यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

शिल्प के मोंह में ही फंसा रह गया























































शिल्प   के  मोंह में ही फंसा  रह गया
प्रेम   का  कथ्य तो  अनकहा रह गया
वो   कहानी   में बन नायिका छा गयी
मैं तो पुस्तक में बस प्राक्थन रह गया

प्रेम   के   आवरण   का   अनावरण हो
हिय के द्वारे तुम्हारा प्रथम चरण हो
सब खुले मन से स्वागत तुम्हारा करें
हे, प्रिये  प्रेम   से  प्रेम    का  वरण  हो 

बिन समर्पण सफल  प्रेम होता है क्या
बिन  विश्वास   सम्बन्ध  होता है क्या
हो   समर्पण  तो   झुकते भी हैं  देवता 
प्रेम  में  मेरा  तेरा भी   होता है क्या

तुम जो आई तो उर  में सवेरे हुए
हर्ष    के    सारे    पुष्प   मेरे   हुए
क्या तुझे मैं समर्पित करूँ प्रेम में
कुछ रहा ना मेरा सब तो तेरे हुए


पवन तिवारी
poetpawan50@gmail.com
सम्पर्क - 7718080978


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