यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 26 जून 2024

अकेलेपन का ध्वंस


 

जैसे अकेली इमारत

धीरे-धीरे होती है उदास !

जमती है धूल,

उभरती हैं पपड़ियाँ,

उभर आती हैं दरारें!

 

कभी-कभी

दरकता सा है कुछ,

शरीर पर

जमने लगती है काई,;

 

और फिर

ढहने लगता है

रुक रुक कर

कोई हिस्सा!

 

और एक दिन

भरभराकर

ढह जाती है इमारत,

 

अकेलापन

कर ही देता है ध्वंस,

कोई भी जो

अकेलेपन के साथ

अकेला है, - इसी क्रम में

होता है ध्वंस !

 

पवन तिवारी

२६/०६/२०२४ 

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