थे, लोगों को मार डाला था और हज़ारों लोगों को घायल कर दिया था। यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य हत्याकाण्ड ही था। कहीं ये वही जनरल डायर तो नही है  खैर  आगे चलकर इस घटना के प्रतिघात स्वरूप सरदार उधमसिंह ने 13 मार्च 1940 को उन्होंने लंदन के कैक्सटन हॉल में इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ ड्वायर को गोली चला के मार डाला।
मुझे १९८५ की वो फिल्म भी याद आ रही है जिसमें अनिलकपूर अमरीश पुरी को ललकारते हुए भरी सभा में कहते हैं - देख लीजिये  75 लाशों पर खड़ा ये ठराकल कितना ऊँचा दिखाई दे रहा है ...आप कह सकते हैं 16 लाशों पर खड़ा ये .............................. हर एक आदमी के साथ कई लोग होते हैं वह अकेला नहीं मरता,  उसके साथ दम तोड़ता है उसकी बीबी का सुहाग ,उसके बच्चो का भविष्य ,उसके घर में बसने वाली एक एक खुसी ,उसके आंगन में उतरनेवाली एक -एक खुसी , सबकी एक साथ मौत हो जाती है . कुछ समझ में आया ....... जल्दी भूलने की आदत है भारतीयों को ....
इस पुराने लेख में एक नया अंश आज जोड़ रहा हूँ...... जरूरी भी है....
मुलायम सिंह  ने कल अर्थात 27 अगस्त 2016 को खुद पर लिखी पुस्तक के विमोचन के अवसर पर बोलते हुए कहा कि  कारसेवकों पर गोली चलवाना आवश्यक था. नहीं तो मुस्लिमों का हिन्दुस्तान पर से भरोसा उठ जाता... इसके लिए  16 की जगह 30 जानें जाती तो भी मुझे अफ़सोस नहीं होता. ऐसा ही बयान मुलायम ने  आज से लगभग 7 महीने पहले कर्पूरी ठाकुर की जयन्ती पर 24 जनवरी 2016 को दिया था. फिर अचानक 7 माह बाद इस बयान की क्या जरूरत पड़ गयी. इस घटना को गुजरे 25 साल बीत गये , इससे पहले ये बयान क्यों नहीं आया . जो 16 कारसेवक मरे मुलायम के इस बयान से उनके परिवार पर क्या गुजरेगी . ये एकदम तलछट की राजनीति है . सम्वेदनहीन और मौकापरस्त बयान. आगामी चुनावों में मुस्लिम वोट सपा से छाटकें  न ,उसके लिए ये बयान है. कांग्रेस नई रणनीति के साथ चुनाव में आ रही है. इसलिए मुलायम को डर है कि कहीं कुछ वोट छिटक न जाएँ. 18% मुस्लिम वोट के लिए मुलायम ने सारी नैतिकता ताक पर रख दी.18% तो सिर्फ सवर्ण हैं उत्तर प्रदेश में . ऐसे में जनता का दायित्व बनता है कि ऐसे लोगो को राजनीति से बाहर का रास्ता दिखाए . 
पुनः मैं मेरीजंग फिल्म का वो संवाद को याद करता हूँ ......
याद करिए ''मेरी जंग का वो सम्वाद जिसमें अनिल कपूर अमरीश पुरी को ललकारते हुए भरी सभा में कहते हैं - देख लीजिये 75 लाशों पर खड़ा ये ठराकल कितना ऊँचा दिखाई दे रहा है ...आप कह सकते हैं देख लीजिये 16 लाशों पर खड़ा ये मुलायम सिंह कितना ऊँचा दिखाई दे रहा है ............................. हर एक आदमी के साथ कई लोग होते हैं वह अकेला नहीं मरता, उसके साथ दम तोड़ता है उसकी बीबी का सुहाग ,उसके बच्चो का भविष्य ,उसके घर में बसने वाली एक एक खुसी ,उसके आंगन में उतरनेवाली एक -एक खुसी , सबकी एक साथ मौत हो जाती है . कुछ समझ में आया .......