देखा सपन अनोखा
है
दाल में डूबा
चोखा है
कैसे - कैसे ख़याल आये
दिल कहे प्रेम कि
धोखा है
बाहर - बाहर लम्बी
बातें
देखो तो दिल
खोखा है
दुश्मन पे ही फ़िदा
हुआ है
दिल उसका भी अनोखा
है
पानी उसका क्या उतरा
कि
सारा पानी
सोखा है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक –
पवनतिवारी@डाटामेल.भारत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें