अच्छा हुआ उदासियों
वाले उधर गये
कुछ लोग दुश्मनों
में जाकर निखर गये
रिश्ता नहीं रखना वो
कई बार थे कहे
जो मान मैं गया तो
उस पर बिफर गये
रिश्ते बनाये थे जिन्होने
सोच समझकर
जब दिल की बात आयी
तो छन से बिखर गये
जो दोस्त बने थे फ़कत
सावन को देखकर
पतझड़ की भनक लगते ही
जाने किधर गये
भारत के लिए कल वो
जो गुमनाम दो मरे
लगता है कि जैसे
मेरे लखते जिगर गये
कुचला गया सड़क पर
तिरंगा लिये जो कल
अपने ही लगा माँ की
इज्जत निगल गये
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें