यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 22 जून 2019

एक अभिलषित अभिलाषा हो





तुम लगती हो हरदम मुझको, फागुन  सावन सी
तुम आती हो तो लगता है ऋतु वसंत आवन सी
तुम प्रियतम हो,तुम अनुपम हो और कहूँ क्या मैं
इक-इक भाव-भंगिमा तुम्हरी लागे मन भावन सी

एक अभिलषित अभिलाषा हो युगों - युगों से तुम
तुम ऐसे शोभित हो जैसे - मस्तक पर कुमकुम
खुले हुये नयनों के सपनों से ओझल गर होती हो
आह्लादित उर अगले ही क्षण हो जाता गुमसुम

जब से हिय के द्वार हुई है प्रेम की यह दस्तक
बंद पड़ी  मेरे  जीवन की  खुल गयी है पुस्तक
तुम्हें समर्पित क्या कर दूँ मैं वचन दूँ क्या प्रियवर
तुम्हरे लिए निछावर कर दूँ जब कह दो मस्तक

कोई दस्तक कोई पुस्तक कोई मस्तक ना चहिये
जैसे हो वैसे रहना बस प्रेम तुम्हारा ही चहिए  
अभिलाषा तुम से कोई ना किसी तरह की है प्रियवर
तुमसे तो विश्वास के पूंजी वाली गठरी बस चहिये

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

गुरुवार, 20 जून 2019

कि अपने गाँव का शुभनाम हो जाऊँ


कभी देखा  था मैं शहर का सपना
सोचता हूँ कि अब मैं गाँव हो जाऊँ
सभी कुछ नकली-नकली सा लगे है
कहे दिल कोई  देसी ठाँव  हो जाऊँ

शहर  रोबोट  बनता जा रहा है
सोचता हूँ कि अपने गाँव को जाऊँ
अकेलापन भी  ज्यादा मारता है
सोचता हूँ तुम्हारे पास आ जाऊँ

अंधेरे  को  डरा  दूं मैं  जरा क्या
कि मैं खुद एक तन्हा शोर हो जाऊँ
लौटने  का है मन फिर बचपने में
मजा  आयेगा  लड्डू चोर हो जाऊँ

नहीं फौब्बारे की मुझको जरूरत
नहा के नद्दी में शराबोर हो जाऊँ
ना साबुन की जरूरत बचपने में
लगा के चिकनी माटी गोर हो जाऊँ

ना किरकिट ना कोई स्टेडियम जी
कि गुल्ली डंडा वाला खेल हो जाऊँ
मेरे  बाबू  जी ही मेरी आसमां हैं
कि उनके चरणों की बस धूल हो जाऊँ

किसी  के  प्यार  में मरना नहीं जी
फ़क़त इतना कि खुद का प्यार हो जाऊँ
न ख्वाहिश कार बंगलो और धन की
कि माँ की आखों में थोड़ी सी चमक पा जाऊँ

कि मुझको और कुछ चहिये नहीं जी
कि अपने गाँव का शुभनाम हो जाऊँ
मिलूँ  इक  साथ  अबकी  दोस्तों से
गाँव  के  बाग़ का मैं आम हो जाऊँ

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

मंगलवार, 18 जून 2019

पवन तिवारी के दोहे








आयी स्थिति ऐसी अब,प्रश्न बने जब जश्न
लोग हैं उत्तर दे रहे, प्रश्न का उत्तर प्रश्न

भूख  प्यास से  मर रहे, बच्चे रोज के रोज
पत्रकारों  की ख़बर  में, अभिनेता की खोज

लेकर  शपथ  भी  भूलते, कर्तव्यों का बोध
ऐसों पर हो चाहिए, अब निश्चित ही शोध

अपनों के ही काज में, लोग करें अवरोध
अपनों के भी दोष पर, होवे  खुला विरोध

कामचोर का  हो  रहा,  सबसे ज्यादा नाम
नाम दाम उनका नहीं, सच जो करते काम

राम नाम  लेकर जाने, कितने ही गये तर
लेकिन राम के प्रश्न का, मिलेऊ नहीं उत्तर

इस कलयुग में सम्भव है, सबका ही कुछ दाम
परे कि जो सब  दाम से, उनका नाम है राम 

नाम प्रशंसा  बिक रहे, आज किलो के भाव
अर्थ के आगे विवश हैं, कहें पवन सब ताव



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

रविवार, 16 जून 2019

तेरा मेरा साथ पुराना जाने जाना जाने जाना


तेरा  मेरा  साथ  पुराना  जाने जाना जाने जाना
नया मिला तो हुआ बेगाना जाने जाना जाने जाना

