यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 7 मई 2024

ऐसा लगता मेरे अंदर ज्यों कुछ घोल उठा



ऐसा लगता मेरे  अंदर ज्यों कुछ घोल उठा

सच में लगता है जैसे मोरा मनवा डोल उठा

पर निकले कोई बात नहीं जिह्वा को सूझे ना

पर धीरे से ही लेकिन कोमल दृग बोल उठा

 

मुझ भोले के साथ में ऐसा कैसा जुलुम किया

प्यासा  प्यासा  भटक रहा है जैसे मेरा जिया

 

इतवारी  मेले   में  मैंने  देखा  कुछ तो ऐसा

मेरे भाल पर खींच दिया था किसी ने रेखा जैसा

कैसे  घटना  घटी  मेरी कुछ समझ नहीं आया  

यह भी किस्मत का लेखा था सोच रहा हूँ कैसा

 

मेरे संग क्यों  ऐसा  हो गया मैंने क्या किया

हाय करूँ क्या रह रह जोर से धड़के मेरा हिया

 

कोई कुछ कहता  है कोई डाँट भी देता है

कोई  कहता  झूठा  कोई  कहता नेता है

ऐसे में किससे मैं अपने मन की बात कहूँ

छोटा बड़ा ही हर कोई मेरी फिरकी लेता है

 

सब कहते थे बुद्धू तूने भी क्या जान लिया

किस्मत  मेरे साथ ये तूने कैसा खेल किया

 

मजनू भइया मिले तो बोले मुझको भोग लगा

फिर  बतलाऊँगा  तुझको  मैं कैसा रोग लगा

मेले में  तुझे रूप ने मारा  मोह लिया तुझको

अंधों को क्या पता तुझे तो प्रेम का जोग लगा

 

मैं   इतना   बुद्धू    कैसे  हूँ   बनना   मुझे  पिया

यह सुनकर उर हँसकर बोला बड़का रोग लिया

 

पवन तिवारी

०७/०५/२०२४

    

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