यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 14 जून 2024

सोचना



कभी सोचता हूँ

ये करुँगा, फिर

अगले क्षण-

ये नहीं, वो करुँगा !

फिर कभी सोचता हूँ ;

निश्चित करता हूँ

कल आरम्भ करुँगा !

और कल, नया विचार

उभर आता है !

ये, वो, कुछ नहीं,

जो करुँगा, ढंग का करुँगा !

और फिर-

कुछ नहीं करता !

वो कहती हैं –

तुम्हारी बुद्धि

भ्रष्ट हो गयी है!

एक जन कहते हैं-

यह भ्रमित हो गया है !

अम्मा कहती हैं–

बेटा परेशान है,

उलझन में है /

सही कौन है ?

आज – कल

यही सोच रहा हूँ /

 

पवन तिवारी

१४/०६/२०२४  

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