ऐसा लगता मेरे अंदर ज्यों कुछ घोल उठा
सच में लगता है जैसे मोरा
मनवा डोल उठा
पर निकले कोई बात नहीं
जिह्वा को सूझे ना
पर धीरे से ही लेकिन कोमल
दृग बोल उठा
मुझ भोले के साथ में ऐसा
कैसा जुलुम किया
प्यासा प्यासा भटक रहा है जैसे मेरा जिया
इतवारी मेले में
मैंने देखा कुछ
तो ऐसा
मेरे भाल पर खींच दिया था किसी
ने रेखा जैसा
कैसे घटना घटी मेरी
कुछ समझ नहीं आया
यह भी किस्मत का लेखा था
सोच रहा हूँ कैसा
मेरे संग क्यों ऐसा हो
गया मैंने क्या किया
हाय करूँ क्या रह रह जोर से
धड़के मेरा हिया
कोई कुछ कहता है कोई डाँट भी देता है
कोई कहता झूठा कोई
कहता नेता है
ऐसे में किससे मैं अपने मन
की बात कहूँ
छोटा बड़ा ही हर कोई मेरी
फिरकी लेता है
सब कहते थे बुद्धू तूने भी
क्या जान लिया
किस्मत मेरे साथ ये तूने कैसा खेल किया
मजनू भइया मिले तो बोले
मुझको भोग लगा
फिर बतलाऊँगा तुझको मैं
कैसा रोग लगा
मेले में तुझे रूप ने मारा मोह लिया तुझको
अंधों को क्या पता तुझे तो
प्रेम का जोग लगा
मैं इतना बुद्धू कैसे हूँ बनना मुझे पिया
यह सुनकर उर हँसकर बोला बड़का
रोग लिया
पवन तिवारी
०७/०५/२०२४
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