प्रेम  समर्पण कुर्बानी है  कहता है जग सारा ये
मेरा ही  हिस्सा परवाना जाने जाना जाने जाना

प्यार में खता रही दोनों  की पर तू भोली सदा रही
बुरा ही मैं क्यों कहे ज़माना जाने जाना जाने जाना

लड़की है जाने दो कहकर सारा काम तमाम किया
लड़का  ही  होगा  दीवाना जाने जाना जाने जाना

लड़की मतलब  सावित्री है सूपर्णखा को भूल गये
लड़का दोषी एक ही गाना जाने जाना जाने जाना

सारी लड़कियाँ अच्छी ही हैं सारे लड़के होते बुरे
पवन सही ना ये पैमाना जाने जाना जाने जाना



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – ७७१८०८०९७८   



शनिवार, 15 जून 2019

कभी – कभी जब भीड़ बहुत हो जाती है


कभी – कभी जब भीड़ बहुत हो जाती है
दीवारों  मिलकर  बात  किया करता हूँ

कटती है दिन रात फ़कत गर कटती है
ऐसे  में  क्या फर्क कि जीता मरता हूँ

प्यार से कोई गलत भी कह दे सुन लेता हूँ
और  अनाड़ी  समझे  हैं कि  मैं डरता हूँ

हमें लपेटो मत जी अपनी जिद की अना में
फूटे   गुब्बारों   में  और  हवा  भरता  हूँ

फितरत  वैसे  दूजों  के  दुःख  हरता  हूँ
जिद  आने  पर  चरा  खेत भी चरता हूँ


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com


शुक्रवार, 14 जून 2019

माँ का मिला आशीष तो फिर ऐसा अंजाम हुआ


माँ का मिला आशीष तो फिर ऐसा अंजाम हुआ
मिट्टी  वाले  धंधे  का  सोने  सा  दाम  हुआ


चला  झूम  मैं तभी  डगर  में  काँटा एक चुभा
दर्द में लिपटा शब्द जो निकला माँ का नाम हुआ


वर्षों बाद मिला अम्मा से झुककर नमन किया
सर  पर  हाथ  रखा  तो जैसे चारो धाम हुआ


था गरीब अम्मा  का बेटा बस आशीष मिला
फलित हुआ आशीष देश में नाम तमाम हुआ


जिसने भी माँ को पूजा माँ का सम्मान किया
बुरे  समय  में  भी उसका बिगड़ा काम हुआ


जिसने भी है इस जग में माँ का अपमान किया
कर्म  भाग्य  भी दुत्कारा उसे जग बदनाम हुआ


माँ  की  आज्ञा  का जो पालन करता रहा सदा
उसके  हक़  में  दुर्लभ से दुर्लभ  परिणाम हुआ


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com


शनिवार, 8 जून 2019

जो भी बचे है तव और मम्


जो भी बचे है तव और मम्
जीवन  में  वही  रहते सम

मैं  हूँ  अकेला   तन्हा  तुम
तुम मैं मिलकर हो जायें हम

खुशियाँ  तो  दल - बदलू हैं
सच्चे  दोस्त  हैं केवल ग़म

वर्षों  बाद   मिला  दुश्मन
देखा  तो  हुई  आँखें  नम

आदमी  सचमुच है यदि वो
समझेगा न किसी  को कम

बातें   बड़ी   नहीं  करता
होता  जिसमें   औरा  दम

छोटा   होता   जितना  जो
होता   उसमें   उतना  ख़म




पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

शुक्रवार, 7 जून 2019

किस पर करें विश्वास की दीवार झांकती है


किस पर करें विश्वास की दीवार झांकती है
ऐसा  विकास  ज़िंदगी  कि धूल फाँकती है

इस  कदर  हवस बढ़ी कि घर-बार तक बिगड़े  
माँ घर के रिश्तों की चादर कई बार टांकती है

