उर कहता है तुम पर कोई गीत लिखूँ
शब्द कहें हैं ‘तुम’ की जगह
मनमीत लिखूँ
शुरू - शुरू में प्रेम ही सब लिखते हैं सुना
मैं भी क्यों ना शुरू - शुरू में प्रीत लिखूँ
उर कहता है
तुम पर कोई गीत लिखूँ
और दूसरे गीतों में मैं और लिखूँ
समसामयिक त्रासों का मैं दौर लिखूँ
रोजगार की आफ़त भ्रष्टाचार भी है
क्यों ना पहले पूरा प्रेम पुनीत
लिखूँ
उर कहता है
तुम पर कोई गीत लिखूँ
सोच रहा हूँ
मैं अकाल पर शोक लिखूँ
स्त्री शोषण पर
आवश्यक रोक लिखूँ
दुःख के विषयों
का है कोई अंत नहीं
प्रेम पे लिख लूँ उसमें भी मैं जीत लिखूँ
उर कहता है
तुम पर कोई गीत लिखूँ
शुरू किया हूँ जो वो पहले गीत लिखूँ
अपनी परम्परा व अपनी रीत लिखूँ
लिखने को तो पूरी दुनिया
लिख डालूँ
पर इस अंतिम पंक्ति में
तुमको मीत लिखूँ
उर कहता है
तुम पर कोई गीत लिखूँ
पवन तिवारी
१२/०६/२०२४
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