यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 23 जून 2024

दुलहा साले

गारी लोक गीत ( अवधी / विवाह गीत )


दुलहा साले बेना, कूलर, पंखा लेबा हो,

ऊसर, परती बोला- कै ठे मंडा लेबा हो,

अपने दीदी ख़ातिर बड़का वाला घंटा लेबा हो !

 

सोना लेबा, हीरा लेबा, लेबा हीरो हंडा,

कै ठे डंडा लेबा हो,

अपने बहिनी ख़ातिर लम्बा वाला झंडा लेबा हो !


खीर खाबा, पिज्जा खाबा,

खाबा बड़का बंडा, कै ठे ठंडा लेबा हो,

अपने फूआ खातिर केतना लवंडा लेबा हो !


कार लेबा, चेन लेबा,

लेबा बड़का हंडा, कै ठे कंडा लेबा हो,

अपने मामी खातिर गंगा जी के पंडा लेबा हो !

पवन तिवारी

२३/०६/२०२४

  

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