मैं
निगाहों में था उसके उसके दिल में और कोई
बात
मुझसे अनमनी सी और की यादों में खोई
हाथ
थामे थी किसी की संग मेरे साथ
फेरे
झूठ
का पर्दा
उठा तो ग़ैर की
बाहों के घेरे
संस्कारित बंध
को यूँ कलुष से दागा गया था
इस
तरह से चटक कर सम्बंध का धागा गया था
उसके
वहशी कृत्य से था वंश ने अपमान झेला
ले
उठा सुख शान्ति गृह का यौन का वो छुद्र खेला
कांति
यौवन ढल गया अब मलिन मुख ले अब विचरती
ध्वंस मर्यादा
को करके स्वांग नैतिकता
का रचती
अब उपेक्षित
हो गयी तो
संस्कारों की दुहाई
कुल
कलंकित था किया जब तब
नहीं थी लाज आयी
पवन
तिवारी
२९/०१/२०२१
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें