जो भी बचे है तव और
मम्
जीवन में वही
रहते सम
मैं हूँ अकेला तन्हा तुम
तुम मैं मिलकर हो
जायें हम
खुशियाँ तो दल -
बदलू हैं
सच्चे दोस्त हैं केवल ग़म
वर्षों बाद मिला दुश्मन
देखा तो हुई आँखें नम
आदमी सचमुच है यदि वो
समझेगा न किसी को कम
बातें बड़ी नहीं करता
होता जिसमें औरा दम
छोटा होता जितना जो
होता उसमें उतना ख़म
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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