यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 24 जनवरी 2018

हिन्दी साहित्य के लाल



 हिंदी के आरंभिक लाल
अब्दुर्र,नल्ल, शांग के काल
फिर विद्यापति, दलपति, नरपति
चंदरवरदाई, भट्ट केदार

 मधुकर, जगनिक, खुसरो अमीर
फिर रामानंद, तुलसी, कबीर
मीरा, जायसी, कुतुबन, मंझन
सब भक्ति-भाव के थे गुंजन

भूषण और बिहारी अद्भुत
औ रसखान,रहीम भी अद्भुत
हिंदी के ये सरल सहज सुत
खड़े किए हिंदी के नए बुत

एक दास नरोत्तम थे अद्भुत
उनके पद प्यारे थे सचमुच
बस एक सुदामा चरित लाए
जन मन के मन को वे भाए


केशव आये, घन बन छाये
फिर सदल मिश्र, इंशाअल्ला
संग शिवप्रसाद, सुखलाल,लक्ष्मण
और श्रीनिवास भी संग आए

एक श्रद्धाराम फिल्लौरी भी
दूजे बदरीनाथ चौधरी भी
एक महावीर द्विवेदी जी
एक गोपालराम गहमरी भी

    हिंदी का दीप नया आया
वह भारतेंदु था कहलाया
पुनि धारा बही हिंदी जल की
हिंदी सरिता कल - कल सी की

सबने नव, नूतन, नवल लिखे
हिंदी के नव  अध्याय लिखे
एक जगन्नाथ रत्नाकर थे
हिंदी के सच्चे चाकर थे

एक श्याम सुन्दर दास आये
एक देवकीनंदन खत्री  भी
पाछे से गुलेरी भी आये भी
हिन्दी को मिलकर चमकाए

एक पुत्र प्रताप नारायण मिश्र
आये पीछे से कौशिक भी
इन दोनों की अपनी शैली
हिन्दी अपने रंग में रंग ली

    ये चार पुत्र थे चार दिशा
हिंदी की कथा, हिंदी की व्यथा
हिंदी को नव उत्थान दिए
हिंदी को अनगिन मान दिए

थे प्रेमचंद अवतार हुए
हिंदी के लाल गुलाल हुए
फिर धार बही रसधार बही
हिंदी की सोंधी बयार बही

एक रामनरेश त्रिपाठी थे
देशज हिंदी की माटी थे
‘राधिकारमण भी आये थे
वे भी हिन्दी संग छाये थे  

    एक पुत्र थे बालमुकुंद गुप्त
एक पूत हुए हरिऔध सुनो
जयशंकर की भी गूंज सुनो
चहुँ दिशि गूँजी हिंदी की सुनो

एक सुदर्शन पंडित आये
वे हार-जीत सब कुछ बतलाए
जो भी बोले, बस सच बोले
हिंदी के पुत्र जब मुख खोलें

हिंदी का शुक्ल पक्ष आया
वह रामचंद्र था कहलाया
शिव पूजन और गुलाबराय
हिंदी दोनों को बड़ी भाय

    एक अद्भुत बालक और हुआ
हिंदी का जगमग भाल हुआ
मैथिलीशरण वह नाम हुआ
हिंदी का जय-जय गान हुआ

    एक वृंदावन, एक चतुरसेन
एक बालकृष्ण शर्मा नवीन
एक माखनलाल चतुर्वेदी
एक पदुमलाल पुन्ना बख्शी

हिंदी का पुत्र महान हुआ
राहुल साँकृत्यायन नाम हुआ
फिर गया प्रसाद शुक्ल ‘स्नेही’
एक बेचन शर्मा ‘उग्र’ हुआ

सांकृत्यायन के क्या कहने
पर्यटन व लेखन उनके गहने
बहु  भाषाओं के ज्ञानी
दुनिया घूमे,दुनिया मानी

बुद्धि,स्नेह और व्यंग्य, वात्सल्य
देश प्रेम का घोष यहाँ हैं
उग्र रचे सच कड़वा – कड़वा
गया का देश प्रेम यहाँ है

फिर मत पूछो क्या क्या न हुआ
पुनि महादेवी और रामवृक्ष
एक सूर्यकांत ही सूर्य हुआ
हिंदी का चंदन, वीर हुआ

वह महाप्राण फिर कहलाया
मतवाला गया मतवाला बन
लौटा तो निराला कहलाया
हिंदी के लिए सब छोड़ आया

    एक नई प्रथा, एक नया रंग
हिंदी में भरे अनगिनत रंग
हिंदी विरुद्ध कोई बोला तो
गांधी तक से वह लड़ आया

तब हिंदी का वसंत आया
बह चलने लगा समीर मंद
पंत, भगवती, सोहन, बच्चन
सुभद्रा व यशपाल थे सज्जन


ऐसे में श्याम नारायण तड़के
दिनकर, दिनकर बनकर दमके
ऐसे में आलोचना लिए
हजारी, नंद दुलारे धमके

