दीदी घर भर की प्यारी हैं
सब उनको आवाज़ लगाते
काम सभी वे हँसकर करती
सब ही उनसे लाड लडाते
मुन्ना को दातून कराती
दादा जी को हैं नहलाती
दादी को वो दवा
खिलाती
अंदर - बाहर आती जाती
दिन में हैं विद्यालय
जाती
शाम को भागी भागी
आती
बस्ता रखकर बदल के कपड़े
खाना जल्दी जल्दी खाती
दिन भर भागा दौड़ी
करती
फिर भी समय चुरा के पढ़ती
कपड़े जभी सुखाने होते
सबसे जल्दी सीढ़ी चढ़ती
संझा में वे दीप जलाती
अंधकार को दूर भागती
गुड़ में थोड़ा चना मिलाकर
संध्या का वो भोग लगाती
सबकी हाथ पाँव हैं दीदी
रौनक खुशहाली हैं दीदी
दिन भर जिनका नाम गूँजता
सच बतलाऊँ मेरी दीदी
गुड़िया नाम मेरी दीदी का
गुड़िया जैसी दीदी हैं
दो चोटी पहचान है जिनकी
ऐसी मेरी दीदी हैं
पवन तिवारी
११/०८/२०२४
बहुत सुंदर निर्मल,सहज,सरल अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १३ अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
धन्यवाद श्वेता जी
हटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक और भावप्रवण रचना
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी आइए
धन्यवाद अभिलाषा जी
हटाएंबहुत सुन्दर के
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी
हटाएंवाह! बहुत ही प्यारी रचना। दीदी होना सौभाग्य की बात है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रकाश जी
हटाएंबहुत ही बढ़िया पवन जी! ये प्यारी दीदी हर आँगन की शोभा है और हर परिवार की प्यारी बिटिया है🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रेणु जी
हटाएंवाह! शानदार सृजन।
जवाब देंहटाएंआभार शुभा जी
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