मित्रों बिहार चुनाव जब से सम्पन्न हुए हैं भारतीय मीडिया और लेखकों, बुद्धिजीवियों में एक आत्मसंतोष दिखाई दे रहा है वे निढाल से हो गये हैं जैसे उनकी व्यूहर चना सफल रही उसी तरह जैसे अभिमन्यु को घेर मारने के बाद कौरव. सारी असहिष्णुता अचानक जैसे गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गयी. पर वे शायद भूल गये उसके बाद भी कौरवों का विनाश हुआ था . उनके पास अद्वितीय योद्धा थे कौरवों की ओर से दुर्योधन व उसके 99 भाइयों सहित भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, मद्रनरेश शल्य, भूरिश्र्वा, अलम्बुष, कृतवर्मा कलिंगराज श्रुतायुध, शकुनि, भगदत्त, जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज सुदक्षिण और बृहद्वल युद्ध में शामिल थे फिर भी हारे .सारा प्रपंच बस बीजेपी को पराजित करने के लिए था.पर बीजेपी मात्र एक व्यूह हारी है युद्ध नहीं, ये विरोधियोंयों को समझना होगा क्यूंकि उस व्यूह के बाद की लड़ाई की अगली कथा कौरवों के लिए बड़ी दुखदाई थी. पुरस्कार लौटाऊ कार्यक्रम अचानक बंद हो गया. सिद्धारमैया ने मुख्यमंत्री होते हुए जानबूझकर उसकाने के लिए गोमांस खाने की बात कही. क्या ये उचित था .फिर टीपू जयंती का विवादित आयोजन और उसमे '' तीन लोगों की हत्या '' इस पर किसी ने पुरस्कार नहीं लौटाया किसी मीडिया को असहिष्णुता नहीं दिखी उन्हें एक मामूली घटना लगी क्योंकि ऐसे ही जयचंदों के कारण भारत को१- ७११ मुहम्मद बिन कासिम .
२ -१०००, महमूद गजनवी
३- ११८२ मोहम्मद गोरी 17 आक्रमण
4- १२ वी शताब्दी में चंगेज खां
5- १३९९ तैमुर लंग
६ - 15 वीं बाबर
7- नादिर शाह
8- १७५७ अहमद शाह अब्दाली लुटा और बर्बाद किया और फिरअंग्रेजों ने हम अति सहिष्णु थे या कहें डरपोक थे कि मुट्ठीभर बाहरी आये और हमे लूटकर चले गये पर अब वैसा नहीं होगा .
हमें सच पढाया नहीं जाता....... येअहिंसा का देश कभी नहीं रहा हाँ उदार अवश्य रहा...... ये लेख अधूरा है मित्रों ..... .... पूरा करूँगा रात तक .... इंतजार कीजिये
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