डॉक्टर रामकुमार आये
जगदीश चंद्र पाछे आये
दोनों एक नाव के साथी थे
नाटक विधा संग संग लाए

ऐसे में कन्हैयालाल मिश्र
निबंध पोटली धर लाये
लक्ष्मी नारायण मिश्र हुए
नाटक के लिए प्रसिद्ध हुए

एक कथा पुरुष फिर से आया
जैनेंद्र कुमार वो कहलाया
हिंदी का कुल सरिता सा बहा
हर विधा का तेज प्रसार हुआ


फिर पुत्रों ने हुंकार भरी
हिंदी की खेती हरी - भरी
एक ‘अश्क’ एक ‘नेपाली’
एक नागार्जुन, अज्ञेय हुए

‘अश्क’ की कथा बड़ी मनरंगी
गीत ‘नेपाली’ के सतरंगी
नागार्जुन का लेखन क्रंदन
आम जनों के दुःख का वन्दन

एक अनंत गोपाल शेवड़े थे
    शमशेर बहादुर एक हुए
    एक ‘अंचल’ एक विष्णु प्रभाकर थे       
    द्वारिका प्रसाद को संग लाए



   एक अमृत नागर लाल हुए
   एक मुक्तिबोध दमदार हुए
   जानकी वल्लभ शास्त्री भी
   मेधावी हिंदी के  लाल हुए

   एक रामविलास शर्मा आये
   डॉ नगेंद्र को भी लाए
   हिंदी के तलछट खोज-खोज
   बहुधा विकार को साफ़ किए

   एक भवानी मिश्र हुए
   एक शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ हुए
   एक बच्चन सिंह चुपचाप हुए
   हिंदी के आला लाल हुए

   एक प्रभाकर माचवे थे
   भारत भूषण अग्रवाल हुए
   एक देशज कवि चलकर आया
   था नाम त्रिलोचन धर लाया

   हिंदी चित्रपटों के पट  पर
   गीत लिखे संगीत के तट पर
   हिंदी के स्नेहिल यह दीप
   थे नरेंद्र, शैलेंद्र, प्रदीप



कैसे भूले भैरव प्रसाद को
और फणीश्वरनाथ रेणु को
गांव खेत खलिहान-छाँव को
हिंदी की इस कठिन नाव को

गिरिजाकुमार माथुर आए
कविता संग नाटक ले आए
रांगेय राघव गति से आए
वे अल्प समय में ही छाए

एक नयी पौध उज्वल हिंदी
चमकी बन माथे की बिंदी
रंग-रंग के पुष्प खिले ‘
हिंदी को बहुत से सुमित मिले

विवेकी राय विवेक लिए
परसाई व्यंग्य के बाण लिए
आलोचना का शस्त्र लिए शाही
नीरज झोली में गीत लिए


सब मिश्रित रामदरश लाये
श्रीलाल शुक्ल, मोहन आये
कृष्णा सोबती, हिंदी शोभती
अमरकांत की कथा मोहती

धर्मवीर की कथा कहानी
कुंवर नारायण की कविता रानी
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
उनकी रचना का क्या कहना

नामवर, नाम काम था वैसा
नेमीचंद बहुमुखी प्रतिभा
राजकमल की प्रतिभा न्यारी
मन्नू की लेखनी थी प्यारी

राजेंद्र यादव की आयी बारी
श्रीकांत वर्मा का लेखन भारी
शरद जोशी की यात्रा न्यारी
मटियानी की कहानी प्यारी



सेरा यात्री हिंदी की बाती
दुष्यंत हिंदी ग़ज़ल की थाती
कमलेश्वर के कई कमाल
कथा-कहानी और पत्रकार

उषा का लेखन ऊषा था
केदारनाथ का मन दूजा था
जोशी मनोहर श्याम हुए
कुरु कुरु स्वाहा सन्नाम हुए

हिंदी किशोर गिरिराज किशोर
फिर दूधनाथ हिंदी के मोर
काशी के वासी काशीनाथ
हिंदी से मिले हुए सनाथ

धूल उड़ाते धूमिल आए
और प्रभाकर श्रोत्रिय आये  
भीष्म साहनी आए छाए
नए शब्दों के मेघ भी लाए

 एक रवींद्र कालिया आए
संग हिंदी की ममता लाए
हिंदी में मृदुला मह-महकी  
चित्रा मुद्गल चह - चह चहकी

हिंदी पुत्र नरेंद्र कोहली
जिनकी भाषा मन मोह ली
असगर वजाहत, गोरख पांडे
इनका लेखक ने गाड़े झंडे

हिंदी के रत्न हिंदी के लाल
यह रंग - बिरंगे बाल - गोपाल
यह हिंदी के नभ मंडल के
कुछ गिनती के सूर्य शशि

जाने कितने अगणित है और
उद्गण व असंख्य बौर
ऐसी हिंदी का वंदन है
मनसे हिंदी अभिनंदन है



पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com

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