यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 20 जून 2019

कि अपने गाँव का शुभनाम हो जाऊँ


कभी देखा  था मैं शहर का सपना
सोचता हूँ कि अब मैं गाँव हो जाऊँ
सभी कुछ नकली-नकली सा लगे है
कहे दिल कोई  देसी ठाँव  हो जाऊँ

शहर  रोबोट  बनता जा रहा है
सोचता हूँ कि अपने गाँव को जाऊँ
अकेलापन भी  ज्यादा मारता है
सोचता हूँ तुम्हारे पास आ जाऊँ

अंधेरे  को  डरा  दूं मैं  जरा क्या
कि मैं खुद एक तन्हा शोर हो जाऊँ
लौटने  का है मन फिर बचपने में
मजा  आयेगा  लड्डू चोर हो जाऊँ

नहीं फौब्बारे की मुझको जरूरत
नहा के नद्दी में शराबोर हो जाऊँ
ना साबुन की जरूरत बचपने में
लगा के चिकनी माटी गोर हो जाऊँ

ना किरकिट ना कोई स्टेडियम जी
कि गुल्ली डंडा वाला खेल हो जाऊँ
मेरे  बाबू  जी ही मेरी आसमां हैं
कि उनके चरणों की बस धूल हो जाऊँ

किसी  के  प्यार  में मरना नहीं जी
फ़क़त इतना कि खुद का प्यार हो जाऊँ
न ख्वाहिश कार बंगलो और धन की
कि माँ की आखों में थोड़ी सी चमक पा जाऊँ

कि मुझको और कुछ चहिये नहीं जी
कि अपने गाँव का शुभनाम हो जाऊँ
मिलूँ  इक  साथ  अबकी  दोस्तों से
गाँव  के  बाग़ का मैं आम हो जाऊँ

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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