गौण
सा पात्र हूँ मैं, उपन्यास
है
एक रेखा हूँ लक्षण हूँ बस,व्यास है
किंतु
व्यक्तित्त्व इनसे भी मिलकर बने
डूबते
को तो तिनकों से भी आस है
सारे
संबंध का मूल विश्वास है
टूट
जाता तो बस त्रास ही त्रास है
जो
निभे न निभाये नहीं
जा सके
उनके
जीवन में पछतावा बस काश है
जिनमें
आशा है उनका तो आकाश है
उनके
साहस के आगे समय दास है
कोई
सामान्य, मामूली कैसा भी हो
जिसको
छू देंगे ये बस वही ख़ास है
है
न ज़िन्दादिली ज़िन्दगी लाश है
जैसे
पैरों के नीचे
दबी घास है
किंतु
जिनमें भरा प्रेम जीवन से है
उनके
जीवन में बस हर्ष का राज है
पवन
तिवारी
२६/०६/२०२५
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