अजब फितरत मोहब्बत
की कि मैं क्या आन बैठा हूँ
जो नफरत करता है मुझसे उसी को चाह बैठा हूँ
वक़्त अपना रहे कैसा
अदा तो खानदानी है
फटी चादर अकेली है
कि फिर भी तान बैठा हूँ
वफाई बेवफ़ाई शायरी
करनी जिसे कर ले
हो गयी जब मोहब्बत
तो करूंगा ठान बैठा हूँ
मोहब्बत वो मोहब्बत
क्या न क़ुर्बानी की कूवत हो
कहाँ डर जीने
मरने का कि लेके जान बैठा हूँ
मोहब्बत की अमर गाथा लिखी कुर्बानियों ने है
कि सदियों की विरासत
है जो हो अब मान बैठा हूँ
जरा सी बात पर मेरी अना जो जाग जाती थी
भरी महफ़िल में महबूबा से खा अपमान बैठा हूँ
जरा सी बात पर मेरी अना जो जाग जाती थी
भरी महफ़िल में महबूबा से खा अपमान बैठा हूँ
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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