शिल्प
के मोंह में ही फंसा रह गया
प्रेम
का कथ्य तो अनकहा
रह गया
वो
कहानी में बन नायिका छा गयी
मैं तो पुस्तक में बस प्राक्थन रह गया
प्रेम के आवरण का अनावरण हो
हिय के द्वारे तुम्हारा प्रथम चरण हो
सब खुले मन से स्वागत तुम्हारा करें
हे, प्रिये प्रेम से प्रेम का वरण हो
बिन समर्पण सफल
प्रेम होता है क्या
बिन
विश्वास सम्बन्ध
होता है क्या
हो समर्पण तो झुकते भी हैं
देवता
प्रेम
में मेरा – तेरा भी
होता है क्या
तुम जो आई तो उर में
सवेरे हुए
हर्ष के सारे पुष्प मेरे हुए
क्या तुझे मैं समर्पित करूँ प्रेम में
कुछ रहा ना मेरा सब तो तेरे हुए
पवन तिवारी
poetpawan50@gmail.com
सम्पर्क - 7718080978
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