यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 29 जुलाई 2024

आज - कल दर्पण उपेक्षित से पड़े हैं



आज - कल दर्पण उपेक्षित से पड़े हैं

और  वे  इक  धूल  में  हँसते  खड़े हैं

खुरदुरे चेहरों को कन्धों पर उठाकर

ध्रुव सरीखे आचरण पर ज्यों खड़े हैं

 

विष  भरे  कितने  ही  सोने के घड़े हैं

कितने  के  गहनों में हीरे तक जड़े हैं

किंतु जब भी आचरण की बात आयी

दृष्टि   में   वे  हर  दिशा  से ही सड़े हैं

 

मान की ख़ातिर कहाँ कितने लड़ें हैं

कहने  को अपने लिए सब ही बड़े हैं

जब समय आकर  परीक्षा माँगता है

सब   बड़े  सर  रेत  में   जैसे  गड़े हैं

 

पवन तिवारी

२८ /०७/ २०२४ 

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