यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 13 जून 2024

सूर्य ऐसे ढल रहा है



सूर्य   ऐसे   ढल   रहा   है

जैसे  जीवन  ढल  रहा है

हाय कुछ तो खल रहा है

हाय कुछ तो खल रहा है

 

कुछ ही दिन अनभल रहा है

बाक़ी अच्छा  कल रहा है

कुछ तो अंदर गल रहा है

हाय कुछ तो खल रहा है

 

कुछ तो अंदर  जल रहा है

अपना  कोई   छल रहा है

कुछ तो गड़बड़ चल रहा है

हाय  कुछ  तो खल रहा है

 

भारी इक - इक पल रहा है

उसका  आना  टल  रहा है

मूँग    कोई    दल    रहा  है

हाय  कुछ  तो  खल रहा है

 

पवन तिवारी

१३/०६/२०२४ 

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