गाँव छूटा
सपनों की ख़ातिर !
शहर बसा,
अपनों की ख़ातिर !
अपने छूटे,
पैसों की ख़ातिर !
फिर पैसा छूटा,
संबंधों ख़ातिर !
फिर सब छूटा,
जीवन के लिए !
फिर जीवन छूटा,
मृत्यु के लिए !
तो इस तरह
सब छूट गया !
अब सब खाली है ;
न सपने, न अपने
न पैसा, न संबंध
न जीवन, न मृत्यु !
पवन तिवारी
२८/०६/२०२४
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