इक दिन मिल गये कृष्ण
मुरारी
बोले कंप्यूटर है भारी
सुनो! कहा- मैंने बनवारी
कितनों की नौकरी है मारी
ये मत कहना इसमें का बा
बहुत बड़ा है इसका ढाबा
बहुत तरह का ज्ञान है देता
इसमें बैठें गूगल बाबा
हँसकर बोले कृष्ण मुरारी
अबकी है इसकी ही बारी
इसकी इक छोटी अम्मा हैं
उनकी तीखी तेज कटारी
उनका नाम मोबाइल माई
उनकी ऐसी गज़ब ढिठाई
यौवन और बुढ़ापा बचपन
एक तरफ से सबको खाई
चौबीस घंटे नेट खाती है.
रिश्तों का जीवन खाती है .
रोता है जब समय बेचारा
धीरे से हँसकर गाती है
इससे जो भी बच पायेगा
वही जितेन्द्रिय कहलायेगा
,खा जायेगी संवादों
को
जल्दी ही वो दिन आएगा
पवन तिवारी
०४/१२/२०२३
सचमुच दुनिया तेजी से बदलती जा रही है।
जवाब देंहटाएंसिक्के के दो पहलुओं की तरह इंटरनेट क्रांति के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव समाज पर दृष्टिगोचर हुए हैं।
समसामयिक चिंतन ।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ५ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
धन्यवाद श्वेता जी
हटाएंकम्प्यूटर की अम्मा मोबाइल !
जवाब देंहटाएंवाह!!!
सही कहा आज इन सबसे बचने वाला ही जितेंद्रिय होगा ।
बहुत ही लाजवाब सृजन
धन्यवाद सुधा जी
हटाएंपहले हम नई पीढ़ी को दोष देते थे मोबाइल में ज्यादा घुसने पर। अब तो हर पीढ़ी सोशल मीडिया की आदी है, सराहनीय कविता।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जिज्ञासा जी
हटाएंवाह! क्या बात है!! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शुभा जी
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