द्वार पे एक छोटा सा
नल है
मिलता उससे निर्मल
जल है
पास में है अमरुद का
तरुवर
बगल में छोटा सा है
शिव घर
अम्मा रोज चढ़ाती जल
है
सामने बाग़ में भी
हलचल है
घर के बाएं नीम खड़ी
है
दुर्गा माँ की चुनर
पड़ी है
खटिया एक नीम के
नीचे
चाचा बैठिके सुरती मीचे
झबरा कुत्ता नीचे
लोटे
गड़ही में पानी
के टोटे
चाचा हमरे तुतलाते हैं
गोल गोल वो बतियाते
हैं
सीदे - सादे सच्चे हैं
बुढ़ापे में भी बच्चे हैं
दीदी गुण में सबकी नानी
पर घर की वो बिटिया
रानी
छोटी बहन शरारत करती
चुपके बताशा फ्राक
में भरती
बाबू जी की बात
निराली
छुटकी दीदी उनकी
दुलारी
पान से उनकी खूब है
यारी
गमछा बाँध बनावें
क्यारी
एड़ी तक धोती पहने हैं
सूती कुर्ता क्या
कहने हैं
मूछ पे ताव लगाकर
बोले
सुबह-सुबह हो कहाँ
को डोले
अम्मा तो सबकी है
आशा
चटनी चोखा दही बताशा
औषधि हर पीड़ा की
अम्मा
मैं भी प्यारा भले
निकम्मा
आँखों में काजर वो
लगाती
हाथ घुमा के नज़र भगाती
सुबह को विद्यालय जब
जाता
चुपके से दस पइसा
पाता
सबसे अच्छी प्यारी
अम्मा
हमरे लिए बनती
चेनम्मा
बाबू जी से भी लड़
जाती
हमरे लिए उनसे अड़
जाती
एक जो मेरी गइया है
समझो मेरी मइया है
गोबर मैं ही उठाता
हूँ
पीकर दूध मैं गाता
हूँ
उसका बछड़ा बड़ा सलोना
उसको करता चोना –
मोना
उछल - कूद जब करता है
खुशियों से मन भरता
है
तुलसी जी का चौरा है
उनका अपना औरा है
रोज चढ़ता घर भर जल
है
उससे सबको आत्मिक बल
है
बस मेरा परिवार है इतना
और कहूं घर द्वार है
कितना
मैं ही एक निठल्लू था
घर भर में मैं ही
कल्लू था
पर परिचय अब बदल गया
है
निठल्लू भी सम्भल गया है
शब्दों का छोटा उपवन
हूँ
मैं साहित्य का मंद पवन हूँ
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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