यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 4 अगस्त 2024

जो तुमसे कहते हैं मत रोना…!



जो कहते हैं तुमसे 

मत रोना!

 जो कहते हैं-

 रोना कायरता है!

 वही वास्तव में कायर हैं!

 जब भी तुम्हें 

असह्य पीड़ा हो, 

जब भी छल 

तुम्हारा ह्रदय करे विदीर्ण;

 तुम रोना और 

तब तक रोना,

जब तक उस पीड़ा या 

छल का ठोस गोला, 

गीला होकर 

पिघल न जाये!

रोना, मनुष्य होने का 

सबसे बड़ा प्रमाण है! 

रोना एक औषधि है! 

जो नहीं रोते 

उनके मनुष्य होने पर 

संदेह है, और रहेगा! 

सुना है, हिटलर कभी नहीं रोया! 

क्या तुम्हें याद है कि 

तुम पिछली बार 

कब रोए थे! जैसे- 

तुम्हें याद है 

तुम्हारी पिछली हँसी!


पवन तिवारी 

04/08/2024

9 टिप्‍पणियां:

  1. सबकी हिम्मत या सुविधा नहीं होती रो सकने की। रो पाना भी बड़ी बात है, वह भी किसी के समक्ष।

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  2. वाह! साधारण शब्दों के साथ कितना बढिया लिखा है आपने।

    ''...
    तब तक रोना,
    जब तक उस पीड़ा या
    छल का ठोस गोला,
    गीला होकर
    पिघल न जाये!
    ...''


    ''...
    रोना एक औषधि है!
    ...''

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