सूर्य ऐसे ढल रहा है
जैसे जीवन ढल रहा है
हाय कुछ तो खल रहा है
हाय कुछ तो खल रहा है
कुछ ही दिन अनभल रहा है
बाक़ी अच्छा कल रहा
है
कुछ तो अंदर गल रहा है
हाय कुछ तो खल रहा है
कुछ तो अंदर जल रहा है
अपना कोई छल रहा है
कुछ तो गड़बड़ चल रहा है
हाय कुछ तो खल रहा
है
भारी इक - इक पल रहा है
उसका आना टल रहा
है
मूँग कोई दल रहा है
हाय कुछ तो खल रहा है
पवन तिवारी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें