शहर
आया तो वो याद आने लगे
खेत सरसों के वो याद आने लगे
वो बारिश में अमरूद का तोड़ना
आम के बाग़ वो याद आने लगे
चाट के ठेले वो याद आने लगे
मेले संक्रांति के याद आने लगे
गीले खेतों से गाजर चुराने के दिन
गाँव, पोखर, गली
याद आने लगे
चोखा-चटनी के दिन याद आने लगे
चूनी रोटी के दिन याद आने लगे
माँ के आँचल से मिलती चवन्नी जो थी
लेमनचूसों के दिन याद आने लगे
बेर, इमली के दिन याद आने लगे
गुड़ में गंजी के दिन याद आने लगे
भूसे में आम, बड़हल पकाने
के दिन
कंचों वाले वे दिन याद आने लगे
गुल्ली डंडा के दिन याद आने लगे
रक्षाबंधन के दिन याद आने लगे
दोस्तों संग नदी में नहाने के दिन
वो बतासे दही याद आने लगे
बंगला कट बाल वो याद आने लगे
काले टीके के दिन याद आने लगे
टाट पर बैठ कर वे पहाड़े के दिन
पाठशाला के दिन याद आने लगे
बाइस्कोपों के दिन याद आने लगे
वो मदारी के दिन याद आने लगे
वो नौटंकी का रात भर देखना
वो बरातों के दिन याद आने लगे
छुप छुपाई के दिन याद आने लगे
वो गुलेलों के दिन याद आने लगे
टायरों संग सर्दी में हम खेलते
बचपने के वे दिन याद आने लगे
लालटेनों के दिन याद आने लगे
शाम के वे दिए याद आने लगे
यूं अँधेरे में खटिये से टकरा जाना
हल्दी प्याज के दिन याद आने लगे
पाठशाला के दिन याद आने लगे
चाक सरकंडे वो याद आने लगे
दो चोटी में चलती थी जब लड़कियाँ
गाँव के रंग वो याद आने लगे
बहनों से वो चुहल याद आने लगे
गेहूँ के बदले बरफ याद आने लगे
पहली रोटी की खातिर जो झगड़े हुए
फिर रसोई व माँ याद आने लगे
पवन तिवारी
सम्पर्क –
७७१८०८०९७८
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें