तुमको जब से देखा
आते कैसे कैसे भाव
उन भावों का मूल है
लगता शायद प्रेम प्रभाव
सुनता हूँ कि प्रेम के झटके
दोहरे होते हैं
इसीलिए थोड़ा विचलित
हूँ लग ना जाये घाव
सौन्दर्य दिखते ही
जाने क्यों आता है खिंचाव
उम्र का दोष कहूँ या
समझूँ मेरा निजी स्वभाव
पहले ऐसा भाव नहीं
था ऐसा कोई चाव नहीं था
गुण अवगुण इसे क्या
मानू या मानू प्रेम प्रभाव
पिछले साल से ही
जीवन में बढ़ गये नये रिसाव
तेजी से महसूस हो
रहा अनजाना सा अभाव
मेरे मित्र भी इसी भाव का रोना रोते हैं
तेजी से बढ़ रहा दिनों दिन ही इसका दुहराव
सब विषयों पर सोच सोच के अब आया ठहराव
सब बोलें अब एक ही
सुर में उम्र का ही दुष्प्रभाव
दुष्प्रभाव कैसे कह
दूँ जब अच्छा
लगता है
प्रेम का लक्षण लगता है अब होगा नहीं बराव
इस खाली हिय का
विकल्प मैं प्रेम से करूँ भराव
चाह के भी मुझसे
सच बोलूँ होता नहीं दुराव
बात समझ में आ ही
गयी है मुझको हुआ है प्यार
पार उतरना है
तो लेनी
होगी तुम्हरी नाव
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
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