यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 26 फ़रवरी 2022

जिजीविषा

वर्षो पहले

मैंने देखा था

मेरे पुराने घर की

दरकती दीवार में

एक नन्हा पीपल

ज़िंदगी पाकर

मुस्करा रहा था

एक दिन मेरी गाय

पगहा तुड़ाकर

वहाँ पहुँच गयी

मेरे हट्ट – हट्ट

करते – करते

पीपल का मुस्काता

अंग खा गया.

कुछ दिनों बाद

उधर से गुज़रते हुए

नन्हे पीपल पर नज़र पड़ी

वह फिर मुस्करा रहा था

उसमें नये मासूम

पत्ते निकल आये थे

मेरा भी चेहरा खिल गया

वह थोड़ा स्वस्थ हुआ ही था कि

मुन्नू की भैंस चरने जा रही थी  और

संयोग से उसकी कुदृष्टि पड़ गयी

नन्हें पीपल पर

इस बार केवल

दरार के  अंदर

जितना था उतना ही बचा

कुछ महीने बीते

उसमें फिर

कोमल पात निकले

इस बार वह

बकरियों के हत्थे चढ़ा

बचने की कोई आशा न थी

लोग कहते हैं –

बकरी का चरा पौधा

दुबारा उभर नहीं पाता

पर वह उभरा ,

इस बार दीवार ही गिर पड़ी

कुछ दिन बाद

वह फिर से

ढेलों के बीच से

झाँकता हुआ दिखाई दिया

जीवन के प्रति

नन्हें पीपल की

जिजीविषा और संघर्ष

यदि आदमी देखते हुए

समझ पाता तो

निश्चित ही जीवन

हरा भरा होता.

अब जब वर्षों बाद

गर्मी की छुट्टियों में

गाँव लौटने पर उसी जगह

एक बड़े पीपल के नीचे

बकरियों को सुस्ताते देखा तो.

 

पवन तिवारी

०६/०९/२०२१

 

रोना

रोना सबसे पवित्र कला है

रोना शहनाई जैसा है

जिसमें अनेक स्वर हैं

सुख में रोना

प्रेम में रोना

करुणा में रोना

स्मृति में रोना

भय में तथा

क्रोध में रोना

और आत्मीयता में

और रोना किसी के सम्मान में

किसी के कंधे पर टिकाकर

किसी के गले या

भुजा में समर्पित होकर रोना

मनुष्यता और प्रकृति की

संवेदनात्मकता की अप्रतिम

आभामयी रचना है

रोने का सम्मान करना सदा !

०९/०८/२०२१

 

 

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2022

उसको रोते हुए देखा तो

उसको रोते हुए देखा तो रुलाई आयी

देख रोते हुए  मुझको उसे हँसी आयी

 

मुझको खुश देख करके वो बहुत ही रोई थी

पड़ी नज़रें मेरे ज़ख्मों पे तो फिर कमी आयी

 

सुन के बरबादी  मेरी  जश्न  मनाया उसने

शुक्र है मौत पर  मेरे  वो सुन  चली आयी

 

एक दिन दूर कहीं जल्दी मुझे जाना था

पैर ठहरे भूल वश जो तेरी गली आयी

 

पवन तिवारी

२५/०१/२०२१

अब मैं जानता हूँ

अब  मैं  जानता  हूँ   हो  नहीं  तुम चीज  कोई

रहो निश्चिन्त  अब  तुमसे  नहीं  उम्मीद  कोई

 

सभी नैतिक हैं जब तक लूटने का ना मिले अवसर

मिला मौक़ा तो होंगे बेईमाँ सब नहीं शरीफ़ कोई

 

तुम्हें  धोखा मिला है कि फिर भी जीना चाहते तुम

सुनो  शब्दों  से   मिलकर  गुनगुनाओ  गीत  कोई

 

सही  जाती  नहीं है  प्यार  के  जख्मों  की  पीड़ा

लगाओ  कविता  का  मरहम ग़ज़ल सा मीत कोई

 

अँधेरे  से  सदा  को  चाहते  तुम  मुक्त  होना

सुनो मन से जलाओ ज्ञान का फिर दीप  कोई   

 

पवन तिवारी

२३/०१/२०२१

हम तुझे चाहने में मारे गये

हम तुझे चाहने में मारे गये

हम जिताने में तुझे हारे गये

 

एक रिश्ता तेरा बचाने में

हमसे रिश्ते कई हमारे गये

 

प्यार में खुश हो बहुत अच्छा है

हम हैं बेचैन क्या तुम्हारे गये

 

प्यार पा करके हमने क्या खोया

अपनी आज़ादी  के  सितारे गये

 

मेरे दिल में हो जब से तुम आयी

दिल से क्या दोस्त बाकी सारे गये

 

जब से आयी हो पवन जीवन में

सपनों तक से हैं  चाँद तारे गये  

 

पवन तिवारी

२५/०१/२०२१  

समय का खेल

समय का खेल ऐसा बुलबुला पानी सा होता है

जो अपनी ज़िन्दगी में प्रेम की बानी सा होता है

कि जिसके बिन ज़िन्दगी की लगे तस्वीर आधी सी

एक छल से फ़कत जीवन में  बेमानी सा होता है

 

समय सुख ले भी सकता है समय दुःख दे भी सकता है

समय  संकट  में  जंगल  में  मसीहा  दे  भी  सकता है

समय  जलते  दीयों  को  एक   झोंके  से  बुझा   देता

समय  मरुथल  वीराने  में  जलाशय  दे  भी सकता है

 

समय में अपनों को  दुश्मन  बनाने की भी क्षमता  है

समय  इकलौता  है  जो  ना किसी के रोके रुकता है

सभी  द्म्भों  घमंडों  को  समय  है  नष्ट  कर  देता

समय  के  सामने  क्या  आदमी   देवत्व  झुकता  है  

 

पवन तिवारी

२९/०१/२०२१

मैं निगाहों में था उसके

मैं निगाहों  में था उसके उसके दिल में और कोई

बात मुझसे अनमनी  सी और की यादों में  खोई

हाथ थामे थी किसी की संग   मेरे   साथ    फेरे

झूठ का  पर्दा  उठा  तो  ग़ैर  की  बाहों  के  घेरे

 

संस्कारित  बंध  को  यूँ  कलुष से दागा गया था

इस तरह से चटक कर सम्बंध का धागा गया था

उसके वहशी कृत्य से  था  वंश ने अपमान झेला

ले उठा सुख शान्ति गृह का यौन का वो छुद्र खेला

 

 

कांति यौवन ढल गया अब मलिन मुख ले अब विचरती

ध्वंस   मर्यादा   को  करके स्वांग  नैतिकता  का रचती

अब  उपेक्षित  हो   गयी  तो   संस्कारों    की    दुहाई

कुल कलंकित था  किया जब  तब  नहीं थी लाज आयी 

 

पवन तिवारी

२९/०१/२०२१   

 

 

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

थी पहचान मोहब्बत में कई वर्ष लगा

थी  पहचान  मोहब्बत  में  कई  वर्ष लगा

और फिर धीरे-धीरे थोड़ा-थोड़ा फर्क लगा

 

सम्भल रहे थे नहीं उसके झूठ  उससे ही

तमाम तरह से देखा था उसने तर्क लगा

 

उदासी दोनों तरफ यदा कदा रहती थी

दोनों तरफ से ही अलग-अलग अर्थ लगा

 

बड़े दिन बाद यूँ ही छू लिया उसने उसको

रह गयी सन्न वो जब पूरी तरह बर्फ लगा

 

गुनाह अपने याद आये  और रोने  लगी

अपना आँसू ही लगा ठंडा,नहीं गर्म लगा 

 

बेवफ़ा थी वो मगर वो भी उससा निकला

पता चला जो उसे दिल में जैसे बर्क लगा

 

पवन तिवारी

१५/०१/२०२१  

 

तुझको उम्दा ख़याल कर दूँगा

तुझको उम्दा ख़याल कर दूँगा

खत्म सारे  मलाल  कर दूँगा

 

एक दिन ऐसी चाल कर दूँगा

रह के भी चुप बवाल कर दूँगा

 

बाप ने कह दिया निकम्मा है

एक दिन मैं कमाल कर दूँगा

 

फ़कत चुप ही न शर्मिन्दा होंगे

अगर सच्चा  सवाल  कर दूँगा

 

तेरे इक हाँ की बस जरूरत है

प्यार से मालामाल कर दूँगा

 

मेरे  शब्दों  में  बड़ा  जादू है

गाल बातों से लाल कर दूँगा

 

तेरे गुस्से का भी स्वागत होगा

अपना आगे मैं  गाल कर दूँगा

 

पवन इक बार प्यार कर तो मुझे

मैं  तुझे   बेमिशाल   कर  दूँगा

 

पवन तिवारी

११/०१/२०२१