कभी सोचता हूँ
ये करुँगा, फिर
अगले क्षण-
ये नहीं, वो करुँगा !
फिर कभी सोचता हूँ ;
निश्चित करता हूँ
कल आरम्भ करुँगा !
और कल, नया विचार
उभर आता है !
ये, वो, कुछ नहीं,
जो करुँगा, ढंग का करुँगा !
और फिर-
कुछ नहीं करता !
वो कहती हैं –
तुम्हारी बुद्धि
भ्रष्ट हो गयी है!
एक जन कहते हैं-
यह भ्रमित हो गया है !
अम्मा कहती हैं–
बेटा परेशान है,
उलझन में है /
सही कौन है ?
आज – कल
यही सोच रहा हूँ /
पवन तिवारी
१४/०६/२०२४
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