किस पर करें विश्वास
की दीवार झांकती है
ऐसा विकास ज़िंदगी कि धूल फाँकती है
इस कदर हवस
बढ़ी कि घर-बार तक बिगड़े
माँ घर के रिश्तों
की चादर कई बार टांकती है
अपनी परम्परा को कुचल
आधुनिक हुए
वो बिन बताये माँ को
अब द्वार लांघती है
माँ ने जिन्हें
सिखाया था आजादी का मतलब
उनसे ही अब आज़ादी के अलफ़ाज़ मांगती है
तुतला के डांटते
हुए समझाये जब
बेटी
सब हँसे पर
लगता है कि
माँ डांटती है
हुस्न तो कमाल
पर अल्फ़ाज़ बा - कमाल
जैसे वो मेरे
दिल की पातियाँ बांचती है
चाहत भी सख्त
है पवन पहरे भी सख्त हैं
गुजरूँ तो जताने
को फ़क़त वो खाँसती है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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