अपनी  परम्परा  को  कुचल  आधुनिक हुए
वो बिन बताये माँ को  अब द्वार लांघती है

माँ ने जिन्हें सिखाया था आजादी का मतलब
उनसे ही  अब आज़ादी के अलफ़ाज़ मांगती है

तुतला  के  डांटते  हुए  समझाये  जब बेटी
सब  हँसे  पर  लगता  है  कि माँ डांटती है

हुस्न  तो  कमाल पर अल्फ़ाज़ बा - कमाल
जैसे  वो  मेरे  दिल की  पातियाँ  बांचती है

चाहत  भी  सख्त  है पवन पहरे भी सख्त हैं
गुजरूँ  तो  जताने  को  फ़क़त वो खाँसती है

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

गुरुवार, 6 जून 2019

हमारा घर परिवार


द्वार पे एक छोटा सा नल है
मिलता  उससे निर्मल जल है
पास में है अमरुद  का तरुवर
बगल में छोटा सा है शिव घर

अम्मा रोज चढ़ाती जल है
सामने बाग़ में भी हलचल है
घर के  बाएं नीम खड़ी है
दुर्गा  माँ की चुनर पड़ी है

खटिया एक नीम के नीचे
चाचा बैठिके सुरती  मीचे
झबरा  कुत्ता  नीचे लोटे
गड़ही  में  पानी के  टोटे

चाचा  हमरे  तुतलाते  हैं
गोल गोल वो बतियाते हैं
सीदे - सादे   सच्चे   हैं
बुढ़ापे  में   भी  बच्चे हैं

दीदी गुण  में सबकी  नानी
पर घर की वो बिटिया रानी
छोटी  बहन शरारत  करती
चुपके बताशा फ्राक में भरती

बाबू जी  की  बात निराली
छुटकी  दीदी उनकी दुलारी
पान से उनकी खूब है यारी
गमछा बाँध  बनावें क्यारी

एड़ी  तक  धोती पहने हैं
सूती कुर्ता  क्या कहने हैं
मूछ पे ताव लगाकर बोले
सुबह-सुबह हो कहाँ को डोले

अम्मा  तो सबकी है आशा
चटनी चोखा  दही  बताशा
औषधि हर पीड़ा की अम्मा
मैं भी प्यारा भले निकम्मा

आँखों में काजर वो लगाती
हाथ घुमा के नज़र भगाती
सुबह को विद्यालय जब जाता
चुपके से दस  पइसा पाता

सबसे अच्छी प्यारी अम्मा
हमरे  लिए बनती चेनम्मा
बाबू जी  से भी लड़ जाती
हमरे लिए उनसे अड़ जाती

एक  जो  मेरी  गइया है
समझो   मेरी  मइया  है
गोबर  मैं  ही  उठाता हूँ
पीकर  दूध  मैं  गाता हूँ


उसका बछड़ा बड़ा  सलोना
उसको करता चोना – मोना
उछल - कूद  जब करता है
खुशियों  से  मन भरता है

तुलसी  जी  का  चौरा  है
उनका   अपना  औरा  है
रोज चढ़ता घर भर जल है
उससे सबको आत्मिक बल है

बस मेरा  परिवार है  इतना
और कहूं घर द्वार है कितना
मैं  ही  एक  निठल्लू  था
घर भर में मैं ही कल्लू था

पर परिचय अब बदल गया है
निठल्लू भी  सम्भल  गया है
शब्दों  का  छोटा  उपवन हूँ
मैं साहित्य का मंद  पवन हूँ


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com


बुधवार, 5 जून 2019

समय से पहले करो तो खराब होता है


समय से  पहले  करो तो खराब होता है
वक़्त  आने पर  सबका  हिसाब होता है

पीपल की तरह उग ही आते हैं सिरफिरे
ऐसे  ही  कहीं  थोड़े  इन्कलाब होता है

फ़कत  उजाले  से सूरज नहीं होता कोई
तमाम हुनर नेकनीयत आफताब होता है

अमीर  को दावत फ़क़त है गरज चमचई
दिया  भूखे  को  रोटी तो शबाब होता है

जरूरी नहीं सुन्दर चेहरा सचमुच सुंदर हो
सलीकेदार  सिलवट में भी नक़ाब होता है

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com