रोना सबसे पवित्र कला है
रोना
शहनाई जैसा है
जिसमें
अनेक स्वर हैं
सुख
में रोना
प्रेम
में रोना
करुणा
में रोना
स्मृति
में रोना
भय
में तथा
क्रोध
में रोना
और
आत्मीयता में
और
रोना किसी के सम्मान में
किसी
के कंधे पर टिकाकर
किसी
के गले या
भुजा
में समर्पित होकर रोना
मनुष्यता
और प्रकृति की
संवेदनात्मकता
की अप्रतिम
आभामयी
रचना है
रोने
का सम्मान करना सदा !
०९/०८/२०२१
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें